रविवार, 17 जुलाई 2016

मौसम
बारिश है तो खुशहाली है
शर्मिला पाल

वे इस दुनिया के अभागे ही कहे जाएंगे, जो बारिश के सौंदर्य से अनजाने हैं । इसकी हर बूंद जीवन के एक अंग का प्रतिनिधित्व करती है । इन बूंदों को देखकर महान दार्शनिक लाओत्से ने कहा था, पानी की तरह हो जाओ । बारिश तो असल में धरती का उत्सव है । 
हमारे देश की मानसूनी बारिश पर यात्रा वृतांत की शक्ल में ब्रिटेन के मशहूर यात्रा वृत्तांत लेखक अलेक्जेंडर फ्रैटर ने एक किताब लिखी है - चेजिंग दी मानसून । उन्होनें किताब लिखने के लिए केरल से चेरापूंजी तक की यात्रा की । वे कहते है, भारत को समझना हो तो मानसून को जाने समझे बगैर संभव नहींहै । वे आगे कहते हैं, बारिश को बस, देखें हो सके तो भीगें । वह टिप टिप टिप बरस रही हो या झमाझम, आप जीवन का आनंद महसूस   करेंगे । हो सकता है आप पल भर में जीवन का मर्म समझ जाएें । झमाझम बारिश ऐसी चीज है जिसके लिए लोग तरसते भी है और उसे कोसते भी है । पर यह ऐसी चीज है जिस पर धरती की खुशहाली कायम है । मानसून वस्तुत: भारत की अर्थव्यवस्था के केन्द्र में है । 
पर्यावरण में हो रहे बदलावों के कारण मानसून पर भी खतरे मंडरा रहे हैं । जलवायु परिवर्तन संबंधी सरकारों की समिति की रिपोर्ट पर गौर करें तो यह स्थिति हमारे देश की कृषि के लिए चिंताजनक हो सकती है । आईपीसीसी के अनुसार कई ऐसी घटनाएं होगी, जिससे मानसून का मिजाज पूरी तरह बदल सकता है । इस दौरान सामान्य बारिश की घटनाएं तेजी से कम हो सकती है । 
भारतीय क्षेत्र में होने वाली बारिश में हर दशक में १० फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है । समुद्र का तापमान बढ़ने से अल नीनो जैसी स्थितियां भी बन रही है । अल नीनो ऐसी विशेष स्थिति है जब समुद्र सतह के औसत से अधिक तापमान के कारण पश्चिमी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर मेंअधिक दबाव की स्थिति बनती है । इससे देश में सूखे की स्थिति पैदा होने की आशंका रहती है । इस सदी में करीब २० साल सूखे के रहे हैं जिनमें से १३ में अल नीनों की स्थिति रही है । यानी अल नीनों हो तो ६५ प्रतिशत आशंका है कि कम बारिश होगी । अल नीनो का जिक्र सबसे पहले १९२३ में मौसम विज्ञानी सर गिल्बर्ट थॉमस वॉकर ने किया था । 
ज्यादा बारिश चाहिए तो ला नीना की दुआ करें । ला नीना की स्थिति अल नीनों से बिल्कुल उलट है । इस स्थिति में प्रशांत और हिंद महासागर में कम दबाव की स्थिति रहती है जो अधिक बारिश की संभावनाएं पैदा करती है । बीते १०० सालों में १३ अधिक बारिश वाले वर्ष रहे है जिनमें से ६ में ला नीना की स्थिति रही । यानी ला नीना के साथ अधिक बारिश की संभावना ४६ प्रतिशत होती है । 
सामान्य तौर पर मानसून उन हवाआें को कहा जाता है जो मौसमी तौर पर बहती है । यह भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में लगभग चार महीने-जून से सितम्बर तक सक्रिय रहती है । मानसूनी वर्षा उसे कहते हैं जो किसी मौसम में किसी क्षेत्र विशेष में होती है । दुनिया के अनेक हिस्से ऐसे हैं जहां ऐसी वर्षा होती है । इस परिभाषा के अनुसार उत्तर और दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका  के कुछ भाग, पूर्वीएशिया और ऑस्ट्रेलिया भी मानसूनी क्षेत्र में आते हैं । लेकिन पारंपरिक तौर पर अधिकांश मौसम विज्ञानी भारतीय उपमहाद्वीप को ही मानसूनी क्षेत्र मानते है । 
मानसून शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द मॉनसैओ से हुई है, हालांकि मॉनसैओ शब्द अरबी के मौसिम से निकला है । अरब सागर में बहने वाली मौसमी हवाआें के लिए अरब के मल्लाह इस शब्द का प्रयोग करते थे । उन मल्लाहोंने काफी पहले यह भांप लिया था कि ये हवाएं जून से सितम्बर तक गरमी के दिनों में दक्षिणी-पश्चिम दिशा से और नवम्बर से मार्च तक जाड़े के दिनों में उत्तर-पूर्वी दिशा से बहती    हैं ।
गर्मी के दिनों में समुद्र की ओर से बहने के कारण ही ये हवाएं पर्याप्त् नमी लिए होती है जो मौका मिलते ही बरस जाती है । इन हवाआें की मदद से प्राचीन काल में नाविक यात्राएं करते थे । 
कुछ विशेषज्ञ कहते है कि मानसून की शुरूआत ५ करोड़ साल पहले हुई थी जब भारतीय भूभाग तिब्बती पठार की ओर सरकने लगा था । अनेक भूगोलवेत्ताआें का मानना है कि मानसून वर्तमान स्वरूप में ८० लाख साल पहले अस्तित्व में आया । कुछ विशेषज्ञ चीन में मिले वनस्पति जीवाश्म और दक्षिण चीन सागर से मिले पत्थरों के आधार पर कहते हैं कि मानसून की शुरूआत करीब दो करोड़ साल पहले हुई है । 
जब सूर्य कर्क रेखा के ऊपर होता है है तो भारतीय भूभाग की हवा गर्म होकर ऊपर की ओर उठकर बाहर की ओर बहने लगती है । इससे पूरा क्षेत्र कम दबाव वाला विशाल प्रदेश बन जाता है । यह प्रदेश उच्च् दबाव के क्षेत्र से हवाआें को आमंत्रित करता है । इन दिनों भारतीय उपमहाद्वीप को तीन ओर से घेरे समुद्र  में उच्च् दबाव का क्षेत्र होता है क्योंकि जमीन की तुलना में सागर काफी कम गर्म होता है । 
चूंकि सागर में निरन्तर वाष्पीकरण होता है इसलिए ये हवाएं नमी से लदी होती है । मानसून भारतीय महाद्वीप यानी कन्याकुमारी  तक पहुंचकर दो धाराआें में बंट जाता है । एक धारा अरब सागर की ओर तथा दूसरी बंगाली की खाड़ी की ओर आगे बढ़ती है । अरब सागर से चलने वाली मानसूनी हवाएं पश्चिमी घाट के ऊपर से बहकर भारत में घुसती है और बंगाली की खाड़ी वाली हवाएं बंगाल और उत्तर पूर्व के राज्यों से होकर । हिमालय और भारत के अन्य पर्वतों से टकराकर ये हवाएं ठंडी होती हैं और पूरे भारत में लगभग चार महीने तक बारिश करती है । 

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