सोमवार, 19 अगस्त 2019

पक्षी जगत
खतरे में सारस पक्षी
डॉ. दीपक कोहली

सारस उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है । इसे सारस क्रेन भी  कहा जाता है । वैज्ञानिक भाषा में इसका नाम र्ऋीीी रिळींसिशि है । संयोगवश यह विश्व के उड़ने वाले पक्षियों में सबसे बड़ा पक्षी है । वयस्क नर की ऊंचाई लगभग १५६ सेंटीमीटर तक होती है । नर एवं मादा देखने में एक समान होते हैं । यह अकेला पक्षी जो हिमालय के दक्षिणी भाग में प्रजनन करता है । पर्यावरण संतुलन में सारस पक्षी का महत्वपूर्ण योगदान है । 
सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है । संसार के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है ं। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है । प्रात:काल की बेला में  महर्षि वाल्मीक इसके द्रष्टा हैं । तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती हैं । जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है । ऋषि उस आखेटक को श्राप दे देते हैं ं। 
पूरे विश्व में इसकी कुल आठ जातियां पाई जाती हैं । इनमें से चार भारत में पाई जाती हैं । पांचवी साइबेरियन क्रेन भारत में से सन् २००२ में ही विलुप्त् हो गई । सारस पक्षी भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यामांर, नेपाल के मैदानी क्षेत्रों में पाये जाते हैं । शनै:-शनै: इस पक्षी की संख्या में काफी कमी आई है और विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी की श्रेणी में आ गया है । 
एक अनुमान के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी संख्या लगभग ८००० से १०००० है । संयोगवश उत्तर प्रदेश में ही इनकी संख्या विश्व की कुल संख्या का लगभग ४०%  है । वैसे तो यह पक्षी उत्तर प्रेश के समस्त मैदानी क्षेत्रों में देखा जाता है, इनको इटावा, मैनपुरी, औरैया, अलीगढ़ तथा लखीमपुर खीरी आदि जिलों में बड़े-बड़े जलीय एवं दलदली क्षेत्र (वेटलैंड) होने के कारण वहां उसकी उसकी अपेक्षाकृत बड़े झुंड दिखाई पड़ते हैं । किसी भी जलीय एवं दलदली क्षेत्र में सारस पक्षी का पाया जाना उस स्थान के स्वस्थ पर्यावरण का सूचक है, जिस पर इनका अस्तित्व निर्भर करता है । 
सामान्य रूप से ग्रामवासी सारस पक्षी को आदर भाव से देखते हैं तथा इसका शिकार नहीं करते । सारस का जोड़ा प्रेम एवं निष्ठा का प्रतीक है । बहुत सारे किसानों के बीच यह धारणा है कि उनके खेतों में सारस की उपस्थिति शुभ लक्षण के संकेत हैं । सारस घने वनों व वृक्षों का पक्षी नहीं है । यह मुख्यत: जलीय एवं दलदली क्षेत्रों का निवासी है । 
हाल ही में जलीय व दलदली क्षेत्रों में भू परिवर्तन, खेती के मशीनीकरण तथा कृषि फसलों में कीटनाशकों के अत्याधिक प्रयोग के कारण सारस के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है तथा सामान्यरूप से उनके प्राकृतिक वास में विघटन हुआ है । इसके अतिरिक्त खेतोंके ऊपर से जाते हुए उच्च् शक्ति के बिजली के तारों से टकाराना, शिकार, व्यस्क सारस को व्यापार हेतु पकड़ा जाना तथा इनके अंडों की चोरी, कुत्तों और कौवों द्वारा इनके अंडों और बच्चें को नुकसान पहुंचाना भी कुछ कारण है जिनके कारण इनकी संख्या में कमी आई है । 
वैश्विक स्तर पर इसकी संख्या में हो रही कमी को देखते हुए  खणउछ (खिशींीरिींळिरिश्र णळििि षिी उििर्शीीींरींळिि षि छर्रींीीश) द्वारा इसे संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया गया है । इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर इस पक्षी की संख्या में तेजी से कमी आ रही है और अगर इसकी सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं किये गए तो यह प्रजाति विलुप्त् हो सकती हैं । यहां पर उल्लेखनीय है कि मलेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड में सारस पक्षी की यह जाति पूरी तरह से विलुप्त् हो चुकी हैं । भारत वर्ष में भी कथित रूप से विकसित स्थानों में से अधिकांश स्थानों पर सारस पक्षी विलुप्त्प्राय हो चुके हैं । 
वैसे तो सारस पक्षी वर्षभर प्रजनन करते हैं, लेकिन अगस्त व सितंबर महीने इनके प्रजनन का शीर्ष समय होता है । सामान्य रूप से जमन-जुलाई में किसी झील या जलमग्न धान के खेतों के बीच टापूनुमा स्थान को चुनकर वहां घांस-फूस, पूआल का एक बड़ा सा घोंसला बनाते हैं, जिसमें मादा औसतन एक बार में २ अंडे देती हैं । 
मादा सारस अपने बच्चें को लगभग २ वर्षोंा तक अपने साथ रखती है, जब तक कि बच्च्े अपना भोजन स्वयं खोजने में सक्षम नहीं हो जाते हैं । इनका भाकजन मुख्यत: मेंढक, मछली, कीडे-मकोड़े एवं जलीय पौधे के तने व जड़ हैं । 
सारस पक्षी का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि सारस संरक्षण से उन जलीय क्षेत्रों का भी संरक्षण होता है जिन पर विभिन्न जलीय पौधे एवं जीव पनपते हैं । वनस्पति युक्त जलीय एवं दलदली क्षेत्र एक आवश्यक जल शोधक के रूप में कार्य करते हैं, इसलिए सारस पक्षी का संरक्षण आवश्यक है । सारस का पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान है । अत: सारस पक्षी को बचाना जाना अत्यंत आवश्यक है । 

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