सामयिक
दिल्ली में पेड़ो को काटने से बचाया जाये
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
कहा जाता है कि सौ पेड़, हर साल ५३ टन कार्बन डाईऑक्साइड और २०० कि.ग्रा. अन्य प्रदूषकों का वातावरण से निपटान करते हैं । हर साल ये ५,३०,००० लीटर वर्षा जल को थामते हैं ।
दिल्ली के अधिकारी इमारतें बनाने के लिए दिल्ली के कुछ इलाकों में १७,००० बड़े-बड़े पेड़ काटने की फिराक में हैं । इन पेड़ों को काटे जाने का विरोध कर रहे लोगों को यह दिलासा दिया जा रहा है कि हर एक काटे गए पेड़ पर १० नए पौधे लगाए जाएंगे। मंत्री से लेकर नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन तक और हम सब ये अच्छी तरह से जानते हैंकि यह वादा मूर्खतापूर्ण है: आज जो खोएंगे, उसकी भरपाई कल कर दी जाएगी (पर कब ? आज से २० साल बाद ? और यदि पौधे बच पाए तो ?)। और यह सिर्फ दिल्ली में नहीं चल रहा है। हर राज्य हर शहर के योजनाकार यही कर रहे हैं । यह रवैया पेड़ों और उनके महत्व के प्रति ना सिर्फ अज्ञानता बल्कि अहंकार और उपेक्षा का द्योतक है। लेकिन वक्त आ गया है कि योजनाकार पेड़ों के आर्थिक, पारिस्थितिक, स्वास्थ सम्बंधी और सामाजिक महत्व के प्रति सचेत हो जाएं ।
पेड़ों का महत्व
१९७९ में कलक्तता विश्व- विद्यालय के डॉ. टी. एम. दासगुप्त ने गणना करके बताया था कि ५० साल की अवधि में एक पेड़ का आर्थिक मूल्य २,००,००० डॉलर (उस समय की कीमत के आधार पर) होता है । यह मूल्य इस अवधि में पेड़ों से प्राप्त् ऑक्सीजन, फल या बायोमास और लकड़ी वगैरह की कीमत के आधार पर है। पेड़ के वजन में एक ग्राम की वृद्धि हो, तो उस प्रक्रिया में पेड़ २.६६ ग्राम ऑक्सीजन बनाता है। ऑस्ट्रेलिया की नैन्सी बेकहम अपने शोध पत्र `पेड़ों का वास्तविक मूल्य में कहती हैं : पेड़-पौधे साल-दर-साल अपना दैनिक काम करते रहते हैं । ये मिट्टी को रोके रखते हैं, पोषक तत्वों का नवीनीकरण करते हैं, हवा को ठंडा करते हैं, हवा के वेग की उग्रता में बदलाव करते हैं, बारिश कराते हैं, विषैले पदार्र्थों को अवशोषित करते हैं, इंर्धन की लागत कम करते हैं, सीवेज को बेअसर करते हैं, संपत्ति की कीमत बढ़ाते हैं, पर्यटन बढ़ाते हैं, मनोरंजन को बढ़ावा देते हैंं, तनाव कम करते हैं, स्वास्थ्य बेहतर करते हैं, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं, औषधि और अन्य जीवों के लिए आवास देते हैं ।
इसी कड़ी में न्यूयॉर्क के पर्यावरण संरक्षण विभाग ने कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए हैं । वे बताते है - (१) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ लोग : १०० पेड़ प्रति वर्ष ५३ टन कार्बनडाई ऑक्साइड और २०० कि.ग्रा. अन्य वायु प्रदूषकों को हटाते हैं ।
(२) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ समुदाय : पेड़ों से भरा परिवेश घरेलू हिंसा कम करता है, ये ज्यादा सुरक्षित और मिलनसार समुदाय होते हैं ।
(३) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ वातावरण : १०० बड़े पेड़ प्रति वर्ष ५,३०,००० लीटर वर्षा जल थामते हैं ।
(४) स्वस्थ पेड़ यानी घर में बचत: सुनियोजित तरीके से लगाए गए पेड़ एयर कंडीशनिंग लागत में ५६ प्रतिशत तक बचत करते हैं । सर्दियों की ठंडी हवाओं को रोकते हैंजिससे कमरे में गर्माहट रखने के खर्च में ३ प्रतिशत तक बचत हो सकती है ।
(५) स्वस्थ पेड़ यानी बेहतर व्यवसाय : पेड़ों से ढंके व्यापारिक क्षेत्रों में, दुकानों में ज्याद खरीदार आते हैं और १२ प्रतिशत अधिक खरीदारी करते हैं ।
(६) स्वस्थ पेड़ यानी संपत्ति का उच्च्तर मूल्य ।
मंत्रीजन और एनबीसीसी अधिकारी समझदार लोग हैं । निश्चित रूप से वे ये सारे तथ्य जानते होंगे । फिर भी उनके लिए एक परिपक्व पेड़ शहर की जगह को खाता है। १७,००० पेड़ों का सफाया करना यानी साफ हवा को तरसते किसी शहर में मकान, कॉलोनी और शॉपिंग मॉल बनाने का व्यापार । (दिल्ली ग्रीन्स नामक एक एनजीओ ने २०१३ में बताया था कि एक स्वस्थ पेड़ की सालाना कीमत मात्र उससे प्राप्त् ऑक्सीजन की कीमत के लिहाज से २४ लाख रुपए होती है)। मगर अधिकारियों के मुताबिक काटे गए पेड़ों द्वारा घेरी गई जगह की तुलना में नए रोपे जाने वाले पौधे सौंवा हिस्सा या उससे भी कम जगह घेरेंगे । लेकिन पौधे लगाएंगे कहां - जहां पेड़ थे? निर्माण कार्य शुरू होने पर क्या ये पौधे जीवित रह पाएंगे ? अधिकारियों का रवैया है कि हम तो ट्रांसफर या रिटायर होकर यहां रहेंगे नहीं, तो इन सवालों का जवाब हमें तो नहीं देना होगा । किन्तु बात को समझने के लिए यह देखा जा सकता है कि पहले गुड़गांव क्या था और आज क्या है।
वृक्षों के प्रति क्रूर व्यवहार के विपरीत कई अनुकरणीय उदाहरण हैं। सुन्दरलाल बहुगुणा द्वारा प्रवर्तित चिपको आंदोलन, कर्नाटक की सला- मुरादा थिम्मक्का द्वारा लगाए गए ३९८ बरगद के पेड़ जिन्हें वे अपने बच्च्े मानती हैंऔर मजीद खान और जीव विज्ञानियों व बागवानों का समूह, जो तेलंगाना के महबूब नगर में ७०० साल पुराने पिल्लामर्री नामक बरगद के पेड़ की बखूबी देखभाल कर रहे हैं । ४ एकड़ में फैले बरगद के इस पेड़ को दीमक खाने लगी थी । इस समूह ने हर शाखा के फ्लोएम में कीटनाशक का इंजेक्शन देकर, देखभाल करके इसे फिर से हरा-भरा कर दिया है क्या इस पेड़ को काटकर ४ एकड़ जमीन का उपयोग रियल एस्टेट में कर लेना चाहिए था?
पेड़ भावनात्मक, आध्या- त्मिक शान्ति प्रदान करते हैं । भारतीय इतिहास इसके उदाहरणों से भरा पड़ा है - भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक और तमिल राजा पारि वल्लल जिन्होंने अपने रथ को एक पौधे के पास छोड़ दिया था ताकि वह इससे सहारा पाकर फैल सके ।
क्या दिल्ली के १७,००० पेड़ बचाने और उपनगरों में कहीं और कॉलोनियां बनाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए ? और यदि वहीं बनाना है तो ऐसे तरीके निकाले जाएं जिसमें पेड़ों की बलि ना चढ़े । और यदि पेड़ काटने भी पड़े तो बहुत ही कम संख्या में।असंभव-सी लगने वाली इस योजना के बारे में सोचना वास्तुकारों के लिए चुनौती है । दरअसल कई स्थानों पर गगनचुंबी इमारतें बनाई गई हैंऔर पेड़ों को बचाया गया है। कई जगह तो पेड़ों को इमारतों का हिस्सा ही बना दिया गया है । ऐसे कुछ उदाहरण इटली, तुर्की और ब्राजील की इमारतों में देखे जा सकते हैं ।
भारत में भारतीय और विदेशी दोनों तरह के वास्तुकार हैंजिन्होने पर्यावरण से सामंजस्य बैठाते हुए घरों और परिसरों का निर्माण किया है। भारत में लगभग ८० संस्थान हैं जो वास्तुकला की शिक्षा प्रदान करते हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स में लगभग २०,००० सदस्य हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें