सोमवार, 17 सितंबर 2018

सम्पादकीय
कुपोषण की चुनौती है बड़ी गंभीर 
किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत उसका मानव संसाधन होता है । जिस देश के पास जितना अधिक कार्यकारी मानव शक्ति होती है, उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही तेज गति से कुलाचे भरती है । भारत को उसकी इसी खूबी का लाभ मिलता रहा है । अब सोचिए, अगर देश से कुपोषण को खत्म कर दिया गया होता तो उसके मानव संसाधन से मिल रहा लाभ दोगुना हो जाता । हम आज जहां खड़े हैं, आज उससे कहीं आगे होते । क्योंकि कुपोषण हमारे तेज विकास की राह में बड़ी बाधा साबित हो रहा है । 
कुपोषण दूर करने मेंभारत ने सघी शुरूआत की, लेकिन बड़ी आबादी के लिए उसे और तेज चलने की जरूरत है । वर्ष २००६ में देश में पांच साल से कम आयु वाले औसत से कम लम्बाई वाले बच्चें की हिस्सेदारी ४८ फीसदी थी । एक दशक बाद यानी २०१६ में ऐसे बच्चें का फीसद घटकर ३८ आ गया । इसके बावजूद आज भी बच्चें में कुपोषण की दर भारत में सर्वाधिक है । यह कुपोषण जीवन भर बच्च्े के लिए दुर्भाग्य साबित होता है । 
देश में ४.७ करोड़ बच्च्े कुपोषित है जो बड़े होकर अपनी पूर्ण मानव क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं । यानी हर दस में से चार बच्च्े इस अभिशाप से जूझ रहे है । इस प्रकार १९.५० करोड़ भारत में कुपोषित लोगों की संख्या है । यानी विश्व की भूख  से जुड़ी एक चौथाई चुनौती भारत के हिस्से मेंहै । 
भारत के पास अब अनाज का पर्याप्त् भंडार है । इसके बावजूद अगर कोई बच्च कुपोषित रह जा रहा है तो सभी देशवासियों के लिए शर्मनाक है । १९५०-५१ मेंभारत का खाघान्न उत्पादन पांच करोड़ टन था, २०१४-१५ तक इसमें पांच गुना अप्रत्याशित वृद्धि हो चुकी है । अब हमारा खाघान्न उत्पादन २५ करोड़ टन के आंकड़े को छूने लगा । पहले दूसरे देश हमें खाघान्न की सहायता करते थे । अब हम हम खाघान्न निर्यात करने लगे हैं । 
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार इस चुनौती से निपटने के कदम उठा रही है । किसानों की आय २०२२ तक दोगुनी करने के लिए सरकार ने २०१६ में कई कदम उठाने की घोषणा की है, जिसमें सिंचित क्षेत्र का रकबा बढ़ाने को भी तेज प्रयास किए है । 

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