शनिवार, 18 अगस्त 2018

ज्ञान विज्ञान
घोड़े आपके हावभाव को याद रखते हैं 
सदियों से घोड़ों का इस्तेमाल विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता रहा है । एक समय में घोड़े लड़ाई के मैदानों और सवारी का मुख्य साधन हुआ करते थे । लेकिन घोड़ों में एक और विशेष बात है। घोड़े मानव चेहरों के हावभाव याद रख सकते हैं। वे पिछली मुलाकात में आपके व्यवहार, मुस्कराने या गुस्से, के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं।  
वर्ष २०१६ में पोर्टसमाउथ विश्वविद्यालय की लीएन्रप्रूप्स और ससेक्स विश्वविद्यालय के उनके सहयोगियों ने बताया था कि घोड़े इंसानों के खुश या गुस्से वाले चेहरे की तस्वीरों पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं। अब उन्होंने अध्ययन किया है कि क्या घोड़े चेहरे के हाव-भाव के आधार पर लोगों की स्थायी यादें भी बना सकते हैं।
इस अध्ययन के लिए उन्होंने घोड़ों को दो मानव मॉडल में से एक की तस्वीर दिखाई । दोनों मॉडल एक ही व्यक्ति के थे किंन्तु एक के चेहरे पर गुस्से का तथा दूसरे के चेहरे पर खुशी का भाव था । कुछ घंटों बाद मॉडल खुद तटस्थ मुद्रा में घोड़ों के सामने आया । तुलना के लिए एक और प्रयोग साथ में किया गया था। इसमें दूसरी बार व्यक्ति की बजाय एक अन्य मॉडल को ही घोड़े के सामने रखा गया  था ।   
घोड़े नकारात्मक और खतरनाक चीजों को बाइंर् आंख से एवं सका- रात्मक सामाजिक उद्दीपन वाली चीजों को दाइंर् आंख से देखना पसंद करते हैं। अध्ययन में, जब घोड़ों ने मॉडल को पहले गुस्से में देखा, तो उन्होंने वास्तविक व्यक्ति को देखते समय अपनी बाइंर् आंख का अधिक उपयोग किया । इसके साथ ही उन्होंने फर्श को कुरेदने और सूंघने जैसे व्यवहार भी प्रदर्शित किए जो तनाव को दर्शाते हैं । इसके विपरीत, जब उनको दिखाया गया मॉडल मुस्करा रहा था तो वास्तविक व्यक्ति के सामने आने पर उन्होंने दाइंर् आंख का अधिक इस्तेमाल किया । इससे पता चलता है कि घोड़ों को याद रहा कि पहली मुलाकात में उस व्यक्ति का व्यवहार कैसा था। 
वैसे पहले भी घोड़ों की अद्भूत समझदारी के बारे में काफी चर्चा हुई है । बीसवीं सदी की शुरुआत में कलेवर हैंस नाम का एक घोड़ा अपने पैरों की टाप से गणितीय समस्याओं का हल बताया करता था । बाद में पता चला था कि घोड़े को उसका प्रशिक्षक कुछ सुराग देता था कि उसे क्या करना है । वर्तमान प्रयोग में इस तरह की कोई चालबाजी नहीं थी ।
कई अन्य जानवरों, जैसे भेड़ और मछली में मानव चेहरों को याद रखने की क्षमता पाई गई है। जंगली कौवा वर्षों तक उन लोगों का चेहरा याद रखते हैं जिन्होंने उसके साथ बुरा व्यवहार व्यवहार किया हो, और यहां तक वह अन्य कौवोंको भी यह बात बता देता है।
इस प्रयोग से खास बात यह पता चली है कि घोड़े केवल तस्वीरों में लोगों की अभिव्यक्ति पर आधार पर राय बना सकते हैं । प्रूप्स के अनुसार यह कुछ ऐसा है जिसे पहले जानवरों में नहीं देखा गया है।
पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास में नया युग 
अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भ विज्ञान संघ ने हाल ही में घोषणा की है कि पृथ्वी के वर्तमान दौर को एक विशिष्ट काल के रूप में जाना जाएगा । यह होलोसीन युग का एक हिस्सा है जिसे नाम दिया गया है मेघालयन । भूगर्भ संघ के मुताबिक हम पिछले ४२०० वर्षों से जिस काल में जी रहे हैं वही मेघायलन है।
भूगर्भ वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के लगभग ४.६ अरब वर्ष के अस्तित्व को कई कल्पों, युगों, कालों, अवधियों वगैरह में बांटा है। इनमें होलोसीन एक युग है जो लगभग ११,७०० वर्ष पहले शुरू हुआ था । अब भूगर्भ वैज्ञानिक मान रहे हैं कि पिछले ४,२०० वर्षों को एक विशिष्ट नाम से पुकारा जाना चाहिए - भारत के मेघालय प्रांत से बना नाम मेघालयन ।
   दरअसल, भूगर्भीय समय विभाजन भूगर्भ में तलछटों की परतों, तलछट के प्रकार, उनमें पाए गए जीवाश्म तथा तत्वों केसमस्थानिकों की 
उपस्थिति के आधार पर किया जाता है। समस्थानिकों की विशेषता है कि वे समय का अच्छा रिकॉर्ड प्रस्तुत करते हैं । इनके अलावा उस अवधि में घटित भौतिक व रासायनिक घटनाओं को भी ध्यान में रखा जाता है ।
अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भ विज्ञान संघ ने बताया है कि दुनिया के कई क्षेत्रों में आखरी हिम युग के  बाद कृषि आधारित समाजों का विकास हुआ था। इसके बाद लगभग २०० वर्षों की एक जलवायु-सम्बंधी घटना ने इन खेतिहर समाजों को तहस-नहस कर दिया था। इन २०० वर्षों के दौरान मिस्त्र, यूनान, सीरिया, फिलीस्तीन, मेसोपोटेमिया, सिंधु घाटी और यांगत्से नदी घाटी में लोगों का आव्रजन हुआ और फिर से सभ्यताएं विकसित हुइंर्। यह घटना एक विनाशकारी सूखा था और संभवत: समुद्रों तथा वायुमंडलीय धाराओं में बदलाव की वजह से हुई थी ।
इस अवधि के भौतिक, भूगर्भीय प्रमाण सातों महाद्वीपों पर पाए गए हैं । इनमें मेघायल में स्थित मॉमलुह गुफा (चेरापूंजी) भी शामिल है । भूगर्भ वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के कई स्थानों से तलछट एकत्रित करके विश्लेषण किया। मॉमलुह गुफा १२९० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह भारत की १० सबसे लंबी व गहरी गुफाओं में से है (गुफा की लंबाई करीब ४५०० मीटर है)। इस गुफा से प्राप्त् तलछटों में स्टेलेग्माइट चट्टानें मिली है ं। स्टेलेग्माइट किसी गुफा के फर्श पर बनी एक शंक्वक्कार चट्टान होती है जो टपकते पानी में उपस्थित कैल्शियम लवणों के अवक्षेपण के कारण बनती है। संघ के वैज्ञानिकों का मत है कि इस गुफा में जो परिस्थितियां हैं, वे दो युगों के बीच संक्रमण के रासायनिक चिंहा को संरक्षित रखने के के हिसाब से अनुकूल है ं। 
गहन अध्ययन के बाद विशेषज्ञों के एक आयोग ने यह प्रस्ताव दिया कि होलोसीन युग को तीन अवधियों में बांटा जाना चाहिए । पहली, ग्रीलैण्डियन अवधि जो ११,७०० वर्ष पहले आरंभ हुई थी। दूसरी, नॉर्थग्रिपियन अवधि जो ८,३०० वर्ष पूर्व शुरू  हुई थी और अंतिम मेघालयन अवधि जो पिछले ४,२०० वर्षों से जारी है। अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भ विज्ञान संघ ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है ।
मेघालयन अवधि इस मायने में अनोखी है कि यहां भूगर्भीय काल और एक सांस्कृतिक संक्रमण के बीच सीधा सम्बंध नजर आता है। 
समुद्र तल में बिछे इंटरनेट केबल से भूकंप का अंदाजा
पृथ्वी की सतह का लगभग ७० प्रतिशत भाग पानी से ढंका हुआ है, फिर भी भूकंप पता करने वाले लगभग सभी यंत्र जमीन पर लगे हैं । सिर्फ कुछ बैटरी चालित डिटेक्टर समुद्र तल पर मौजूद हैं लेकिन भूकंपविदों के पास समुद्र तल से उठने वाले भूकंप की निगरानी करने का कोई तरीका नहीं है। और इस तरह के भूकंप के कारण कभी-कभी सुनामी आती है ं । 
हाल ही में साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक तकनीक के अनुसार समुद्र तल में दस लाख किलोमीटर में फैले फाइबर ऑप्टिक केबल की मदद से भूकंप की जानकारी प्राप्त् की जा सकती है। इन केबल्स में प्रकाश किरणों के माध्यम से संकेत भेजे जाते हैं । इन प्रकाशीय संकेतों में होने वाले थोड़े बदलावों को देखकर वैज्ञानिक भूकंप का पता लगा सकते हैं।
इस तकनीक से भूकंप पता करने के लिए केबल के प्रत्येक छोर पर लेजर की जरूरत होगी और केबल की थोड़ी सी बैंडविड्थका उपयोग किया जाएगा । टेडिंगटन, यूके में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के  मौसम वैज्ञानिक गिउसेप मारा के अनुसार इस तकनीक की खोज एक आकस्मिक घटना का परिणाम है । टेडिंगटन से रीडिंग नामक स्थानों के बीच जमीन के नीचे दबे ७९ किलोमीटर लंबे केबल के एक जोड़ पर परीक्षण करते हुए उन्हें पता चला कि केबल के नजदीक का हल्का-सा कंपन्न , यहां तक कि ऊपर चल रहे ट्रेफिक का शोर, भी लेजर को थोड़ा विचलित करता है । इसके चलते प्रकाश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए अलग-अलग फासला तय करना पड़ता है ।       

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