गुरुवार, 19 जनवरी 2017

प्रसंगवश
पर्यावरण चेतना के संकल्प के तीन दशक

इस अंक से पर्यावरण डाइजेस्ट अपने नियमित प्रकाशन के इकतीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है । 
पिछले तीन दशक लघु समाचार पत्रों एवं पत्रिकाआें के लिये चुनौतीपूर्ण रहे है । इसी कालखण्ड में हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिकायें एक-एक कर बंद हो गयी । वही दूसरी ओर हिन्दी पत्रिकाआें के उदय का भी यह काल खंड साक्षी रहा है । भारत सरकार की प्रेस इंडिया २०१५-१६ रिपोर्ट के अनुसार ३१ मार्च २०१६ तक कुल प्रकाशनों की संख्या १,१०,८५१ तक पहुंच  गयी । इसमे हिन्दी समाचार पत्र और पत्रिकाआें की संख्या ४४,५५७ है ।   इस मासिक पत्रिका में बेहद सीमित साधनों और प्रबल इच्छाशक्ति के बलबूते ३० वर्षो का लम्बा सफर तय किया है । हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में पर्यावरण को समर्पित यह पहली और विशिष्ट पत्रिका है । पत्रिका में अब तक पर्यावरण से जुड़े विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय लेखकों, पत्रकारों, विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताआें के ४२०० से अधिक लेख प्रकाशित हुए है । 
पिछले तीन दशकों में हमने देखा कि व्यवसायिक पत्रिकाआें की बढ़ती भीड़ में रचनात्मक पत्रिका को जिंदा रखना संकटपूर्ण तो है लेकिन असंभव नहीं है । पर्यावरण चेतना का यह छोटा सा दीपक अनेक संकटों के बावजूद निरन्तर प्रकाशमान बना रहा तो इसके पीछे हमारे पर्यावरण प्रेमी मित्रों की शक्ति का संबल था, यही संबल हमारे वर्तमान और भविष्य की यात्रा की गति और शक्ति का आधार है । 
पर्यावरण डाइजेस्ट ने कभी किसी सरकार संस्थान या आंदोलन का मुखपत्र बनने का प्रयास नहीं किया, पत्रिका की प्रतिबद्धता सदैव जन सामान्य के प्रति रही है । इसी प्रतिबद्धता को एक बार पुन: दोहराना चाहते है । 
पत्रिका के नियमित प्रकाशन में जिन मित्रों का सहयोग/समर्थन मिला उन सभी के प्रति हम कृतज्ञता ज्ञापित करते है और आशा करते है कि भविष्य में भी मित्रों का इसी प्रकार स्नेह और सहयोग मिलता रहेगा ।

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