प्रकाशन के तीन दशक
पर्यावरण संगोष्ठी एवं शिखर सम्मेलन सम्पन्न
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
पर्यावरण डाइजेस्ट के प्रकाशन के तीन दशक पूर्ण होने पर ३० मई को रतलाम में एवं नई दिल्ली में ५ एवं ६ जून को कार्यक्रम आयोजित किये गये ।
पर्यावरण और जन संचार विषय पर रतलाम में आयोजित संगोष्ठी में चिंतक, विचारक और पूर्व मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन शरदचन्द्र बेहार ने अपने उद्बोधन में पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रकृति और मानव के अलगाव को रोकने की महती आवश्यकता जताई । राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर पर्यावरण डाइजेस्ट द्बारा आयोजित संगोष्ठी में पत्रिका के सम्पादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने पत्रिका की तीन दशकीय यात्रा के उतार-चढ़ाव को रेखाकिंत करने के साथ ही अतिथियों का स्वागत सूत की मालाआें से किया ।
चिंतक, विचारक और पूर्व मुख्य सचिव श्री शरदचन्द्र बेहार ने पर्यावरण संरक्षण के वर्तमान में प्रचलित मॉडल को अपर्याप्त् बताया । उन्होंने कहा कि विकास के साथ प्रकृति का मनुष्य के साथ अलगाव हो रहा है । इस अलगाव को दूर करना आवश्यक है । यदि मानव का प्रकृति से अलगाव इसी तरह होता रहा तो पर्यावरण को संरक्षित करना बहुत ही कठिन हो जायेगा । उन्होंने गांधीजी की हिन्द स्वराज पुस्तक में लिखे गये एक अंश पाश्चात्य संस्कृति खतरनाक हैं, अपनी संस्कृति को संरक्षित रखना जरूरी है को उदधृत करते हुए कहा कि यदि हम संस्कृति को बचा कर रखेगे तो स्वत: प्रकृति का मनुष्य के साथ तादात्म्य बना रहेगा और सुगमतापूर्वक पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकेगा ।
जिम्मेदारी जागरूकता से आती हैंऔर जन संचार इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । उन्होंने कहा कि गुड गर्वनेंस के लिये सरकार का संवेदनशील होना और नागरिकों का प्रबुद्ध होना भी जरूरी है । दोनों ही गुण मिलने पर शासन बेहतर हो सकता है । श्री बेहार ने कहा कि पर्यावरण डाइजेस्ट पत्रिका पर्यावरण सरंक्षण के जिस मिशन में लगी हैं वह बहुत सराहनीय है ।
वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र सिंह जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि पर्यावरण के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिये हर वर्ष करोड़ों की संख्या में पौधे लगाये जाते हैं । पर्यावरण संरक्षण के लिये कानून तो कड़े बनाये गये हैं किन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव मेंउनका अनुपालन ठीक से नहीं हो पा रहा है । पर्यावरण संरक्षण के लिये सामाजिक समूहों और आम व्यक्ति को जागरूक बनकर पूर्ण निष्ठा से सजगता पूर्वक अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करना होगा, तभी पर्यावरण संरक्षित हो सकेगा ।
रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने पर्यावरण संरक्षण के लिये अपने उद्बोधन में कहा कि हमारी दिनचर्या में हमारे पारिवारिक वातावरण में, हमारी रूचि में, हमारे ड्राईग रूम के साथ ही जन संचार के तमाम माध्यमों में भी चहूं ओर पर्यावरण का स्थान हमें संरक्षित करना होगा । जब यह संरक्षित होगा तो वह हमारे बच्चें की भी आदतों में शामिल होगा । जब चर्चा होगी तो बात दूर तक जायेगी और उसके परिणाम अपेक्षित निकलेगे । संचार क्रांति के माध्यमों में अभी पर्यावरण विषय ही नदारत है । यदि इस विषय को जल्द ही हमने अपने रोजमर्रा के जीवन में शामिल नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियों को भयावह परिणामों में रूबरू होना होगा ।
संगोष्ठी में डी.एफ.ओ. क्षितिज कुमार, पर्यावरण प्रेमीजन उपस्थित थे । आभार प्रदर्शन पर्यावरण डाइजेस्ट के संयुक्त सम्पादक कुमार सिद्धार्थ और संचालन आशीष दशोत्तर ने किया ।
नई दिल्ली में विश्व स्वच्छ पर्यावरण शिखर सम्मेलन नई दिल्ली स्थित इण्डिया इन्टरनेशनल सेटर में विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर ५ एवं ६ जून को पर्यावरण डाइजेस्ट मासिक पत्रिका के प्रकाशन के तीन दशक पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विश्व स्वच्छ पर्यावरण शिखर सम्मेलन २०१७ का आयोजन भारतीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संस्थान नई दिल्ली तथा पर्यावरण डाइजेस्ट मासिक पत्रिका के संयुक्त तत्वाधान में किया गया । इसका प्रायोजन राष्ट्रीय स्वच्छता शिक्षण एवं शोध संस्थान तथा भारतीय विश्व विघालय परिसंघ द्वारा किया गया । इस सम्मेलन के मुख्य विषय स्वच्छ भारत के लिये स्वच्छ पर्यावरण विषय पर विस्तार से चर्चा की गयी ।
नई दिल्ली में दिनांक ५ एवं ६ जून २०१७ को आयोजित विश्व स्वच्छ पर्यावरण शिखर सम्मेलन का उदघाटन मुख्य अतिथिद्वय प्रोफेसर तथागत रॉय, राज्यपाल, त्रिपुरा एवं प्रोफेसर कप्तन सिंह सोलंकी, राज्यपाल, हरियाणा के द्वारा किया गया । इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए राज्यपाल प्रोफेसर तथागत रॉय ने बताया कि भारत वर्ष ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में पर्यावरण जन-जागरण अभियान ५ जून १९७२ को स्वीडेन की राजधानी स्टॉकहोम से प्रारंभ हुआ और उसके बाद पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण की ओर लोगों का ध्यान केन्द्रित हुआ । उन्होंने इस शिखर सम्मेलन के प्रायोजक भारतीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संस्थान, पर्यावरण डाइजेस्ट, भारतीय विश्वविद्यालय परिसंघ, राष्ट्रीय स्वच्छता शिक्षण एवं शोध संस्थान तथा संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध अन्तर्राष्ट्रीय विश्व शान्ति प्रबोधक महासंघ को साधुवाद देते हुए इन संस्थाआें के निदेशक मण्डल के सदस्यों को त्रिपुरा आने का निमंत्रण दिया तथा स्वच्छता संबंधी कार्यक्रमों को मूर्त रूप देने हेतु प्रेरित किया ।
इस अवसर पर उन्होंने डॉ. प्रिय रंजन त्रिवेदी द्वारा रचित अंग्रेजी पुस्तक ऑल एबाउट त्रिपुरा नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया । अपने भाषण में हरियाणा के राज्यपाल प्रोेफेसर कप्तन सिंह सोलंकी ने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि आज उन्होंने इस शिखर सम्मेलन के दौरान हरियाणा से संबंधित पुस्तक का लोकार्पण किया क्योंकि हरियाणा इस वर्ष अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंति मना रहा है । उन्होंने डॉ. प्रिय रंजन त्रिवेदी के प्रस्ताव की प्रशंसा करते हुए कहा कि हरियाणा में स्वच्छता, पर्यावरण तथा अन्य रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों को प्रारंभ करने हेतु भूखण्ड शीघ्र ही मुहैया कराया जायेगा ताकि एक हरित प्रांगण का निर्माण हो सके ।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप मेंकेन्द्रीय सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्री डॉ. थावरचन्द गेहलोत ने पर्यावरण तथा पर्यावरण संस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान प्रारंभ करके भारतवर्ष को स्वच्छ तथा हरा-भरा रखने की दिशा में एक अभूतपूर्व कार्य किया है । इस कार्यक्रम के मुख्य प्रायोजक कुलाधिपति डॉ. प्रिय रंजन त्रिवेदी एवं पर्यावरणीय पत्रकार डॉ. खुशालसिंह पुरोहित प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने इस शिखर सम्मेलन का विषय यानि स्वच्छ, हरित एवं कुशल भारत हेतु कौशलयुक्त भारत रखा है जिस पर देश-विदेश के प्रकाण्ड विद्वानोंने दो दिनोंतक विचारमंथन किया ।
प्रारंभ में पर्यावरण डाइजेस्ट के संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने अपने स्वागत भाषण में अपनी पत्रिका के तीन दशक पूरे होने पर लेखकों, सवांददाताआें एवं पाठकों को धन्यवाद देते हुए बताया कि पर्यावरण डाइजेस्ट भविष्य में भी पर्यावरण शिक्षण, संरक्षण एवं प्रबंधन की दिशा में तल्लीन रहेगा ।
इस अवसर पर बांग्लादेश के उच्चयुक्त सैयद मुआजम अली, बुलगेरिया के राजदूत पेटकोडोएकोव, ग्याना के उच्चयुक्त डेविड गोल्डविन पोलार्ड, हंगरी की विज्ञान और प्रौघोगिकी सचिव हिल्डा फारकस, कोरिया की वैज्ञानिक सचिव इन्सुक जांग, वोखार्ड फाउंडेशन के निदेशक डॉ. हुजैफा खोराकीवाला, सल्वेनिया के राजदूत जोसेफ ड्रोफोनिक, तुनीशिया के राजदूत नजमेद्दीन लखाल, सेनेगल के राजदूत एल. हादजी इबोबोई, शेशल्स के उच्चयुक्त फिलिप ली गाल, राष्ट्रीय संरक्षक संस्थान के कुलपति प्रो. पी.एन. शास्त्री, महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, केरला के कुलपति प्रो. बाबु सेबेस्टीयन, मगध तथा विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार के अतिरिक्त भारतवर्ष के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के प्राचार्यों ने अपने-अपने विचार प्रकट किये ।
इस अवसर पर पत्रकारिता, जनसंचार, ग्रामीण विकास, उद्यमिता, स्वच्छ भारत अभियान, पर्यावरण जन-जागरण, आपदा प्रबंधन, शैक्षिक प्रशासन तथा कूटनीति के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त् विद्वानों को भी सम्मानित किया गया है ।
अतं में शिखर सम्मेलन के संयोजक डॉ. प्रियरंजन त्रिवेदी एवं डॉ. खुशालसिंह पुरोहित के साथ-साथ सह-संयोजक डॉ. उत्कर्ष शर्मा एवं डॉ. तन्मय रूद्र ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए घोषणा करते हुए बताया कि भारतवर्ष की मुख्य समस्याआें में अशांति, गरीबी, बेरोजगारी, प्रदूषण, दोषपूर्ण शिक्षानीति एवं जनसंख्या विस्फोट है । इन समस्याआें का निदान तभी संभव है जब कौशल विकास के माध्यम से भारतवर्ष के सभी युवा-युवतियोंको प्रशिक्षित किया जाये । अगर प्रशिक्षण के दौरान उन्हें उद्यमिता विकास के बारे मेंभी प्रेरित किया जाता है तो और भी अच्छी बात है ।
शिखर सम्मेलन में पारित प्रस्तावों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदूषण तथा बेरोजगारी को साथ-साथ समाप्त् करने की दिशा में काम होना चाहिए । इसके लिए आप सभी पर्यानुकूलित रोजगार के क्षेत्र में प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए ।
यह भी घोषणा हुई कि इस कार्यक्रम तथा शिखर सम्मेलन के आयोजक भारतीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संस्थान के ३७वें वार्षिकोत्सव, पर्यावरण डाइजेस्ट मासिक पत्रिका के ३०वें वार्षिकोत्सव, भारतीय विश्वविद्यालय परिसंघ के १३वें वार्षिकोत्सव तथा नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ क्लीनलीनेस एजुकेशन एण्ड रिसर्च के तीसरे वार्षिकोत्सव के अवसर पर स्वच्छ पर्यावरण विषयक एक श्वेत पत्र शीघ्र ही निर्गत किया जायेगा ।
ज्ञातव्य है कि भारतीय विश्वविद्यालय परिसंघ जिनके अंतर्गत लगभग नौ सौ विश्वविद्यालय आते हैं, के कुलाध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारीगण ने भी इस शिखर सम्मेलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया तथा आगे के कार्यक्रमों के बारे मेंबताया कि इन सभी विश्वविद्यालयों में कौशल विकास और खासकर स्वच्छता शिक्षण पर बल देकर विभिन्न पाठ्यक्रमोंको जल्द प्रारंभ किया जायगे जिससे स्वच्छ भारत का लक्ष्य हासिल हो सके ।
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