लघु कथा
प्रकृति प्रेम
सुश्री प्रज्ञा गौतम
विद्यालय स्थापना की स्वर्ण जयंती के अवसर पर विद्यालय में पौधारोपण का कार्यक्रम था । वन संपदा से समृद्ध आदिवासी क्षेत्र के इस विद्यालय के परिसर में पेड़ पौधों का नितांत अभाव था, यह बात हम सब शिक्षकों को अखरती थी ।
एक दिन पूर्व से ही तैयारियां चल रही थी । पौधों की सुरक्षा हेतु कंटीली बाड़ लगायी गयी । समारोह के दिन सुबह से ही गहमागहमी का वातावरण था । कुछ शिक्षक एवं छात्र मैदान की सफाई मेंजुट थे । कुछ छात्र ग े खोद रहे थे, और कुछ समीपस्थ पौध शाला से पौधे लाने का कार्य कर रहे थे । इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप मेंक्षेत्र के विधायक आमंत्रित थे ।
निर्धारित समय पर वे पधारे । शिक्षकोंऔर छात्रों के साथ उन्होंने स्वयं अपने कर-कमलों से पौधारोपण किया और छात्रों को पौधों की सुरक्षा के लिए शपथ दिलाई । मैं उनकी सादगी और प्रकृति प्रेम से प्रभावित थी । इस अवसर पर कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के उपरांत उनका भाषण था । वे अपनी ओजस्वी वाणी से संबोधित करने लगे -
शिक्षक बंधुआेंऔर प्रिय छात्रों,
यह बड़े ही हर्ष का विषय है कि विद्यालय स्थापना दिवस की स्वर्ण जयंति पर पौधारोपण जैसा पवित्र कार्य किया गया और इस पुनीत कार्य में मेरी भी भागीदारी रही । वृक्ष इस धरती का श्रृंगार है । वृक्ष हैं तो जल है और जल है तो जीवन है । प्रकृतिकी गोद में स्थित यह क्षेत्र सघन वनों से घिरा हुआ है । अनेक दुर्लभ पादप प्रजातियों और जड़ी बूटियॉ इस क्षेत्र में है । साथियों, अपने इस कार्यकाल के दौरान मैं इस वन संपदा के संरक्षण के लिए कृत संकल्प हॅू ....... । मैं उनके उद्गार सुनकर अभिभूत थी ।
वन-भ्रमण की मेरी बहुत इच्छा थी इसलिए मैं वन विभाग के कार्यालय मेंजानकारी प्राप्त् करने गयी । वहां के अधिकारी ने जब मुझे उस क्षेत्र की जैव - विविधता के बारे में बताया तो मैं दंग रह गयी ।
अद्भूत । इस जैव-संपदा को संरक्षित रखने के आपके प्रयास सराहनीय है । मैने कहा । मेरी इस बात से उनके चेहरे पर अफसोस की लकीरेंखिंच गयी ।
हम कहाँ कुछ कर पाते हैं मैडम, हमारे हाथ बंधे हुए हैं । आप तो अभी नयी आयीं हैं । आपको पता नहीं है कि पहले जैसे वन अब नहीं रहे । पेड़ के पेड़ लोग काट कर ले जाते है । उनकी कुल्हाड़ी छीनते ही विधायक और नेताआें के फोन आ जाते है कि हमारा वोटर है, ले जाने दो पेड़ ।
मैं सन्न रह गयी । मेरे हाथ से मेरी कलम छूट कर नीचे गिर गयी थी । अभी कल ही तो विधायक हमारे विद्यालय में वन सरंक्षण की बात करके गये हैं । बड़े प्रकृति प्रेमी मालूम होते थे । मैने अविश्वास के साथ कहा तो अधिकारी के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कराहट फैल गयी ।
यही तो राजनीति है मैडम, आप अभी नहीं समझेंगी । जब तक राजनीति का दखल रहेगा हम अपना कार्य भली प्रकार नहीं कर सकते । सब ऐसे ही चलेगा ।
नहीं, एक दिन परिवर्तन अवश्य आएगा । शिक्षा से जन-जागरूकता आ रही है । विद्यालय में जो नयी पीढ़ी के बच्च्े हैं हम उनमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता विकसित कर रहे हैं । हम उन्हें वन भ्रमण पर ले जाकर इन वनों की उपयोगिता समझायेंगे और संरक्षण की शपथ दिलावांएगे । ये बच्च्े ही अपने अनपढ़ माता-पिता और पूरे समाज को शिक्षित करेंगे । मेरे शब्दों में दृढ़ता थी ।
हमें आशा है मैडम, आपके प्रयास सफल होंगे । हमारा आपको पूर्ण सहयोग रहेगा । मैंने धन्यवाद देते हुए उनसे विदा ली कुछ नए संकल्पों के साथ ।
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