गुरुवार, 19 जनवरी 2017

सामयिक
समुद्र तटीय क्षेत्रों की गहराती समस्याएं
भारत डोगरा

भारत में समुद्र तटीय क्षेत्र लगभग ७००० कि.मी. तक फैला हुआ है । विश्व के सबसे लंबे समुद्र तटीय क्षेत्रों वाले देशों में भारत की गिनती होती है । 
समुद्र तट सदा अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध रहे हैं और विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी समुद्र तट के अनेक क्षेत्र पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित व विख्यात हुए हैं । किन्तु समुद्र तटीय क्षेत्रों का एक दूसरा पक्ष भी है जो उनके प्राकृतिक सौंदर्य के कारण छिपा रह जाता है । यह हकीकत यहां जीवन के बढ़ते खतरों के बारे मेंहै । 
समुद्र तटीय क्षेत्रों में आने वाले कई तूफान व चक्रवात पहले से अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं । इसे वैज्ञानिक जलवायु बदलाव से जोड़ कर देख रहे हैं । जलवायु बदलाव के कारण समुद्र में जल-स्तर का बढ़ना निश्चित है । इस कारण अनेक  समुद्र तटीय क्षेत्र डूब सकते हैं । समुद्र तट के कई गावों के जलमग्न होने के समाचार मिलने भी लगे हैं । 
भविष्य में खतरा बढ़ने की पूरी संभावना है जिससे गांवों के अतिरिक्त समुद्र तट के बड़े शहर व महानगर भी संकटग्रस्त हो सकते   हैं । जहां समुद्र तटीय क्षेत्रों के पर्यटन स्थलों की सुंदरता व पर्यटकों की भीड़ की चर्चा बहुत होती हैं, वहीं पर इन क्षेत्रों के लिए गुपचुप बढ़ते संकटों की चर्चा बहुत कम होती   है । हमारे देश में समुद्र तटीय क्षेत्र बहुत लंबा होने के बावजूद कोई हिन्दी-भाषी राज्य समुद्र तट से नहीं जुड़ा है । 
शायद इस कारण हिन्दी मीडिया में तटीय क्षेत्रों की गहराती समस्याआें की चर्चा विशेष तौर पर कम होती है ।  इस ओर अधिक ध्यान देना जरूरी है । वैसे भी समुद्र तट क्षेत्र में आने वाले तूफानों का असर दूर-दूर तक पड़ता है । दूसरी ओर, दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में बनने वाले बांधों का असर समुद्र तट तक भी पहुंचता है । 
तट रक्षा व विकास परामर्श समिति के अनुसार भारत के तट क्षेत्र का लगभग ३० प्रतिशत २०१२ तक समुद्री कटाव से प्रभावित होने लगा था । इस बढ़ते कटाव के कारण कई बस्तियां और गांव उजड़ रहे हैं । कई मछुआरे और किसान तटों से कुछ दूरी पर अपने आवास नए सिरे से बनाते हैं पर कुछ समय बाद ये भी संकटग्रस्त हो जाते हैं ।
संुदरबन (पश्चिम बंगाल) में घोराबारा टापू एक ऐसा टापू है जो समुद्री कटाव से बुरी तरह पीड़ित    है । ५० वर्ष पहले यहां २ लाख की जनसंख्या और २०,००० एकड़ भूमि थी । इस समय यहां मात्र ८०० एकड़ भूमि बची है और ५००० लोग ही    है । इससे पता चलता है कि समुद्र व नदी ने यहां कितनी जमीन छीन ली है । 
अनेक समुद्र तटीय क्षेत्रों में रेत व अन्य खनिजों का खनन बहुत निर्ममता से हुआ है । इस कारण समुद्र का कआव बहुत बढ़ गया है । कुछ समुद्र तटीय क्षेत्रों में वहां के विशेष वन (मैन्ग्रोव) बुरी तरह उजाड़े गए हैं । इन कारणों से सामान्य समय में कटाव बढ़ा है व समुद्री तूफानों के समय क्षति भी अधिक होती है । नए बंदरगाह बहुत तेजी से बनाए जा रहे हैं और कुछ विशेषज्ञोंने कहा है कि जितनी भी जरूरत है उससे अधिक बनाए जा रहे हैं । इनकी वजह से भी कटाव बढ़ रहा   है । 
समुद्र किनारे जहां तूफान की अधिक संभावना है वहां खतरनाक उद्योग लगाने से परहेज करना चाहिए  । पर समुद्र किनारे अनेक परमाणु बिजली संयंत्र व खतरनाक उद्योग हाल के समय में तेजी से लगाए गए हैं जो प्रतिकूल स्थितियों में गंभीर खतरे उत्पन्न कर सकते हैं । 
अनेक बड़े बांधों के निर्माण से नदियों के डेल्टा क्षेत्र में पर्याप्त् मात्रा में व वेग से अब नदियों का मीठा पानी नहीं पहुंचता है और इस कारण समुद्र के खारे पानी को और आगे बढ़ने का अवसर मिलता है । इस तरह कई समुद्र तटीय क्षेत्रों के जल स्त्रोतों व भूजल में खारापन आ जाता है जिससे पेयजल और सिंचाई, सब तरह की जल सम्बंधी जरूरतें पूरी करने में बहुत कठिनाई आती    है । 
इस तरह के बदलाव का असर मछलियों, अन्य जलीय जीवों व उनके प्रजनन पर भी पड़ता है । मछलियों की संख्या कम होने का प्रतिकूल असर परंपरागत मछुआरों को सहना पड़ता है । इन मछुआरों के लिए अनेक अन्य संकट भी बढ़ रह हैं । मछली पकड़ने के मशीनीकृत तरीके बढ़ने से मछलियों की संख्याभी कम हो रही है व परंपरागत मछुआरों के अवसर तो और भी कम हो रह हैं । समुद्र तट पर पर्यटन व होटल बनाने के साथ कई तरह के हथकंउे अपनाए जाते हैं । कई मछुआरों व उनकी बस्तियों को उनके मूल स्थान से हटाया जा रहा है । 
तट के पास का समुद्री जल जैव विविधता को बनाए रखने व जलीय जीवोंके प्रजनन के लिए विशेष महत्व का होता है । प्रदूषण बढ़ने के कारण समुद्री जीवोंपर अत्याधिक प्रतिकूल असर पड़ रहा है । 
समुद्र तटीय क्षेत्रों की समस्याआें के समाधान के लिए कई स्तरोंपर प्रयास की जरूरत है । इन समस्याआें  पर उचित समय पर ध्यान देना चाहिए ।

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