गुरुवार, 19 जनवरी 2017

कविता
चलो बसन्त आया
डॉ. जगदीशचन्द्र शुक्ला
चलो बसन्त आया.....
चलो बसन्त आया-चलो बसन्त आया.........
गर्मी -सर्दी जोड़ा आया पिछला हिसाब करे भरपाया । 
कोकिल बोल रहे तन्हाई, पोपट शोर करे अमराई । 
केसूर रंग उड़े वन माई, वन में हरियालिया छाई । 
ऐसे राजा की आई सवारी, चलो बसन्त आया ।।
चलो बसन्त आया..........
आम मोर पंख ये खोले, कोयल होले-होले बोले । 
म्हारा बाग बगीचा डोले, झूम्मर फूला का इ लटके । 
यहाँ राग-रंग सक अटके, बिना तान मंजीरा भटके । 
ऐसे बसंत राग सुनाई, चलो बसन्त आया ।।
चलो बसन्त आया............
ठण्डी हवा नी या भटके, पत्ते एक-एककर पटके । 
नई कोपलेंये चटके ये है नीम निबोरी लटके । 
पत्ते पीपल पर है अटके हवा बार-बार है झटके । 
ऐसे पतझड़ ने झड़ी लगाई, चलो बसन्त आया ।। 
चलो बसन्त आया...........
नदी नालों की बहारें हेमराज के सहारे । 
धीरे-धीरे करते न्यारे भूमि हरी करते सारे । 
सरसों फूल-फूलों को मारे गौरी देख उन्हें शरमाएँ । 
ऐसी गौरी की आई सगाई, चलो बसन्त आया ।। 
चलो बसन्त आया............
बच्च्े बूढ़ों का यह मौसम जवां रातों का यह मौसम । 
पनघट-पनिहारी का मौसम, गौरी मटकाने का मौसम । 
बसन्त उत्सव का यह मौसम, सखी मेल का यह मौसम । 
ऐसी मिलन की रात यह आई, चलो बसन्त आया ।। 
चलो बसन्त आया........

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