प्रसंगवश
अनूठा स्कूल : सालाना फीस डेढ़ क्विंटल अनाज
सालभर की पढ़ाई और रहने-खाने का खर्च शहरों के आवासीय विद्यालयोंमें हजारों-लाखों रूपए होता है, लेकिन धार जिले के डही कस्बे से १८ किमी दूर ककराना की राणी काजल जीवनशाला की बात अलग है । यहां आदिवासी मजदूरों के बच्च्े शिक्षा प्राप्त् कर रहे हैं । एक बच्च्े की सालभर की पढ़ाई और रहने-खाने के बदले अभिभावकों को फीस की जगह डेढ़ क्विंटल अनाज और दस किलो दाल देना होती है । स्कूल बिना सरकारी मदद जनसहयोग से चल रहा है । यहां के बच्च्े अब कॉलेज तक पहुंच चुके हैं ।
स्कूल की शुरूआत २१ अगस्त २००० में ककराना के उपस्वास्थ्य केन्द्र भवन में४१ बच्चें के साथ की गई थी । स्थायी भवन की बात आई, तो ग्रामीणों ने मदद की । अब तक कई स्वयंसेवी संगठनों समेत लेखिका अरूंधति राय भी अब तक २० हजार रूपये की मदद कर चुकी है । वर्तमान में स्कूल के पास पक्का भवन है । इसमें ६ कमरे हैं, जिनमें दिन में विद्यार्थी पढ़ते हैं, जबकि रात में सोते है ।
स्कूल में स्थानीय भाषा लिपि में पाठ्यक्रम तैयार किया है ताकि बच्चेंको आसानी हो । बच्च्े प्रार्थना में राष्ट्रीय गान के अलावा क्रांतिकारी गीत भी गाते हैं ।
जीवनशाला में आठवी तक शिक्षा की व्यवस्था है । वर्तमान में २१३ विद्यार्थी हैं । कम्प्यूटर और पुस्तकालय के साथ परिसर में खेलने के लिये संसाधन भी जुटा लिए है । १६ लोगों का स्टॉफ है । इनमें से १० शिक्षक है । सीनियर टीचर्स को ७ हजार और जूनियर को ३-४ हजार रूपये प्रतिमाह पारिश्रमिक मिल रहा है । स्कूल को मिलने वाला अनाज बच्चें के भोजन पर इस्तेमाल होता है और शिक्षकों की पगार व अन्य खर्च जनसहयोग से जुटाए जाते है ।
स्कूल संचालक केमत गवले के अनुसार बच्च घर पर रहकर सालभर में जो खाना खाता है, उस हिसाब से फीस के रूप मेंन्यूनतम खाघान्न अभिभावकों से लेते है ।
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