पर्यावरण परिक्रमा
चन्द्रयान-२ का प्रक्षेपण स्पेस मेंनया मुकाम
प्राचीन काल से ही मानव को मोहित करने वाले चंद्रमा पर २० जुलाई १९६९ को पहली बार मानव के कदम पड़े । उस घटना को भले ही पचास साल पूरे हो गए है ।
आज तक अमेरिका, रूस, जापान, यूरोप व चीन के साथ भारत ने भी चंद्र अभियान सफलता से पूरा किया है । चंद्रमा अस्तित्व में कैसे आया वह चाहे अब भी पक्के तौर पर कहना संभव न हो पाया हो पर वहां पहुंचने वाले मानवरहित यानोंसे नए व महत्वपूर्ण तथ्य उजागर हुए हैं ।
चंद्रयान-१ ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी के सबूत सबसे पहले दुनिया के सामने प्रस्तुत किए और साथ ही यह भी बताया कि चंद्रमा पर आज भी भूकंप जैसे झटके आते हैं । क्लेमेंटाइन के कारण चांद के दक्षिण ध्रुव के स्वरूप का पता चला और वहां पानी होने की संभावना प्रबल हुई ।
प्रॉस्पेक्टर ने चंद्रमा की सतह के समीप स्थित चुंबकीय क्षेत्र का मानचित्र बनाया । चीनका चांग ई ४ चांद के पृथ्वी से नजर न आने वाले हिस्से पर उतरा । कुल-मिलाकर इन सारे अभियानों से चांद के कई पहलुआें के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त् होने के साथ नया विज्ञान व नई टेक्नोलॉजी विकसित हुई ।
चंद्रयान-२ के जरिये भारत पहली बार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा और ऐसा करने वाला वह दुनिया का चौथा देश होगा । दुनिया को चंद्रयान-२में उतनी ही दिलचस्पी हैं, जितनी कभी अपोलो ११ को लेकर रही होगी, क्योंकि नई टेक्नोलॉजी की मदद से नई जानकारी सामने आने की उम्मीद है । अगर हम विभिन्न देशों के मून मिशन्स पर निगाह डाले तो लगता है कि इसमें स्पर्धा फिर जोर पकड़ रही है ।
चीन २०३५ तक चांद पर मानव भेजने की तैयारी में लगा है तो अमेरिका फिर से चांद पर किसी अमेरिकी के कदमों की छाप छोड़ना चाहता है । अपोलो की बहन आर्टेमिस का नाम शायद इस मिशनको दिया जाए और २०२८ तक चंद्रमा पर फिर किसी अमेरिकी के कदम पड़ेंगे । भारत ने आज तक स्पेस रिसर्च की सत्ता-स्पर्धा से दूर रहकर प्रगति का आदर्श सामने रखा है । हो सकता है आगामी दशक में भारत को अपना यह आदर्श छोड़ना पड़े । तब तक स्पेस टेक्नोलॉजी में हमारी तरक्की अबाधित जारी रहे, चंद्रयान-२ मिशन उसी दिशा में नया मुकाम हैं ।
एनजीटी का आदेश प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियोंको बंद करें
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) पिछले दिनों केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल (सीपीसीबी) को निर्देश दिया है कि देश में गंभीर रूप से प्रदूषण फैलाने वाले तमाम उद्योगों को तीन महीने के भीतर बंद करवाया जाए ।
एनजीटी ने यह फैसला देते हुए कहा कि लोगों के स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर आर्थिक विकास नहीं किया जा सकता । इस फैसले से सफेद और हरी यानी गैर प्रदूषण-कारी इंडस्ट्रीज के संचालन पर कोई असर नहीं पड़ेगा । एनजीटी ने अपने फैसले में कहा है कि क्रिटीकली पॉल्यूटेड एरिया और सीवियरली पॉल्यूटेड एरिया में मौजूद प्रदूषण फैलाने वाली इंडस्ट्रीज को बंद किया जाना चाहिए ।
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने सीपीसीबी को निर्देश दिया है कि वह राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण मंडलों के साथ मिलकर आकलन करे कि इन क्षेत्रों में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों ने पिछले पांच साल में कितना प्रदूषण फैलाया है ? और उसके लिए इनसे कितना मुआवजा लिया जाना चाहिए । मुआवजे मेंप्रदूषण मुक्त बनानेमें लगने वाली राशि और सेहत व पर्यावरण को हुए नुकसान को शामिल किया जाएगा ।
गौरतलब है कि २००९-१० में सीपीसीबी और एसपीसीबी ने मिलकर एक अध्ययन किया था, जिसमें देशभर के औघोगिक क्ल्स्टर्स को इस आधार पर अलग-अलग कैटेगरी में रखा गया था कि वे कितने प्रदूषित है । अध्ययन में तेजी तीन कैटेगरी तय की गई थी - क्रिटिकली पॉल्यूटेड एरिया (नाजुक रूप से प्रदूषित), सीवियरली पॉल्यूटेड एरिया (गंभीर रूप से प्रदूषित) और अन्य प्रदूषित क्षेत्र ।
ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिया कि पर्यावरण को सुधारने के लिए एक्शन प्लान पर काम करना शुरू करें। ट्रिब्यूनल ने सीपीसीबी से तीन महीने के अंदर आदेश के पालन की रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है । मामले की जांच सुनवाई के लिए ५ नवम्बर तारीख तय की है । एनजीटी बेंच ने यह भी आदेश दिया कि इस लाल और नारंगी कैटेगरी वाली इकाइयों को तब तक विस्तार नहीं दिया जाएगा, जब तक इनसे प्रभावित क्षेत्रों का प्रदूषण स्तर कम करके एक सीमा के अंदर नहीं लाया जाता है या फिर उस क्षेत्र की सहन करने की क्षमता का आकलन नहीं कर लिया जाता है ।
एनजीटी ने सभी डीएम को निर्देश दिया है कि वे महीने में दो बार बॉयो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट नियमों की निगरानी करें । एनजीटी ने जिला कमेटी की निगरानी में जिला पर्यावरण योजना होनी चाहिए ओर इसमें पंचायत, स्थानीय संस्थाआें, क्षेत्रीय अधिकारियों, एसपीसीबी और प्रशासन से प्रतिनिधि होने चाहिए । यह टीम डीएम के अधीन होगी ।
एनजीटी ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों को निर्देश दिया है कि वे दो महीने के भीतर स्वास्थ्य सेवाआें और बॉयोमेडिकल वेस्ट जनरेशन के बारे में जानकारी दे ।
म.प्र. के सरदार सरोवर में २०० गांव डूबेगे
सरदार सरोवर बांध इस साल जब पूरा भर जाएगा तो म.प्र. के चार जिलोंके १९४ गांव डूब की जद में आ जाएंगे । धार जिले के चिखल्दा और निसरपुर भी इन गांवोंमें है, जहां बारह अगस्त के बाद डूब का खतरा शुरू हो जाएगा । पन्द्रह अक्टूबर तक ये गांव डूब जाएंगे ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितम्बर २०१७ में बांध का उद्घाटन किया था, तब बांध का खतरे का निशान १३१.१८ मीटर था । दो साल से यही हाल हैं । अभी १२० मीटर पानी है, जिसके १३८.६८ मीटर तक पहुंचने के आसार है । यही सीमा सुप्रीम कोर्ट ने भी तय कर रखी है । इस इलाके मेंहो रही अच्छी बारिश के कारण नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी ने बांध में पानी बढ़ाने का कार्यक्रम तैयार कर लिया है । १२ अगस्त तक यह १३१.१८ मीटर तक पहुंच जाएगा । इतने पानी में चिखल्दा और निसरपुर गांव डूब मे आ जाएंगे ।
इस वर्ष ३१ अगस्त तक बांध में १३४.१८ मीटर पानी भरना तय किया गया है । इसमें मनावर जिले के कई गांव डूब में आ जाएंगे । तीस सितम्बर तक बांध में १३७.७२ मीटर पानी आने की उम्मीद है । इस कारण धार और बड़वानी जिले के कई गांवों के अलावा खलघाट के आसपास का हिस्सा भी डूब में आएगा । १५ अक्टूबर तक बांध में १३८.६८ मीटर तक पानी भर जाएगा, तब १९४ गांव डूब जाएंगे ।
अलीराजपुर और खरगौन जिले के भी कई गांव पर डूब का खतरा है । धार जिले में बीस हजार से ज्यादा परिवारों पर असर पड़ेगा । चिखल्दा के डूब में आने बाद नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने यहां भूख हड़ताल की थी ।
पिछले दिनोंनर्मदा बचाओ आंदोलन के रोहित सिंह ने कहा कि जब तक तीस हजार परिवारों को दूसरी जगह नहीं भेजा जाता, हमारा विरोध जारी रहेगा । यदि तब तक भरपूर बारिश नहीं हुई, तो नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी वाले दूसरी जगहों से पानी छोड़कर इस भरने की कोशिश करेंगे । जब तक लोगों को हक नहीं मिल जाता, तब तक हम यहां से नहीं हटेगे।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इन्दौर कमिश्नर आकाश त्रिपाठी ने कहा कि केन्द्र सरकार, नर्मदा कन्ट्रोल अथॉरिटी की रिपोर्ट पर काम करेगी ।
हवा की नमी से पेयजल बनाने वाली मशीन हुई तैयार
हवा की नमी अब लोगोंकी प्यास बुझाएगी । आइआइटी मद्रास के छात्रों-प्रोेफेसर की एक टीम का यह नया शोध हवा मेंमौजूद नमी से जल उत्पादन पर आधारित है । शोधार्थियों ने ऐसी मशीन बनाई है जो हवा में मौजूद नमी को पेयजल बनाएगी । इसका नाम एटमॉस्फेर वाटर जेनरेटर (एडब्ल्यूजी) रखा गया है ।
इस प्रोजेक्ट को इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड ने सहयोग दिया है । आइआइटी छात्र रमेश कुमार, अंकित नागर और अन्य ने वायुजल टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड नामक स्टार्टअप कंपनी बनाई है । जो इस प्रोजेक्ट पर काम करेगी ।
एडब्ल्यूजी बिजली और सोलर सिस्टम से भी चलेगा । इससे एक लीटर पानी बनाने में ०.३६ से ०.५५ यूनिट बिजली की खपत होती है । इसका पानी बोतलबंद से भी सस्ता होगा और गुणवत्ता समान रहेगी ।
एडब्ल्यूजी के डिजायन इंजीनियर सुदीप पटेल ने कहा कि अब हमें कम कीमत व बिजली खपत वाली मशीन पर काम कर रहे है । यह मशीन वायु में नमी की मात्रा पर निर्भर होगी । तटीय इलाकों में अधिक नमी की वजह से बिजली की खपत कम होगी । पानी को पीने युक्त बनाने के लिए इसमें मिनरल मिलाए जाते है ।
सह संस्थापक अंकित नागर ने बताया कि पहले हवा मशीन के अग्रभाग वाले फिल्टर के माध्यम से तकनीकी सतह मेंप्रवेश करती है, जहां उसे शुद्ध किया जाता है ।
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