शनिवार, 18 अगस्त 2018

सम्पादकीय 
वन्य जीव प्रबंधन में दक्षता आवश्यक
पिछले दिनों भोपाल से खबर आयी कि मध्यप्रदेश के नेशनल पार्को में से सात  में ऐसे अफसर फील्ड डायरेक्टर बने हुए हैं जो वन्य जीव प्रबंधनमें दक्ष नहीं है । जबकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के स्पष्ट निर्देश है कि प्रशिक्षित अधिकारियों को ही नेशनल पार्को में तैनात किया जाये । 
भारत की पारिस्थितिकी एवं भौगोलिक दशाआें में अनेक विविधता पायी जाती है, इसी विविधता के कारण विश्व की कुल जीव जन्तुआें की पन्द्रह लाख ज्ञात प्रजातियों में से लगभग ८१ हजार प्रजातियाँ भारत में पायी जाती है । वन्यप्राणी पर्यावरण के अभिन्न अंग है तथा पारिस्थितिकी के अन्य अवयवों से इनका घनिष्ट सम्बन्ध होता है । इसी कारण वन्यप्राणियों का पर्यावरण संतुलन में विशिष्ट योगदान है । पर्यावरण के मौलिक रूप को सुरक्षित रखने में वन्य प्राणियों के सरंक्षण के कार्यो की महत्वपूर्ण भूमिका है । 
लगातार बढ़ती जनसंख्या एवं भूमि संसाधनो का अत्यधिक उपयोग होने से वन्यप्राणियों के लिए रहवास और दैनिक आवश्यकता पूर्ति में असंतुलन पैदा हो रहा है, जो उनके जीवन का संकट बन रहा है । वन्यप्राणियों के अनेक समस्याआें में आहार की समस्या मुख्य है इसलिए वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए केवल उनके शिकार को रोकना ही पर्याप्त् नहीं है वरन् वन्यप्राणियों के जिन्दा रहने के लिए उनके शिकार के योग्य प्राणी तथा अन्य प्राणियों के बीच संतुलन भी आवश्यक है । जंगलों का सिमटा हुआ  दायरा और वृक्षों की अत्यधिक कटाई गहन वनों को विरल बना रही है, इस कारण वनों की सीमाए सिकुड़ रही है । इससे वन्यप्राणियों का जीवन आधार प्रभावित हो रहा है । 
वन्यजीव संरक्षण प्रबंधन में नवाचारी प्रयोगों और निरन्तर नवीन अनुसंधानों की भी आवश्यकता है । वन्यप्राणी संरक्षण की योजनाआें और उनका क्रियान्वयन स्थानीय पारिस्थितिकी और सामाजिक परिवेश को केन्द्र में रखकर करना होगा । इसे अटक्ष व्यक्तियों के हाथों में कैसे दिया जा सकता  है ? इस सवेंदनशील काम में कुशलप्रशिक्षित और दक्ष लोग होंगे तभी हम वन्यप्राणियों के संरक्षण एवं पर्यावरण मेंसंतुलन बनाये रखने में सफल  हो सकेंगे । 

कोई टिप्पणी नहीं: