पर्यावरण परिक्रमा
तीन लाख साल पहले से हैं होमो सेपियन्स
होमो सेपियन्स के मोरक्को में मिले जीवाश्म मानवजाति के इतिहास को फिर से लिखेंगे । इस नई खोज का मतलब है कि इंसान के पूर्वज समझे जाने वाले होमो सेपियन्स के धरती पर होने के सबूत २ लाख नहीं बल्कि ३ लाख साल पहले से मौजूद है ।
मोरक्को के पास एक पुरातिवात्क भूभाग पर शोधकर्ताआें को एक खोपड़ी, चेहरे और जबडे की हडि्डयां मिली, जिनकी पहचान ३१५००० साल पहले के होमो सेपियन्स के तौर पर की गई है । अभी तक की खोज के अनुसार होमो सेपियन्स का उद्धव २ लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका का माना जाता रहा है, लेकिन नई खोज के मुताबिक ३ लाख साल पहले ही होमो सेपिन्यस के उत्तर अफ्रीका में विकास के सबूत मौजूद है ।
इस खोज का नेतृत्व प्रोफेसर जांजाक हुबलिन ओर डॉक्टर अब्दलाउद बेन नासर ने किया । प्रोफेसर जीन जर्मनी के लाइपजिग शहर मेंमाक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्ूयशनरी एन्थ्रोपोलॉजी में प्रोफेसर है और डॉक्टर बेन मोरक्को के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी एण्ड हेरिटेज में काम कर रहे है ।
एक बार फिर से संदर्भ क्रॉस विवि के विशेषज्ञों ने अपनी अत्याधुनिक तकनीकों के जरिए डायरेक्ट डेटिंग की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई है । डायरेक्ट डेटिंग वह प्रक्रिया होती है जिसमेंपुरातत्व जीव विज्ञान में जन्तुआें और पोधों के प्राप्त् अवशेषों के आधार पर जीवन काल या समय चक्र का निर्धारण किया जाता है । नेचर मेंछपी रिपोर्ट के मुताबिक खोज का यह मतलब नहीं है कि होमा सेपिन्यस का उद्धव उतर अफ्रीका में हुआ बल्कि इसे ऐसे समझा जाना चाहिए कि शुरूआती होमो सेपिन्यस का विकास इस पूरे महाद्वीप में हुआ था ।
आराम की जिंदगी से कुत्तेहो रहे डायबिटिक
आराम तलब जिंदगी, चटपटा खाना और असयंमित दिनचर्या के चलते इंसान ही नहीं, पालतू जानवरों का भी स्वास्थ्य बिगड़ रहा है । करीब १० फीसदी पालतू कुत्तेडायबिटीज के शिकार है । उन्हें हर्मोन्स से संबंधित बीमारियों के अलावा हार्ट और किडनी से जुड़ी बीमारियां भी हो रही है । भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में इलाज के लिए आने वाले कुत्तोंकी जांच के बाद ये तथ्य निकल कर आए हैं । ५-६ साल की उम्र के बाद कुत्ते इन बीमारियों का ज्यादा शिकार हो रहे है ।
राज्य पशु चिकित्सालय के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर एचएल समूह के मुताबिक १० मेंसे औसतन एक कुत्ते को डायबिटीज हो रही है । पांच साल पहले तक इनमें डायबिटीज के मामले न के बराबर थे । बीमारी पनपने की सबसे बड़ी वजह खुराक में बदलाव है । कुत्ता मूलत: मांसाहारी होता है, लेकिन इंसान ने उसे पालतू बनाकर अपनी पंसद की खुराक देना शुरू कर दिया । ज्यादा तेल मसाले वाली चीजें खिलाई जा रही है, वह भी कई बार ज्यादातर कुत्ते बंधे रहते है या घरो में बंद रहते है, जिससे उनका घूमना-फिरना और दौड़ना भी बंद हो गया है । इस वजह से लगभग ५० फीसदी कुत्ते मोटे (ओबेसिटी) हो गए है । मोटापे की वजह से उनका लिवर फैटी हो रहा है । अस्पताल में कुत्तों की सोनोग्राफी में यह सामने आया है । जर्मन शेफर्ड और लेब्राडोर कुत्तों में मोटॉपे की समस्या ज्यादा हो रही है ।
महू वेटनरी कॉलेज में सीनियर साइटिस्ट डॉ. परेश जैन के मुताबिक खान-पान मेंबदलाव के चलते कुत्तों में थायराइड की समस्या भी हो रही है । हालांकि इसके मामले १०० में २-३ ही होते है । जैन के मुताबिक कुत्ता काफी भावुक जानवर होता है । साथ ही उनका खान-पान तेल-मसाले वाला होने से उन्हें अल्सर की दिक्कत भी बढ़ रही है । उनमें हाई ब्लड प्रेशर के भी केस मिल रहे है ।
जैविक उत्पादों से जुड़े उद्योगों को देना होगा नया टैक्स
म.प्र. में राज्य के छोटे-बड़े १० हजार ७०० उद्योगों को अब अपनी कमाई का एक हिस्सा राज्य सरकार को देना पड़ेगा । ये राशि उन उद्योगों से ली जाएगी, जो अपने उत्पाद में जैव संसाधनों का इस्तेमाल करते है । म.प्र. जैव विविधता बोर्ड की १२वी बैठक में आए इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई है । अब सालाना ३ करोड़ रूपये से अधिक का व्यापार करने वाले उद्योगों के मुनाफे से ०.५ फीसदी (यानी डेढ़ लाख रूपये) राशि ली जाएगी । इससे राज्य सरकार की आय में सालाना दो हजार करोड़ की वृद्धि होगी ।
बोर्ड जैविक संसाधनों तक पहुंच और सहयुक्त जानकारी तथा फायदा बंटाना विनियम २०१४ लागू करने जा रहा है । बैठक मेंमंजूरी मिलने के बाद बोर्ड ने राशि लेने की रणनीति बनाना शुरू कर दी है । सूत्र बताते है कि बोर्ड ऐसे उद्योगों की जानकारी खंगाल रहा है, जो जैव संसाधनों का उपयोग करते हैं । इन उद्योगों को अगले एक से डेढ माह में राशि जमा करने के नोटिस थमाए जा सकते है । २००२ के जैव विविधता अधिनियम में जैव संसाधनों का उपयोग करने वाले उद्योगों के फायदे से राशि लेने का नियम है । केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जैव विविधता मंत्रालय ने २०१४ में इसे लेकर गाइडलाइन भी जारी की है । प्रदेश इस गाइड लाइन का पालन करने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है ।
बोर्ड के निशाने पर बीडी, शकर, गुड़, शराब सहित वे सभी उद्योग है, जिनमें जैविक वस्तुआें का इस्तेमाल किया जाता है । इनमें कपास से धागा और कपड़ा बनाने वाले उद्योग, गन्ने से शकर बनाने और उसका वाणिज्यिक उपयोग करने वाले उद्योग, माल्ट से बियर, अनाज-अंगूर से शराब बनाने वाले उद्योग, कोयला, इमारती लकड़ी, तेदूपत्ता से बीड़ी बनाने वाले सहित अन्य उद्योग शामिल है ।
इस कानून के तहत बोर्ड ने वर्ष २०१२ में पहली बार उद्योगों से उनकी कमाई से हिस्सा मांगा था । बोर्ड के तत्कालीन सदस्य सचिव आरजी सोनी ने प्रदेश के ८०० उद्योगोंको नोटिस देकर राशि जमा करने को कहा था । उद्योगपतियों ने राशि देने से इनकार किया तो सोनी कोर्ट चले गए । कोर्ट ने बोर्ड के निर्णय को सही ठहराया था । वही एनजीटी ने देशभर में उद्योगों से ये राशि वसूलने को कहा था ।
क्षरण जारी, कहीं निराकार न हो जाए ज्योतिर्लिंग
म.प्र. स्थित आेंकारेश्वर ज्योतिर्लिग का मूल स्वरूप बदल रहा है ये तेजी से साकार से निराकार रूप की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन ऐसा किसी चमत्कार से नही बल्कि लापरवाही की वजह से हो रहा है । १९९८ में पहली बार ज्योतिर्लिग के क्षरण की बात सामने आई थी । पिछले २० सालों में इस बात पर सहमति नहीं बन पाई कि ज्योतिर्लिग का क्षरण कैसेरोका जाए । २०१२ में आेंकारेश्वर षड्दर्शन संत मण्डल के प्रतिनिधिमण्डल ने शंकराचार्य स्वरूपानंद से ज्योतिर्लिग के मूल स्वरूप को धर्मसंगत संरक्षित करने का सुझाव मांगा था ।
शंकराचार्य का मानना था कि भगवान आेंकारेश्वर ज्योतिर्लिग के मूल स्वरूप में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह दुनिया में एकमात्र स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है । हालांकि उन्होंने क्षरण रोकने के लिए स्कटिक या सोने का अवरण लगाने का सुझाव जरूर दिया था । इस बात को भी करीब पांच साल हो गए, लेकिन मन्दिर ट्रस्ट कार्य शुरू नहीं कर सका है ।
इसी प्रकार महाकाल ज्योतिर्लिंग में श्रद्धालु गभगृह स्थित ज्योतिर्लिंग पर पंचामृत हाथ से नहीं मल सकेगें । अभिषेक सिर्फ सवा लीटर दूध से ही किया जा सकेगा । मन्दिर प्रशासक एसएस रावत ने पंडे-पुजारियों को आश्वस्त कर का है कि नई व्यवस्था में मन्दिर की परम्पराआें का विशेष ध्यान रखा जाएगा । आचरण एवं नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाएगा । श्रद्धालुआें से अनुरोध किया जाएगा कि वे अभिषेक, पूजन की सामग्री अच्छी गुणवत्ता की लाएं ताकि शिवलिंग का क्षरण रोका जा सके । मन्दिर क्षेत्र में बिकने वाली पूजन सामग्री की भी नियमित जांच होगी । प्रशासक रावत के अनुसार नई व्यवस्था के तहत अब सिर्फ पंडे पुजारी ही नियमित आरती के समय ज्योतिर्लिंग का हाथ से मलकर अभिषेक कर सकेंगे ।
स्पाइडर मैन की तरह दीवार पर चढ़ सकेंगे लोग
आने वाले दिनों में हर काई स्पाइडर मैन की तरह दीवार व पहाड़ पर चढ़ सकेगा । इसके लिए न रस्सी की जरूरत पड़ेगी और न ही ग्रापलिंग हुक की ।
भारतीय प्रौघोगिक संस्थान मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के प्रशिक्षुआेंकी ओर से तैयार किए वॉल ई सूट को पहनकर आदमी चंद मिनटों में चार से पांच मंजिला भवन की दीवार चढ़ सकता है ।
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