सोमवार, 19 जून 2017

कविता
बेहिसाब जंगल कटे
कृष्ण स्वरूप शर्मा 


बेहिसाब जंगल कटे, सूख गया पाताल । 
बेपानी अब हो गया, मानवता का हाल । ।

जंगल भी घबरा गये, चिंतित हैं सब जीव । 
इधर कुचलती आ रही, मानव भीड़ अजीब ।।

आवश्यक, हर जीव है, जीवन का कुछ अर्थ ।
संरक्षण इनका करें, सृजन नहीं है व्यर्थ ।।

पर्वत नंगे हो गये, नदियाँ वस्त्र विहीन । 
सन्तानों ने कर दिये, मातु पिता बेेदीन ।।

अति दूषित पर्यावरण, भूले निज तहजीब । 
मरूस्थल बढ़ते जा रहे, जंगल नहीं नसीब ।।

आरी में बन कर लगी, जब लकड़ी की मूँठ ।
अपनों ने धोखा दिया, पेड़ हो गए ठूँठ ।।

दंड कोई ऐसा मिले, मानव हत्या मान ।
हैं सजीव सब वृक्ष तो, हत्या एक समान ।।

हुए स्वार्थ में बुद्धि के, सारे बंद कपाट ।
बैठे हैं जिस पेड़ पर, रहे उसी को काट ।। 

कोई टिप्पणी नहीं: