मध्यप्रदेश पर विशेष
प्रगति पथ पर बढ़ता मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश ने तेजी से विकसित प्रदेश बनने की ओर कदम बढ़ाये है । प्रदेश न केवल बीमारू के टैग से मुक्त हुआ है बल्कि विकास और प्रगति के अनेक क्षेत्र में देश के कई राज्यों से आगे हुआ है ।
वर्ष १९५६ में अपने निर्माण के समय कतरन प्रदेश कहलाने वाला मध्यप्रदेश न केवल आज अपने सांस्कृतिक वैशिष्ट्य, पुरा धरोहरों, प्राकृतिक संसाधनों, वन आवरण, पर्यटकों के आकर्षण के सभी रंगों, बहुवर्णी संस्कृति, सुदृढ़ कानून व्यवस्था, वंचितों-गरीबों के हक में कल्याणकारी योजनाआें की मूक क्रांति, महिला सशक्तिकरण और अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में एक उदाहरण है ।
किसी भी प्रदेश के लिए ढॉचागत विकास के साथ यह जरूरी है कि वहाँ के नागरिक भी सुखी, सम्पन्न और खुशहाल रहे । सरकार में उनका विकास हो और सरकार उन्हें साथ लेकर विकास का सफर तय करे । मध्यप्रदेश इस कसौटी पर भी खरा उतरता है, चाहे वह प्रदेश की जीवन-रेखा नर्मदा नदी के सरंक्षण के लिए निकाली गई ``नर्मदा सेवा यात्रा'' हो, आदिशंकराचार्य के अवदान के स्मरण के लिए निकाली गयी एकात्म यात्रा हो या वर्ष २००९ में मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा की गई ``आओ बनाएँ अपना मध्यप्रदेश'' यात्रा और अभियान ।
मध्यप्रदेश उन चूनिंदा प्रदेशों में से है, जहाँ बेटी का जन्म अभिशाप नहीं है तो किसान को उसकी गाढ़ी मेहनत का वाजिब मूल्य दिलाने में सरकार की संवेदनशीलता भावांतर सहित अनेक किसान-कल्याण के फैसलों और नीतियों को दिखाती है । कुल मिलाकर जहाँ सरकार की चिंताआें से कोई भी वर्ग अछूता नहीं हो, ढूंढना हो तो मध्यप्रदेश का नाम ही सामने आता है ।
यह केवल लिखने पर को नहीं है । पिछले १४ वर्ष में प्रदेश ने विकास के सभी संकेतकों की कसौटी पर अपने को खरा साबित किया है । कह सकते है कि आज मध्यप्रदेश विकास के हर पैरामीटर पर तेजी से प्रगति करता प्रदेश है ।
प्रदेश में वर्ष २००३ से २०१७ के बीच हुए अभूतपूर्व विकास को आँकड़े भी प्रमाणित करते है । चौदह साल पहले अगर प्रदेश का सिंचित रकबा ७.५ लाख हेक्टर था, तो आज यह ४० लाख हेक्टेयर है । विद्युत उत्पादन भी २९०० मैगावाट से बढ़कर १७ हजार ७०० मेगावाट हो गया है । सड़के ४५ हजार किलोमीटर से बढ़कर ९५ हजार किलोमीटर हो गई है । पेयजल की सुविधा के लिए नर्मदा नदी को गंभीर, कालीसिंध, पार्वती, क्षिप्रा जैसी छोटी नदियों से जोड़ा जा रहा है । माइक्रो इरिगेशन मिशन संचालित कर पानी के उपयोग को किफायती बनाया गया है ।
प्रदेश की फसल उत्पादकता आज १७८५ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो१३ साल पहले ८३१ किलोग्राम हेक्टेयर थी । कुल कृषि उत्पादन भी २१४ लाख मीट्रिक टन सेबढ़कर ५४५ लाख मीट्रिक टन होगया है । गेंहू उत्पादन के क्षेत्र में तो क्रांति सी हो गई है । पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों की बराबरी ही नहीं, उन्हें भी प्रदेश ने पीछे छोड़ दिया है ।
आज प्रदेश का गेहूं उत्पादन २१९ लाख मीट्रिक टन है, जो डेढ़ दशक पहले मात्र ४९ लाख २३ हजार मीट्रिक टन था । धान उत्पादन भी १७ लाख से बढ़कर ५४ लाख मीट्रिक टन होगया है । दलहन- तिलहन उत्पादन में पूरा देश इस प्रदेश का लोहा मानता है । दलहन उत्पादन ३३ लाख मीट्रिक टन सेबढ़कर आज ७९ लाख २३ हजार मीट्रिक टन हो गया है । सोयाबीन उत्पादन भी २६ लाख ७४ हजार मीट्रिक टन सेबढ़कर ८४ लाख १६ हजार मीट्रिक टन हो गया है ।
वर्ष २००३ में प्रदेश में १.६९ मिलियन लाख टन गेहूं का उत्पादन होता था, जो अब बढ़कर ७१ लाख ८८ हजार मीट्रिक टन हो गया है । धान उपार्जन भी ९५ हजार मीट्रिक टन से बढ़कर १५ लाख ६० हजार मीट्रिक टन हो गया है । सुचारू व्यवस्था और बिचौलियों को बाहर करने के सरकार के प्रयासों से कृषि उपज मंडियोंमें कृषि जिंसो की आवक १०६ लाख ७६ हजार मीट्रिक टन से बढ़कर २३४ लाख मीट्रिक टन हो गई हैं ।
पहले प्रदेश में करीब १५ प्रतिशत की ऊँची दर पर किसानों को खेती-किसानी के लिए सहकारी ऋण मिलते थे । आज शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर यह सुविधा किसान को प्राप्त् है । यही नहीं, किसान द्वारा लिये गये १०० रूपये के ऋण पर उसे ९० रूपये ही लौटाने होते है । शेष राशि राज्य सरकार सब्सिडी के रूप में सहकारी संस्थाआें को देती है । यही वजह है कि १३ हजार ५८८ करोड का ऋण किसानों ने लिया है, जबकि चौदह साल पहले यह ऋण राशि महज १३०० करोड़ होती थी ।
प्रदेश के उद्यानिकी क्षेत्र में भी इस अरसे से खासी बढ़ोत्तरी हुई है । किसान खेती को लाभदायी बनाने के लिए परंपरागत फसलों के साथ उद्यानिकी और औषधीय फसलों की ओर आकर्षित हुए है । यही वजह है कि ४ लाख ६९ लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है । दुग्ध उत्पादन में भी क्रांति हो रही है । दुग्ध उत्पादन भी ५.३८ मिलियन टन से बढ़कर ९.५९ मिलियन टन हो गया है ।
शिक्षा सुविधाआें में भी प्रदेश में खासी बढ़ोतरी हुई है । स्कूली छात्र-छात्राआें को नि:शुल्क गणवेश, साइकिल, मेधावी छात्रों को लैपटॉप और स्मार्ट फोन, प्रतियोगी परीक्षाआें की कोचिंग, विदेश अध्ययन छात्रावृत्ति, शोध छात्रवृत्ति, मूल्य सूचकांक के अनुसार शिष्यवृति और छात्रावृत्ति का संयोजन, गरीब मेधावी छात्रों के लिये मेधावी प्रोत्साहन योजना, शिक्षा और खेल परिसरों का विकास जैसे कदम प्रदेश में नई शैक्षणिक संस्कृति में मददगार साबित हुए है ।
आज प्रदेश में प्राथमिक शालाएँ ५६ हजार ३२६ से बढ़कर ८३ हजार ८९० हो गई है । इसी तरह माध्यमिक शालाएँ १८ हजार ८०१ से बढ़कर ३० हजार ३४१, हाई स्कूल १५१५ से ३८६३, हायर सेकेंडरी स्कूल १५१७ से २८८५, आईटीआई २२२ से ९६१, इंजीनियरिंग और पॉलीटेक्निक कॉलेज १०४ से ३०१ और मेडिकल कॉलेज ५ से बढ़कर १८ हो गए है ।
प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाआें के विस्तार, शासकीय अस्पतालों में नि:शुल्क जाँच सुविधाआें और नि:शुल्क दवा वितरण की योजनाआें से प्रदेश स्वस्थ प्रदेश बनने की ओर अग्रसर है । सरकार के प्रयासों से मातृ और शिशु मृत्युदर में पिछले चौदह वर्षो में उल्लेखनीय कमी आई है । संस्थागत प्रसव २६.९ प्रतिशत से बढ़कर उल्लेखनीय ८१ प्रतिशत तक पहुंच गया है । इस उपलब्धि में जननी सुरक्षा जैसी सेवा कारगर साबित हुई है । मातृ मृत्युदर ३७९ प्रति लाख जीवित जन से घटकर २२१ प्रति लाख जीवित जन रह गई है । शिशु मृत्युदर भी ८६ प्रति हजार से घटकर ५० प्रति हजार रह गई है ।
प्रदेश में आँगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या आज ९२ हजार २७० है, जो वर्ष २००३ में मात्र ४७ हजार ४३३ थे । हैडपंप भी ३ लाख ६६ हजार से बढ़कर ५ लाख २१ हजार हो गए है । ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सुगमता के लिए नल-जल योजनाआें की स्थापना में तेजी लाई गई है । यह योजनाएँ भी इस अरसे में ७७४९ से बढ़कर २१ हजार ५१८ हो गई है । सूक्ष्म एवं लघु उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहभागी बनने के साथ ही लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के साधन भी बने है । इन उद्योगों की संख्या भी १ लाख २२ हजार से बढ़कर ४ लाख ६३ हजार हो गई है ।
मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास का यह सफर दिनोदिन नए पड़ाव पाने की ओर अग्रसर है । यह अगर किसी के लिए अजूबा है, तो फिर इस अजूबे को साकार करने में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और प्रदेशवासी, दोनों बधाई के पात्र है । यह सफर सरकार के साथ समाज के खड़ा होने का भी सफल उदाहरण है ।
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