सोमवार, 17 सितंबर 2018

प्रसंगवश
केरल : बाढ़ में आपदा प्रबंधन बह गया 
केरल में जो हुआ, वह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है, उसमें हम आपदा प्रबंधन की नाकामी को भी देख सकते हैं । साल २००५ में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन इसलिए किया गया था, ताकि मुश्किल हालात में राहत और बचाव कार्य ही नहीं, आपदा प्रबंधन के सभी लक्ष्यों को केन्द्रित करके अभियान चलाए जा सकें । मगर केरल में इस अनुशासन का अभाव दिखा है । आपदा प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण पहलू होता है, मुश्किल हालात आने से पहले खुद को तैयार रखना । इसमें आपदा को रोकने के प्रयास तो किए ही जाते हैं, संकट का दायरा सीमित रखने की कोशिश भी होती है । इस काम में सफलता तभी संभव है, जब विभिन्न एजेंसियों में समन्वय हो । 
केरल पश्चिम घाट का राज्य है । वहां ४४ नदियां बहती हैं, जिनका जन्म राज्य में होता है और अंत उसी राज्य के तटीय समुद्र में । चूंकि वहां ढलान काफी ज्यादा है, इसलिए पानी का बहाव स्वाभाविक तौर पर तेज रहता है । बारिश होने पर यह पानी कहीं ज्यादा तेजी से समुद्र में समाने के लिए भागता है । इस गति को थामने के लिए जगह-जगह पर बांध बनाए गए हैं । 
गलती यह भी हुई कि केरल में नदियों का पानी सीधे छोड़ दिया गया । इडुक्की बांध के बारे में कहा जा रहा है कि जब पहली बार तेज बारिश हुई, तभी आनन-फानन में उसके दरवाजे खोल दिए गए थे । तब इतना पानी छोड़ दिया गया कि बांध आधा खाली हो गया था । बाढ़ की बारिश ने रही-सही कसर पूरी कर दी । जबकि आपदा प्रबंधन का गणित कहता है कि किसी भी बांध से पानी इतना ही निकालना चाहिए जिससे ओवर फ्लो की स्थिति न आए । डॉक्यूमेंटेशन यानी दस्तावेजीकरण भी आपदा प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता   है । कोई आपदा आती है, तो उसका सामना हमने कैसे किया, जान-माल का कितना नुकसान हुआ, राहत कार्य किस तरह चलाए गए, सफलता व नाकामी कितनी मिली । इन सबको दस्तावेजका रूप देना चाहिए । इसका मकसद किसी एक पर नाकामी की जिम्मेदारी डाल देना नहीं होता । सही ओर गलत, सब कुछ इसमें दर्ज किया जाता है, ताकि अगली आपदा से बेहतर तरीके से निपटने में हम सफल हो सके । 
लोगों को जागरूक किए बिना हम किसी आपदा से नहीं निपट सकते । प्रचार-प्रसार के तमाम साधनों का इस्तेमाल करके हम जन-जागरूकता अभियान चला सकते है । सक्सेस स्टोरी का भी जमकर प्रचार प्रसार होना चाहिए । इससे लोगों की हौसला अफजाई होती है ।

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