सोमवार, 17 सितंबर 2018

दृष्टिकोण
बाढ़ और सूखे से मुक्ति कैसे हो ?
राजेन्द्र सिंह
हम चाहे जितनी भी सावधानी बरते, हर ५० या १०० सालों में बाढ़ जैसी आपदा आ जाती है । हमारा रवैया कुछ ऐसा है - एक बार बाढ़ खत्म हो जाए, फिर  हर मुमकिन समाधान के बारे में सोचा जाएंगा । इतना सब होने के बाद जो प्रवृत्ति बनी हुई हैं, उसके लिए ढाक के तीन पात मुहावरे का इस्तेमाल बिल्कुल अनुचित नहीं है । 
बाढ़ और सूखे से मुक्ति के लिए नदियों को ओर प्रकृति को मानव अधिकार की तरह ही अधिकार देना होगा । सबसे पहला अधिकार नदियों का है । नदियों का बहता हुआ जल सो साल में जहां तक पहुंचता है, वह जमीन नदी की जमीन होती है । उस जमीन को नदी के लिए ही उपयोग करना चाहिए । इस भूमि की तीन श्रेणियां - नदी प्रवाह क्षेत्र, सक्रिय बाढ़ क्षेत्र और उच्च्तम बाढ़ क्षेत्र होती है । 
उच्च्तम बाढ़ क्षेत्र निष्क्रिय कहलाता है । यहां करीब १०० साल में एक या दो साल में ही वर्षा जल पहुंचता है और बा़़ढ आती है । सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में जहां २५ साल में पांच बार बाढ़ आती है, वहीं सदैव नदी जल के प्रवाह वाला क्षेत्र नदी प्रवाह क्षेत्र कहलाता है । इन तीनों तरह की भूमि को नदी के लिए संरक्षित व सुरक्षित रखना राज, समाज व वैज्ञानिकों का साझा दायित्व होता   है ।
प्राकृतिक प्रवाह नदी का अधिकार होता है किन्तु आजकल नदियों को केवल अन्न और विद्युत उत्पादन का साधन मान लिया गया है । विकास की शातिर भाषा में बांधों को बाढ़ रोकने वाला साधन भी बताया जाता है । यह सही है कि बांध कभी-कभी बाढ़ रोकने में मदद कर सकता है, लकिन ज्यादातर अतिवृष्टि या बादलों के फटने पर बांध बहुत बड़ी बाढ़ का संकट पैदा करते हैं । इस वर्ष केरल की बाढ़ तो बांधों के कारण ही आई  ।
सरकारें नदियों की आजादी छीनने का हक नहीं रखती, फिर भी नदियों से यह हक छीन लिया गया है । इसलिए जब बांध भर जाते हैं तो सभी बांधों के दरवाजे एक साथ ही खोल दिए जाते हैं । केरल की बाढ़ का एक बड़ा कारण यह भी है । यदि आप नदियों की आजादी को मानवीय आजादी के साथ जोड़कर उन्हें आजाद नहीं करेगे तो नदियों का क्रोध एक बड़ी बाढ़ के प्रकोप के रूप में बढ़ेगा । 
आजादी के बाद से भारत में बाढ़ का यह प्रकोप प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । केरल की बाढ़ इसका एक बड़ा प्रमाण है । यह बाढ़ हमारे तथाकथित विकास ने ही पैदा की है । मानवीय सेहत की तरह ही नदी की सेहत को ठीक रखने का अधिकार भी नदी को ही होता है, लेकिन मानव और सरकारोंने नदी के सेहत के अधिकार को नष्ट कर दिया है । भारत की सभी नदियों को प्रदूषणकारी नालों से जोड़कर  देश की सारी सरकारी संस्थाआें, नगरपालिकाआें, पंचायतों ने अपना गंदा पानी नदियों में बेरोक-टोक ही डाल दिया है । मानवीय शिराआें और धमनियों की तरह धरती की शिराआें और धमनियों यानी नदियों को पूर्ण रूप से प्रदूषित कर दिया है । नदियों का यह प्रदूषण अब नदियों की सेहत के साथ मानवीय सेहत को भी बिगाड़ रहा है । इसलिए केरल सहित भारत के अन्य इलाकों को नदियों के प्रदूषण के कारण बीमारियां बढ़ रही है । 
चवालीस नदियों वाले प्रदेश केरल की अधिकांश नदियों में आज औघोगिक एवं रासायनिक प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है । जिस तरह दूध से भरी मटकी में एक बूंद छाछ या मट्ठा पूरी मटकी के दूध को दही मेंबदल देता है, उसी तरह औघोगिक और रासायनिक प्रदूषण भी बड़े से बड़े जल भण्डार को प्रदूषित कर देते हैं । यही वजह है कि आज केरल की बाढ़ में पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया है । खनन और खनन से बने ग ों ने भी नदियों की सेहत खराब की है । नदियों में आने वाली प्लास्टिक, ऊपर से आई गाद के साथ नदियों के तल में जमती जाती है और नदी का प्रवाह स्तर ऊपर उठता जाता है । 
सर्वसाक्षर  केरल, उच्च् शिक्षत और विकसित केरल का भयानक रूप से बाढ़ की चपेट में आना हमें सिखाता है कि केवल निजी सुख-सुविधआें का लालच बढ़ रहा है । हम आज जितनी सुख-सुविधाआें के लालची हुए है, उतना ही ज्यादा बाढ़-सूखा झेल रहे है । हमारी सुख-सुविधाआें से सुसज्जित कांच, सीमेंट व  कंक्रीट के भवनों ने गर्मी और जलवायु परिवर्तन का संकट भी बढ़ाया है । इसीलिए बेमौसम बारिश का दौर बढ़ा है । इस साल ८ से १८ सितम्बर के बीच जो वर्षा केरल में हुई, वह अनियमित थी । 
इस बार की अनियमित वर्षा ने केरल में कहर ढाया है । यह दूसरे राज्यों में भी हो सकता है । अभी तक मुम्बई, चैन्नई, हैदराबाद, सतना व पटना की बाढ़ से हमें सीख ले लेनी चाहिए थी पर हमारी सरकारों ने बाढ़ के विनाश से कोई सीख नहीं ली है । आज भी भारत की भू-संरचना पर जो निर्माण किए जा रहे हैं, उनसे खतरा बढ़ता ही जा रहा है । धरती कुरूप हो रही है, शहरों का भविष्य संकटमय है और वे बाढ़ व सूखे का खतरा झेलेगे । बाढ़ जिन क्षेत्रों से मिट्टी लेकर आती है, वहां मिट्टी की कमी के कारण सूखा  पड़ जाता है । इसीलिए पूरा देश बाढ़ और सूखे की चपेट में कभी भी आ जाता है । 
यदि विकास का क्रम, जलवायु परिवर्तन के कारण बदले वर्षा के क्रम के साथ जुड़ जाए तो हम बाढ़ सूखे से बचने की पहल कर सकते है । केरल सजग नागरिकोंका राज्य है । इसलिए केरल के राज और समाज को अपना भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बाढ़ से बचाव की पहल करनी चाहिए ।                                  

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