सोमवार, 17 सितंबर 2018

कविता
तब यह धरती स्वर्ग बनेगी
रूपनारायण काबरा

सृष्टि नियन्ता, मालिक सबके
स्वर्ग, धरा के 
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र चमकते नभ में तारे
पर्वत, सागर, सरिता, जंगल
जीव, जन्तु, पक्षी, मानव के
सबसे सिरजन हार तुम्हीं हो
ज्ञान और विज्ञान दिया मानव को तुमने
और तुम्हारे उत्प्रेरणा से ही
विकसित यह विज्ञान हुआ है 
मालिक ! भर दो अन्तरतम में
प्यार तुम्हारे सर्जन के प्रति,
तेरे पर्वत, सागर, सरिता
वृक्ष और सब जीव जन्तु को
प्यार करें सब अन्तर्मन से
ताकि प्रकृति की विपुल सम्पदा
नहीं प्रदूषित, नहीं नष्ट हों,
भर दो ऐसे भाव मनुज में
परिवर्तन कर स्वार्थ भाव
शोषण, दोहन का
रक्षा करने का तत्पर हों,
समझें अपने जैसा ही प्रिय
जंगल को और जीव जगत को
जल, भूतल को, वायु, गगन को
जिससे सबही रक्षित होकर
सबसे सुख का आधार बनें
सह-अस्तित्व प्रकृतिसे होकर
प्यार जगे पर्यावरण से
सभी सुखी हो, सभी मित्र हों
मिल जुलकर सब रहना सीखें
तब यह धरती स्वर्ग बनेगी, तब यह धरती स्वर्ग बनेगी         

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