कविता
फूलों को बचायें
जगदीश प्रसाद तिवारी
प्रकृति अपनी, सदा ही रही है
धरती के अनुकूल
उसने पावन पृथ्वी के
सौंदर्यश्री में वृद्धि करने हेतु
निज अभियांत्रिकी करों से
सौंपे हैं सुन्दर-सुन्दर फूल
उनकी रक्षा वर्षो से
करता आ रहा है
पुनीत पर्यावरण
मगर विडंबना कि
धरती की देह पर
पता नहीं कहाँ से
आ गया है प्रदूषण
जिसने फूलोंके प्रति
बदल लिया है अपना आचरण
पर्यावरण के प्रति भी
उचित नहीं है उसका प्रण ।
वह पर्यावरण को अपने विष से
कर रहा है दूषित फूलोंपर भी है
उसकी दृष्टि कुपित ।
अब ऐसे में
यह कर्तव्य है हमारा
फूलों को बचायें
पर्यावरण की भी हम रक्षा करें
इसके लिये कोई भी
समझौता नहीं करें ।
फूलों को बचायें
जगदीश प्रसाद तिवारी
प्रकृति अपनी, सदा ही रही है
धरती के अनुकूल
उसने पावन पृथ्वी के
सौंदर्यश्री में वृद्धि करने हेतु
निज अभियांत्रिकी करों से
सौंपे हैं सुन्दर-सुन्दर फूल
उनकी रक्षा वर्षो से
करता आ रहा है
पुनीत पर्यावरण
मगर विडंबना कि
धरती की देह पर
पता नहीं कहाँ से
आ गया है प्रदूषण
जिसने फूलोंके प्रति
बदल लिया है अपना आचरण
पर्यावरण के प्रति भी
उचित नहीं है उसका प्रण ।
वह पर्यावरण को अपने विष से
कर रहा है दूषित फूलोंपर भी है
उसकी दृष्टि कुपित ।
अब ऐसे में
यह कर्तव्य है हमारा
फूलों को बचायें
पर्यावरण की भी हम रक्षा करें
इसके लिये कोई भी
समझौता नहीं करें ।
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