हमारा भूमण्डल
भारी धातुएँ कितनी हानिकारक ?
प्रो. ईश्वरचन्द्र शुक्ल / विशाल कुमार सिंह
हम अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने हेतु विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, दालें, अनाज आदि का प्रयोग करते है ।
क्या कभी सोचा है कि इन सबकी उत्पत्ति जिस मृदा में हो रही है वह विभिन्न प्रकार के हानिकारक तत्वों से भरपूर है या मुक्त है ? आजकल भारी तत्वों से उपजाऊ जमीन प्रदूषित हो रही है जिससे अनेक प्रकार के विकार हमारे अंदर आ रहे है । कृषि योग्य भूमि का भारी धातुआें से युक्त होना बहुत बड़ा वातावरणीय प्रदूषण है । यहाँ तक कि सिंचाई के लिए शुद्ध जल का मिलना भी बहुत कठिन हो रहा है । अधिकतर कल-कारखानों द्वारा निकला प्रदूषित जल जमीन में जा रहा है तथा कई जगह तो यही सिंचाई के कामआता है जिससे कृषि उत्पाद प्रभावित हो रहे है ं । भारी तत्वों द्वारा प्रदूषित सब्जियाँ तथा फल मनुष्य तथा जानवरों को बीमार कर रहे हैं ।
पौधों की वृद्धि के लिए कापर, आयरन, जिंक, निकिल और मैंग्नीज सूक्ष्म मात्रा में अवश्य होते हैं लेकिन जब इनकी मात्रा अत्यधिक होती है तो विषाग्र हो जाती है । कृषि उपज बढ़ाने के लिए किसान कम्पोस्ट तथा कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक, नाली के पानी की गाद, कल कारखानों से निकले जल का प्रयोग सिंचाई में कर रहा है जिससे मृदा में भारी तत्वों का अनुपात बढ़ रहा है । इस प्रकार आर्सेनिक, निकल, कोबाल्ट, कापर, कैडमियम, जिंक, मैग्नीज, लेड़, क्रोमियम आदि की उपस्थिति मृदा मेंबढ़ती जा रही है । यही पौधों के विभिन्न भागों में जड़ द्वारा पहुँच रहे हैं । भारी तत्वों का पौधों मे ंएकत्र होना पानी में उसकी सान्द्रता पर निर्भर करता है । भारी तत्व पौधे के विभिन्न भागोंमें अधिकतर सिंचाई के पानी तथा मृदा द्वारा जाते है ।
जहाँ तक ज्ञात है कि पौधों में तत्वों के जाने की विधि एक विशेष प्रोटीन जो कि कोशिका के जीव द्रव्य झिल्ली में रहती है द्वारा आयन के रूप में अवशोषित होकर स्थानान्तरित होते है । प्रोटीन में मुख्यत: प्रोटीन पम्प जो कि ऊर्जा को ग्रहण करती है तथा वैघुत रसायन अवयव पैदा करती है । दूसरी प्रोटीन सह तथा प्रति अभिगमन है जो कि ए.टी.पी. द्वारा पैदा की वैघुत शक्ति द्वारा आयन को ले जाती है । तीसरी प्रोटीन आयन के अभिगमन को कोशिका में ले जाती है । प्रत्येक अभिगमन विधि आयन के परास को ले जाती है । धनात्मक धातु आयन ऋणात्मक आयन की ओर आकर्षित होते है तथा ऋणात्मक आयन धनात्मक की ओर आकर्षित होते है । आयनों के घुलने की गति पौधों की प्रजातियों पर निर्भर करती है ।
ककड़ी, टमाटर, प्याज, सेम, पेपरमिन्ट, लौकी, आदि सब्जियां जो कि शहर में पैदा की जाती है महापालिका, घरेलू पानी तथा कुछ कारखानों के पानी से प्रदूषित होती है । अत: इनमें भारी तत्वों कैडमियम, लेड, कापर तथा निकिल की मात्रा गांव मेंउगाई गई सब्जियों की तुलना में अधिक होते है ।
पौधे में भारी तत्वों के एकत्र होने के कारण केवल वातावरण के संदूषण पर ही नहीं बल्कि पौधों की प्रजाति पर भी निर्भर करता है । पालक में भारी तत्वों का जमावड़ा भिण्डी की तुलना में अधिक होता है । पौधों की जड़ों द्वारा धातुआें को अपने अंदर खीचने तथा तत्वों को तने तक पहॅुंचाने पर निर्भर करता है । यह भी पाया गया कि कापर, क्रोमियम का सान्द्रण पत्ते वाली सब्जियों जैसे पालक, पत्तागोभी, बैगन, चौलाई में बिना पत्ती वाली सब्जियों जैसे बैगन, भिण्डी, टमाटर आदि की तुलना में अधिक होता है ।
सब्जियों में भारी तत्वों का संग्रह मौसम के अनुसार भी होता है । गर्मियों में कैडमियम, जिंक, क्रोमियम, मैंगनीज का सान्द्रण अधिक होता है जबकि कापर, लेड तथा निकिल का सान्द्रण सर्दी में अधिक होता है । मृदा में उपस्थित हाइड्रोजन आयन भी अपना बहुत बड़ा प्रभाव डालते है । इसके प्रभाव से भारी तत्वों की घुलनशीलता तथा उनका पौधों में अवशोषित होना महत्व रखता है । धातु घुलाने वाली स्थिति में कैडमियम का सान्द्रण पुदीना में अन्य सब्जियों जैसे पालक, चुकंदर, गांठगोभी, पत्तागोभी की तुलना में अधिक होता है । इसका कारण मृदा का अम्लीय होना होता है ।
अभी तक हमने देखा कि सब्जियों में भारी तत्वों का सान्द्रण मृदा तथा वातावरण के कारण होता है । अब आप जानिये इन तत्वों का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है । भारी तत्व हमारे शरीर से सीधे तरीके से या संदूषित पानी के पीने अथवा सिंचाई द्वारा सब्जियों में जाने से प्रवेश करते है । हमारे पाचन तंत्र पर भारी तत्वों के अवशोषण का प्रभाव उनके रसायनिक गुण, मनुष्य की उम्र तथा पोषक स्तर से संबंधित होता है ।
यदि भोजन में कैल्शियम, आयरन तथा जिंक की कमी है तो भोजन से लेड का अवशोषण अधिक होगा । इनके लगातार एकत्र होने तथा जैविक विघटन न होने के कारण ये विषाक्त तत्व गुर्दे, हड्डी तथा यकृत को खराब करके विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँपैदा करते हैं । इन्हीं के आधार पर आकस्मिक स्वास्थ्य हानि को नापा जाता है । इससे कैंसर कारक या अकैंसर कारक पदार्थो का पता लगाया जाता है ।
यह प्रतिदिन भोजन लेने की मात्रा, अवधि, बारंबारता धातुआें का भोजन में सान्द्रण औसत शरीर का भार तथा अकैंसर कारक पदार्थो के प्रभाव पर निर्भर करता है । यदि इनकी मात्रा अधिक होती है तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ह ै।
अत: भारी धातुआें के सान्द्रण का प्रभाव अत्यन्त विषैला होता है जिसे प्रदूषित जल तथा मृदा आदि से निकलाना परम आवश्यक है । यदि इनकी मात्रा नियोजित नहीं रहेगी तो स्वास्थ्य समस्याएँ होती ही रहेगी । साग-सब्जियां सामान्य भोजन के मुख्य भोग है क्योंकि इनसे सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रोटीन, प्रतिआक्सी कारक, विटामिन आदि मानव शरीर को प्राप्त् होते हैं । आजकल स्वच्छ पानी की कमी के कारण शहरों में अधिकतर सिंचाई नाली के पानी से हो रही है जिससे भारी तत्वों का एकत्रीकरण शरीर में हो रहा है ।
उचित यह होगा कि प्रदूषित जल को सजावत के पौधों लकड़ी के पेड़ों को पैदा करने में प्रयोग किया जाय न कि सब्जियों के उत्पादन हेतु । अत: स्वच्छ पानी द्वारा सिंचाई की हुई सब्जियों ही स्वस्थ्यवर्धक एवं पोषण देती है । कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जाये तथा कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाय तभी हमारा हरी सब्जियों के खाने का प्रयोजन सफल होगा ।
भारी धातुएँ कितनी हानिकारक ?
प्रो. ईश्वरचन्द्र शुक्ल / विशाल कुमार सिंह
हम अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने हेतु विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, दालें, अनाज आदि का प्रयोग करते है ।
क्या कभी सोचा है कि इन सबकी उत्पत्ति जिस मृदा में हो रही है वह विभिन्न प्रकार के हानिकारक तत्वों से भरपूर है या मुक्त है ? आजकल भारी तत्वों से उपजाऊ जमीन प्रदूषित हो रही है जिससे अनेक प्रकार के विकार हमारे अंदर आ रहे है । कृषि योग्य भूमि का भारी धातुआें से युक्त होना बहुत बड़ा वातावरणीय प्रदूषण है । यहाँ तक कि सिंचाई के लिए शुद्ध जल का मिलना भी बहुत कठिन हो रहा है । अधिकतर कल-कारखानों द्वारा निकला प्रदूषित जल जमीन में जा रहा है तथा कई जगह तो यही सिंचाई के कामआता है जिससे कृषि उत्पाद प्रभावित हो रहे है ं । भारी तत्वों द्वारा प्रदूषित सब्जियाँ तथा फल मनुष्य तथा जानवरों को बीमार कर रहे हैं ।
पौधों की वृद्धि के लिए कापर, आयरन, जिंक, निकिल और मैंग्नीज सूक्ष्म मात्रा में अवश्य होते हैं लेकिन जब इनकी मात्रा अत्यधिक होती है तो विषाग्र हो जाती है । कृषि उपज बढ़ाने के लिए किसान कम्पोस्ट तथा कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक, नाली के पानी की गाद, कल कारखानों से निकले जल का प्रयोग सिंचाई में कर रहा है जिससे मृदा में भारी तत्वों का अनुपात बढ़ रहा है । इस प्रकार आर्सेनिक, निकल, कोबाल्ट, कापर, कैडमियम, जिंक, मैग्नीज, लेड़, क्रोमियम आदि की उपस्थिति मृदा मेंबढ़ती जा रही है । यही पौधों के विभिन्न भागों में जड़ द्वारा पहुँच रहे हैं । भारी तत्वों का पौधों मे ंएकत्र होना पानी में उसकी सान्द्रता पर निर्भर करता है । भारी तत्व पौधे के विभिन्न भागोंमें अधिकतर सिंचाई के पानी तथा मृदा द्वारा जाते है ।
जहाँ तक ज्ञात है कि पौधों में तत्वों के जाने की विधि एक विशेष प्रोटीन जो कि कोशिका के जीव द्रव्य झिल्ली में रहती है द्वारा आयन के रूप में अवशोषित होकर स्थानान्तरित होते है । प्रोटीन में मुख्यत: प्रोटीन पम्प जो कि ऊर्जा को ग्रहण करती है तथा वैघुत रसायन अवयव पैदा करती है । दूसरी प्रोटीन सह तथा प्रति अभिगमन है जो कि ए.टी.पी. द्वारा पैदा की वैघुत शक्ति द्वारा आयन को ले जाती है । तीसरी प्रोटीन आयन के अभिगमन को कोशिका में ले जाती है । प्रत्येक अभिगमन विधि आयन के परास को ले जाती है । धनात्मक धातु आयन ऋणात्मक आयन की ओर आकर्षित होते है तथा ऋणात्मक आयन धनात्मक की ओर आकर्षित होते है । आयनों के घुलने की गति पौधों की प्रजातियों पर निर्भर करती है ।
ककड़ी, टमाटर, प्याज, सेम, पेपरमिन्ट, लौकी, आदि सब्जियां जो कि शहर में पैदा की जाती है महापालिका, घरेलू पानी तथा कुछ कारखानों के पानी से प्रदूषित होती है । अत: इनमें भारी तत्वों कैडमियम, लेड, कापर तथा निकिल की मात्रा गांव मेंउगाई गई सब्जियों की तुलना में अधिक होते है ।
पौधे में भारी तत्वों के एकत्र होने के कारण केवल वातावरण के संदूषण पर ही नहीं बल्कि पौधों की प्रजाति पर भी निर्भर करता है । पालक में भारी तत्वों का जमावड़ा भिण्डी की तुलना में अधिक होता है । पौधों की जड़ों द्वारा धातुआें को अपने अंदर खीचने तथा तत्वों को तने तक पहॅुंचाने पर निर्भर करता है । यह भी पाया गया कि कापर, क्रोमियम का सान्द्रण पत्ते वाली सब्जियों जैसे पालक, पत्तागोभी, बैगन, चौलाई में बिना पत्ती वाली सब्जियों जैसे बैगन, भिण्डी, टमाटर आदि की तुलना में अधिक होता है ।
सब्जियों में भारी तत्वों का संग्रह मौसम के अनुसार भी होता है । गर्मियों में कैडमियम, जिंक, क्रोमियम, मैंगनीज का सान्द्रण अधिक होता है जबकि कापर, लेड तथा निकिल का सान्द्रण सर्दी में अधिक होता है । मृदा में उपस्थित हाइड्रोजन आयन भी अपना बहुत बड़ा प्रभाव डालते है । इसके प्रभाव से भारी तत्वों की घुलनशीलता तथा उनका पौधों में अवशोषित होना महत्व रखता है । धातु घुलाने वाली स्थिति में कैडमियम का सान्द्रण पुदीना में अन्य सब्जियों जैसे पालक, चुकंदर, गांठगोभी, पत्तागोभी की तुलना में अधिक होता है । इसका कारण मृदा का अम्लीय होना होता है ।
अभी तक हमने देखा कि सब्जियों में भारी तत्वों का सान्द्रण मृदा तथा वातावरण के कारण होता है । अब आप जानिये इन तत्वों का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है । भारी तत्व हमारे शरीर से सीधे तरीके से या संदूषित पानी के पीने अथवा सिंचाई द्वारा सब्जियों में जाने से प्रवेश करते है । हमारे पाचन तंत्र पर भारी तत्वों के अवशोषण का प्रभाव उनके रसायनिक गुण, मनुष्य की उम्र तथा पोषक स्तर से संबंधित होता है ।
यदि भोजन में कैल्शियम, आयरन तथा जिंक की कमी है तो भोजन से लेड का अवशोषण अधिक होगा । इनके लगातार एकत्र होने तथा जैविक विघटन न होने के कारण ये विषाक्त तत्व गुर्दे, हड्डी तथा यकृत को खराब करके विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँपैदा करते हैं । इन्हीं के आधार पर आकस्मिक स्वास्थ्य हानि को नापा जाता है । इससे कैंसर कारक या अकैंसर कारक पदार्थो का पता लगाया जाता है ।
यह प्रतिदिन भोजन लेने की मात्रा, अवधि, बारंबारता धातुआें का भोजन में सान्द्रण औसत शरीर का भार तथा अकैंसर कारक पदार्थो के प्रभाव पर निर्भर करता है । यदि इनकी मात्रा अधिक होती है तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ह ै।
अत: भारी धातुआें के सान्द्रण का प्रभाव अत्यन्त विषैला होता है जिसे प्रदूषित जल तथा मृदा आदि से निकलाना परम आवश्यक है । यदि इनकी मात्रा नियोजित नहीं रहेगी तो स्वास्थ्य समस्याएँ होती ही रहेगी । साग-सब्जियां सामान्य भोजन के मुख्य भोग है क्योंकि इनसे सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रोटीन, प्रतिआक्सी कारक, विटामिन आदि मानव शरीर को प्राप्त् होते हैं । आजकल स्वच्छ पानी की कमी के कारण शहरों में अधिकतर सिंचाई नाली के पानी से हो रही है जिससे भारी तत्वों का एकत्रीकरण शरीर में हो रहा है ।
उचित यह होगा कि प्रदूषित जल को सजावत के पौधों लकड़ी के पेड़ों को पैदा करने में प्रयोग किया जाय न कि सब्जियों के उत्पादन हेतु । अत: स्वच्छ पानी द्वारा सिंचाई की हुई सब्जियों ही स्वस्थ्यवर्धक एवं पोषण देती है । कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जाये तथा कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाय तभी हमारा हरी सब्जियों के खाने का प्रयोजन सफल होगा ।
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