मध्यप्रदेश पर विशेष
म.प्र. टाइगर स्टेट हो सकता है
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
राष्ट्रीय बाघ आंकलन २०१८ (बाघों की गिनती) के पहले चरण के रूझान के आधार पर वन विभाग प्रदेश में ४०० से ज्यादा बाघों की उपस्थिति का अनुमान लगा रहा है और हालात, इससे भी बेहतर परिणाम की संभावना जता रहे हैं क्योंकि बाघ प्रदेश के उन क्षेत्रों में भी देखे जा रहे हैं, जहां पहले नहीं दिखाई देते थे ।
प्रदेश में इसी साल फरवरी से मार्च के बीच हुई बाघों की गिनती के आंकड़े दिसम्बर २०१८ या जनवरी २०१९ तक घोषित होगें । इससे पहले ही प्रदेश में उत्साह का माहौल है । खासकर वन विभाग के अफसर उत्साहित है । दरअसल, उन्हें बाघों की गिनती के पहले चरण के रूझान से इतना तो तय हो गया है कि बाघों की गिनती को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाली मेरिट में प्रदेश चौथे-पाचवें नम्बर पर नही जाएगा बल्कि प्रारंभिक रूझान ``टाइगर स्टेट'' का तमगा वापस पाने की उम्मीद भी जता रहे है ।
इस बार साल २०१४ के मुकाबले ७१७ की बजाय १४३२ बीटों में बाघों की उपस्थिति के संकेत मिले हैं । इन बीटों में लिए गए बाघों के फोटो, पगमार्क, पेड़ों पर खरोंच के निशान का दस्तावेजीकरण किया गया है । जिसका परीक्षण स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफ आरआई) जबलपुर कर रहा है । गौरतलब है कि इस बार प्रदेश में बाघों की गिनती पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से ही गई है । इसी तरीके से २०१४ में कर्नाटक में बाघों की गिनती हुई थी ।
म.प्र. से टाइगर स्टेट का तमगा वर्ष २०१० में तब छिन गया था, जब २००६ की गिनती के मुकाबले बाघों की संख्या ३०० से घटकर २५७ रह गई थी और ३०० बाघों के साथ यह तमगा कर्नाटक के पास चला गया था । कर्नाटक ने २०१४ की बाघा गणना में ४०६ बाघों की गिनती कराकर अपनी प्रतिष्ठा कायम रखी । जबकि २००६ में कर्नाटक में २९० बाघ थे और उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई । २०१४ की गणना में मध्यप्रदेश में ३०८ बाघ पाए गए थे ।
वन अफसर इसलिए भी उत्साहित है क्योंकि २०१४ की गिनती के मुकाबले बाघों की संख्या २०१६ में ही बढ़ थी । विभाग ने एसएफ आरआई से प्रदेश के संरक्षित क्षेत्र (नेशनल पार्क व अभयारण्य) में बाघों की गिनती करवाई थी । तब इन क्षेत्रों में २५० वयस्क बाघ पाए गए थे । जबकि २०१४ में राष्ट्रीय स्तर पर कराई गई गणना में प्रदेश के इन्हीं क्षेत्रों में कुल २८६ बाघ गिने गए थे । जिनमें २२२ वयस्क थे । यानी दो साल में संरक्षित क्षेत्रों में २८ बाघ बढ़ गए थे ।
वन्य जीव संरक्षण से जुड़ी संस्था वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड का दावा है कि पिछले १०० सालों में बाघों की संख्या ९७ फीसदी कम हुई है । दुनिया में बाघों की कुल संख्या का ६० से ७० प्रतिशत हमारे देश में है । देश में लगभग ५० टाइगर रिजर्व हैं, उसमें से ६ म.प्र. में है । कान्हा नेशनल पार्क देश में सबसे पहले बने ०९ टाइगर रिजर्व में से एक है । भारत में पाए जाने वाले बाघों की कुल आबादी का २० प्रतिशत और विश्व में पाई जाने वाली बाघों की आबादी का १० फीसदी मध्यप्रदेश में ही है । बाघों के लिए बफर और कोर एरिया मिलाकर, देशभर में लगभग ७१ हजार वर्ग किमी क्षेत्र है । इसमें से करीब १४ प्रतिशत इलाका म.प्र. में है । विशेषज्ञ मानते है कि बाघ संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश में काफी संभावनाएं है ।
मध्यप्रदेश में संख्या बढ़ाने के साथ बाघों के सामने टेरेटरी का संकट खड़ा होने लगा है इसलिए वे अपना इलाका बदल रहे है । पिछले दो साल में देवास, उज्जैन, दतिया सहित आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में बाघ या उसकी उपस्थिति के संकेत मिल ेहैं । इन जिलों में इससे पहले बाघ नहीं देखे गए थे । वहीं करीब आधा दर्जन ऐसे भी जिले हैं, जो बाघों के लिए अच्छे रहवास साबित हो सकते है ।
वन्यजीव पर्यटन के मामले में उत्तराखंड के बाद मध्यप्रदेश का नम्बर आता है । इसके अलावा कर्नाटक, राजस्थान में भी बड़े पैमाने पर वन्यजीव पर्यटन होता है । इनके मुकाबले मध्यप्रदेश में पर्यटकों के लिए सुविधाएं ज्यादा होने का दावा किया जाता है । राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में पर्यटकों के लिए १७ बसें चलाई जाती है । वहां बस में सभी पर्यटकों को एक साथ रहना पड़ता है । जबकि प्रदेश के नेशनल पार्को में जिप्सी से सैर कराई जाती है । जिसमें छह लोग बैठते हैं और उन्हें टाइगर मूवमेंट इलाके तक ले जाया जाता है । मध्यप्रदेश में पर्यटन बढ़ने का एक और बड़ा कारण टाइगर रिजर्व एक-दूसरे से महज २०० कि.मी. दूरी पर है । पर्यटक यह भी सोचते है कि एक पार्क मेंबाघ नहीं दिखाई देगा, तो दूसरे में चले जाएंगे ।
बाघों के लिए नए रहवास विकसित करने की बात की जाए तो सतना, शहडोल, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल उनके लिए अच्छे रहवास साबित हो सकते है । दरअसल, इन जिलों के जंगल आपस में टाइगर रिजर्व को जोड़ते हैं । ये इलाके बाघों के लिए दो टाइगर रिजर्व के बीच बेहतर कॉरीडोर हो सकता है ।
छिंदवाड़ा का जंगल पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । बैतूल का जंगल महाराष्ट्र के मेलघाट और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । ऐसे ही शहडोल का जंगल बांधवगढ़ और संजय टुबरी टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । इसी तरह सतना का जंगल पन्ना और उत्तरप्रदेश के रानीपुर टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । इस कॉरीडोर में बांघों का मूवमेंट लगातार रहता है । वे कई दिन कॉरीडोर में ही बिताते है ।
विभाग अब इन कॉरीडोर को विकसित करेगा । इसे लेकर तैयारियां चल रही है । इस काम में सबसे बड़ी समस्या कॉरीडोर के बीच आ रही खेती की जमीन है । जिस पर अंतिम फैसला नहींलेने से दिक्कत आ रही है इसलिए कार्यवाही धीमी चल रही है । वन अधिकारी बताते है कि कॉरीडोर में कहीं-कहीं खुला क्षेत्र है । यदि यह भर जाए तो बेहतर प्रयास होगा । बाघ संरक्षण की दिशा में टाइगर रि-लोकेट (पुनर्स्थापन) करने की रणनीति को सबसे ज्यादा कारगर बताया जा रहा है इससे बाघों में आपसी संघर्ष के मामलों में कमी आयी है ।
म.प्र. टाइगर स्टेट हो सकता है
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
राष्ट्रीय बाघ आंकलन २०१८ (बाघों की गिनती) के पहले चरण के रूझान के आधार पर वन विभाग प्रदेश में ४०० से ज्यादा बाघों की उपस्थिति का अनुमान लगा रहा है और हालात, इससे भी बेहतर परिणाम की संभावना जता रहे हैं क्योंकि बाघ प्रदेश के उन क्षेत्रों में भी देखे जा रहे हैं, जहां पहले नहीं दिखाई देते थे ।
प्रदेश में इसी साल फरवरी से मार्च के बीच हुई बाघों की गिनती के आंकड़े दिसम्बर २०१८ या जनवरी २०१९ तक घोषित होगें । इससे पहले ही प्रदेश में उत्साह का माहौल है । खासकर वन विभाग के अफसर उत्साहित है । दरअसल, उन्हें बाघों की गिनती के पहले चरण के रूझान से इतना तो तय हो गया है कि बाघों की गिनती को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाली मेरिट में प्रदेश चौथे-पाचवें नम्बर पर नही जाएगा बल्कि प्रारंभिक रूझान ``टाइगर स्टेट'' का तमगा वापस पाने की उम्मीद भी जता रहे है ।
इस बार साल २०१४ के मुकाबले ७१७ की बजाय १४३२ बीटों में बाघों की उपस्थिति के संकेत मिले हैं । इन बीटों में लिए गए बाघों के फोटो, पगमार्क, पेड़ों पर खरोंच के निशान का दस्तावेजीकरण किया गया है । जिसका परीक्षण स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफ आरआई) जबलपुर कर रहा है । गौरतलब है कि इस बार प्रदेश में बाघों की गिनती पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से ही गई है । इसी तरीके से २०१४ में कर्नाटक में बाघों की गिनती हुई थी ।
म.प्र. से टाइगर स्टेट का तमगा वर्ष २०१० में तब छिन गया था, जब २००६ की गिनती के मुकाबले बाघों की संख्या ३०० से घटकर २५७ रह गई थी और ३०० बाघों के साथ यह तमगा कर्नाटक के पास चला गया था । कर्नाटक ने २०१४ की बाघा गणना में ४०६ बाघों की गिनती कराकर अपनी प्रतिष्ठा कायम रखी । जबकि २००६ में कर्नाटक में २९० बाघ थे और उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई । २०१४ की गणना में मध्यप्रदेश में ३०८ बाघ पाए गए थे ।
वन अफसर इसलिए भी उत्साहित है क्योंकि २०१४ की गिनती के मुकाबले बाघों की संख्या २०१६ में ही बढ़ थी । विभाग ने एसएफ आरआई से प्रदेश के संरक्षित क्षेत्र (नेशनल पार्क व अभयारण्य) में बाघों की गिनती करवाई थी । तब इन क्षेत्रों में २५० वयस्क बाघ पाए गए थे । जबकि २०१४ में राष्ट्रीय स्तर पर कराई गई गणना में प्रदेश के इन्हीं क्षेत्रों में कुल २८६ बाघ गिने गए थे । जिनमें २२२ वयस्क थे । यानी दो साल में संरक्षित क्षेत्रों में २८ बाघ बढ़ गए थे ।
वन्य जीव संरक्षण से जुड़ी संस्था वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड का दावा है कि पिछले १०० सालों में बाघों की संख्या ९७ फीसदी कम हुई है । दुनिया में बाघों की कुल संख्या का ६० से ७० प्रतिशत हमारे देश में है । देश में लगभग ५० टाइगर रिजर्व हैं, उसमें से ६ म.प्र. में है । कान्हा नेशनल पार्क देश में सबसे पहले बने ०९ टाइगर रिजर्व में से एक है । भारत में पाए जाने वाले बाघों की कुल आबादी का २० प्रतिशत और विश्व में पाई जाने वाली बाघों की आबादी का १० फीसदी मध्यप्रदेश में ही है । बाघों के लिए बफर और कोर एरिया मिलाकर, देशभर में लगभग ७१ हजार वर्ग किमी क्षेत्र है । इसमें से करीब १४ प्रतिशत इलाका म.प्र. में है । विशेषज्ञ मानते है कि बाघ संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश में काफी संभावनाएं है ।
मध्यप्रदेश में संख्या बढ़ाने के साथ बाघों के सामने टेरेटरी का संकट खड़ा होने लगा है इसलिए वे अपना इलाका बदल रहे है । पिछले दो साल में देवास, उज्जैन, दतिया सहित आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में बाघ या उसकी उपस्थिति के संकेत मिल ेहैं । इन जिलों में इससे पहले बाघ नहीं देखे गए थे । वहीं करीब आधा दर्जन ऐसे भी जिले हैं, जो बाघों के लिए अच्छे रहवास साबित हो सकते है ।
वन्यजीव पर्यटन के मामले में उत्तराखंड के बाद मध्यप्रदेश का नम्बर आता है । इसके अलावा कर्नाटक, राजस्थान में भी बड़े पैमाने पर वन्यजीव पर्यटन होता है । इनके मुकाबले मध्यप्रदेश में पर्यटकों के लिए सुविधाएं ज्यादा होने का दावा किया जाता है । राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में पर्यटकों के लिए १७ बसें चलाई जाती है । वहां बस में सभी पर्यटकों को एक साथ रहना पड़ता है । जबकि प्रदेश के नेशनल पार्को में जिप्सी से सैर कराई जाती है । जिसमें छह लोग बैठते हैं और उन्हें टाइगर मूवमेंट इलाके तक ले जाया जाता है । मध्यप्रदेश में पर्यटन बढ़ने का एक और बड़ा कारण टाइगर रिजर्व एक-दूसरे से महज २०० कि.मी. दूरी पर है । पर्यटक यह भी सोचते है कि एक पार्क मेंबाघ नहीं दिखाई देगा, तो दूसरे में चले जाएंगे ।
बाघों के लिए नए रहवास विकसित करने की बात की जाए तो सतना, शहडोल, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल उनके लिए अच्छे रहवास साबित हो सकते है । दरअसल, इन जिलों के जंगल आपस में टाइगर रिजर्व को जोड़ते हैं । ये इलाके बाघों के लिए दो टाइगर रिजर्व के बीच बेहतर कॉरीडोर हो सकता है ।
छिंदवाड़ा का जंगल पेंच और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । बैतूल का जंगल महाराष्ट्र के मेलघाट और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । ऐसे ही शहडोल का जंगल बांधवगढ़ और संजय टुबरी टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । इसी तरह सतना का जंगल पन्ना और उत्तरप्रदेश के रानीपुर टाइगर रिजर्व को जोड़ता है । इस कॉरीडोर में बांघों का मूवमेंट लगातार रहता है । वे कई दिन कॉरीडोर में ही बिताते है ।
विभाग अब इन कॉरीडोर को विकसित करेगा । इसे लेकर तैयारियां चल रही है । इस काम में सबसे बड़ी समस्या कॉरीडोर के बीच आ रही खेती की जमीन है । जिस पर अंतिम फैसला नहींलेने से दिक्कत आ रही है इसलिए कार्यवाही धीमी चल रही है । वन अधिकारी बताते है कि कॉरीडोर में कहीं-कहीं खुला क्षेत्र है । यदि यह भर जाए तो बेहतर प्रयास होगा । बाघ संरक्षण की दिशा में टाइगर रि-लोकेट (पुनर्स्थापन) करने की रणनीति को सबसे ज्यादा कारगर बताया जा रहा है इससे बाघों में आपसी संघर्ष के मामलों में कमी आयी है ।
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