रविवार, 17 जुलाई 2016


प्रसंगवश
गरीबी के जेनेटिक असर
एक ताजा अध्ययन के मुताबिक जेनेटिक्स और पर्यावरण की जटिल परस्पर क्रिया से निर्धारित होता है कि कौन व्यक्ति अवसादग्रस्त होगा । यह देखा गया है कि गरीब परिवारों के बच्च्े सम्पन्न बच्चें के मुकाबले अधिक अवसादग्रस्त होते हैं। इसकी कई वजहें हो सकती है । इनमें कुपोषण, धूम्रपान की ज्यादा आदत और जीवन के संघर्ष से उपजे तनाव शामिल हैं । ये सभी चीजें दिमाग के उस हिस्से को प्रभावित करती हैं जो तनाव से निपटता है । मस्तिष्क की भौतिक संरचना में ये अंतर देखे जा चुके हैं। 
आम तौर पर मस्तिष्क की संरचना में ऐसे अंतर जन्म से ही होते हैं, जिससे लगता है कि माता-पिता द्वारा झेले गए तनाव का असर अगली पीढ़ी में भी नजर आता है । मगर बच्च्े का विकास जन्म के साथ रूक नहीं जाता । ड्यूक विश्वविद्यालय के तंत्रिका वैज्ञानिक अहमद हरीरी का ख्याल था कि जन्म से लेकर किशोरावस्था तक होने वाले परिवर्तनों की भी इसमें कुछ भूमिका होती होगी । उन्होनें अपने विचार की जांच डीएनए संरचना में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर करने की ठानी । 
काफी छानबीन के बाद हरीरी और उनके साथियों ने एक जीन पहचाना जो एक प्रोटीन बनाता है । यह प्रोटीन सिरोटोनिन नामक अणु को तंत्रिका कोशिका में प्रवेश करने में मददगार होता है । यह काफी समय से पता है कि यह जीन अवसाद में कुछ भूमिका निभाता है । हरीरी के दल ने एसएलसी६ए४ नामक इस जीन पर ध्यान केन्द्रित किया । 
पता यह चला कि गरीबी में जी रहे बच्चें में एसएलसी६ए४ के समीप डीएनए में मिथायलेशन ज्यादा हुआ था । मिथायलेशन वह प्रक्रिया है जिसके जरिए डीएन के अणु पर मिथाइल समूह जुड़ जाते है और ये डीएनए के उस हिस्से के कामकाज को प्रभावित करते है । यदि इस जीन के आसपास मिथायलेशन होगा तो इसका असर उस प्रोटीन पर होगा जो सिरोटोनिन को तंत्रिका मेंप्रवेश करवाने के लिए जवाबदेह है । ऐसे में इनके मस्तिष्क में सिरोटोनिन सही जगह पर पहुंच नहीं पाएगा, जो अवसाद का एक प्रमुख कारण है । 

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