पर्यावरण दिवस पर विशेष
ताकि बचा रहे ग्लेशियरों का अस्तित्व
जाहिद खान
नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा, यमुना नदियों के बाद गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियरों को भी जीवित व्यक्ति यानी एक नागरिक के अधिकार दे दिए है ।
अदालत का कहना है कि इनको साफ-सुथरा रखने और संरक्षण देने की जरूरत है । इन्हें भी कानूनी अधिकार मिलना चाहिए । ग्लेशियर ही नहीं, इस इलाके की बाकी नदियां, झील-झरने और घांस के मैदान भी इस श्रेणी में रखे जाएं । न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की संयुक्त खण्डपीठ ने ये महत्वपूर्ण निर्देश हाल ही में एक जनहित याचिका के संदर्भ में दिए है ।
अपने फैसले में अदालत ने कहा है कि इन ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए । ग्लेशियरों और नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए अदालत ने सरकार को और भी कई निर्देश दिए हैं । मसलन, सरकारें छह महीने में गंगा नदी के लिए अंतरप्रांतीय परिषद का गठन करें । आगामी तीन महीने के अंदर गंगा किनारे प्रदूषण रहित श्मशान घाट बनाए जाएं ।
अदालत के इस फैसले के बाद अब गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियर को संवैधानिक व्यक्ति का दर्जा हासिल हो गया है । देश के नागरिकों की तरह उन्हें भी संवैधानिक अधिकार हासिल होंगे । इन्हें प्रदूषित करना या नुकसान पहुंचाना जीवित इंसानों को नुकसान पहुंचाने जैसा अपराध होगा । ग्लेशियरों के अस्तित्व को बचाने के लिए ऐसे ही किसी क्रांतिकारी फैसले की दरकार थी ।
ग्लेशियरों को जीवित व्यक्ति का दर्जा मिलने से निश्चित तौर पर इन पर्वतीय इलाकों में मानवीय गतिविधियां सीमित होगी, जिसका असर ग्लेशियर की सेहत पर पड़ेगा और इनके पिघलने की गति भी कम होगी । पर्यावरण सुधारने और ग्लेशियरों को बचाने के लिहाज से अदालत का यह फैसला सही ही है ।
उत्तराखंड के पर्यावरण और प्रमुख नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए सरकार और न्यायपालिका की यह कोई पहली कोशिश नहीं है । इससे पहले भी केन्द्र सरकार ने एक अभिनव कदम उठाते हुए उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम तक के इलाके को इको सेसिटिव जोन घोषित कर दिया था । वहीं अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब इसी नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने एक दीगर फैसले में गंगा और युमना नदियों को जीवित व्यक्तियों का दर्जा दिया था और इन नदियों के किनारों से अतिक्रमण हटाने एवं कचरा, गंदगी डालने के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही थी ।
गौरतलब है कि हरिद्वार निवासी अधिवक्ता ललित मिगलानी ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर अदालत से गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने की गुहार लगाई थी । याचिकाकार्ता ने अपनी याचिका में अदालत से आग्रह किया था कि गंगोत्री, यमुनोत्री समेत अन्य ग्लेशियरों एवं हिमालय को भी गंगा-यमुना नदी की तर्ज पर जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया जाए । बहरहाल, अदालत ने इस मामले में पहले तो संबंधित पक्षों की राय जानी और उसके बाद अपना फैसला सुनाया ।
अदालत ने अपने इस विस्तृत फैसले में राज्य के मुख्य सचिव को अधिकृत किया है कि वे शहर, कस्बों व नदी और तालाब किनारे रह रहे लोगों को इस आदेश के बारे में जानकारी देकर जागरूक करें । अदालत ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि गंगा नदी में किसी भी अवस्था में मल-जल न जाने पाए । जो प्रतिष्ठान सीवर व अन्य गंदगी बहा रहे है, उन्हें सील कर दिया जाए । पीठ ने इस काम के लिए बाकायदा कुछ लोगों की जिम्मेदारी भी तय की है । उत्तराखंड के मुख्य सचिव, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक प्रवीण कुमार, नमामी गंगे के कानूनी सलाहकार ईश्वर सिंह, चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमी के निदेशक बलराम के. गुप्त व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी मेहता व उत्तराखंड के महाधिवक्ता को इनकी सुरक्षा के लिए बतौर संरक्षक नियुक्त किया गया है ।
गंगौत्री और यमुनोत्री ग्लेशियर की ओर से ये लोग अब कहीं भी, कोई भी मामला दर्ज कर सकेंगे । ग्लेशियर और उनसे निकलने वाली नदियों की जीवंतता के दर्ज और इनके अधिकारों की हिफाजत की जवाबदेही अब सीधे-सीधे इन अभिभावकों की होगी ।
उत्तराखंड में हिमालय क्षेत्र में करीब १२०० ग्लेशियर है । गंगोत्री ग्लेशियर हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े हिमनद में से एक है । यह ग्लेशियर करीब ३०० छोटे-बड़े ग्लेशियरों से मिलकर बना है । गंगोत्री ग्लेशियर समूह के अन्तर्गत ढोकरानी-बमक ग्लेशियर, चोरबाड़ी ग्लेशियर, द्रोणागिरी-बागनी ग्लेशियर, पिण्डारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, कफनी, सुन्दरढंुगा, संतोपंथ, भागीरथी खर्क, टिप्रा, जौन्धार, तिलकू और बंदरपूंछ ग्लेशियर सबसे बड़े ग्लेशियर है ।
गंगौत्री ग्लेशियर का आयतन तकरीबन २७ घन किलोमीटर है । इसकी लम्बाई ३० किलोमीटर और चौड़ाई तकरीबन ४ किलोमीटर है । गंगोत्री ग्लेशियर शिवलिंग, थलय सागर, मेरू और भागीरथी प्रथम, द्वितीय और तृतीय बर्फीली चोटियों से चारों तरफ से घिरा हुआ है । गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने गौमुख से ही भागीरथी नदी यानी गंगा का उद्गम होता है ।
दूसरी और, यमुनोत्री ग्लेशियर यमुनोत्री मन्दिर के पीछे एक छोटा सा ग्लेशियर है । इस ग्लेशियर पर अभी तक बहुत काम न होने की वजह से वैज्ञानिकों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है । विभिन्न वैज्ञानिक शोध बता रहे है कि पूरे हिमालय क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन हवा के तापमान में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है । जिसके प्रभाव से हिमालय में छोटे-बड़े करीब ९५७५ ग्लेशियर जूझ रहे हैं । बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ रही है ।
गर्म हवा की वजह से हिमालय की जैव विविधता प्रभावित हुई है । जब-तब जंगल में लगने वाली आग और उससे निकलने वाला धुंआ और कार्बन भी ग्लेशियरों को प्रभावित करते हैं । इस धुंए और कार्बन से ग्लेशियरों पर एक महीन काली परत नजर आने लगी है । हिमालय से १०० से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां निकलती है । ग्लेशियर जब पिघलते हैं, तो इस पर चढ़ा कार्बन पानी के साथ बहकर लोगों तक पहुंच जाता है जो मानव सेहत के लिए खतरनाक साबित होता है ।
ग्लोबल वार्मिग से पूरे हिमालय क्षेत्र के तापमान में तेजी से बदलाव हो रहा है । जम्मू कश्मीर, हिमाचल से लेकर उत्तराखंड तक में हो रहे अलग-अलग शोध इसकी पुष्टि कर रहे हैं । हवा में बदलाव का असर ग्लेशियरों की सेहत पर भी पड़ रहा है । ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है, जिससे वे सिकुड़ रहे हैं । आलम यह है कि हिमालय के कई ग्लेशियर हर साल दस से बारह मीटर के पीछे खिसक रहे हैं । जहां तक गंगोत्री ग्लेशियर की बात है, तो यह ग्लेशियर हर साल अठारह मीटर पीछे खिसक रहा है । ऐसे में इन्हें बचाने के लिए जल्द प्रभावी उपाय करने की जरूरत है ताकि ग्लेशियर और पर्यावरण में हो रहे इस नकारात्मक बदलाव को रोका जा सके । यदि अब भी ऐसे उपाय न किए गए, तो पूरे देश के पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा ग्लेशियरों को बचाने के लिए हमारे सामने ग्लोबल वार्मिग की चुनौती तो है ही, वही गलत मानवीय आदतें व नदियों और ग्लेशियर के प्रति बुरा व्यवहार भी एक बड़ी चुनौती है । सब कुछ जानते हुए भी हम अपनी आदतेंबदलने को तैयार नहीं है । यही वजह है कि इन मामलों में अब अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ रह है । नैनीताल हाईकोर्ट का हालिया फैसला इसी परिप्रेक्ष्य में है, जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें