प्रदेश चर्चा
दिल्ली : खेती में सोलर ऊर्जा का प्रयोग
कृष्णगोपाल व्यास
कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र के लिए जिस पानी का उपयोग किया जा रहा है उस पानी का उपयोग उस क्षेत्र में खेती के लिए किया जा सकता हैं ।
दिल्ली सरकार ने अक्षय ऊर्जा से संबंधित एक कार्यनीति को धरातल पर उतारने की कोशिश की है । इस देश और दुनिया को साफ ऊर्जा के प्रोत्साहन के लिए संदेश मिलेगा । जहां देश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहीं किसान और किसानी का बुरा हाल है। लेकिन अब किसान अपनी खेतों में सोलर पैनल लगाकर आमदनी कर सकते हैं। इसके लिए दिल्ली सरकार ने नीतिगत फैसला ले लिया है ।
दिल्ली सरकार ने हाल ही में किसानों की आय में तीन से पाँच गुना तक इजाफा करने के लिए मुख्यमंत्री किसान आय बढ़ोत्तरी योजना को मंजूरी दी है । अपने ढंग की अनूठी अभिनव योजना के अन्तर्गत किसान के एक एकड़ के खेत के अधिकतम एक तिहाई हिस्से पर सोलर पेनल लगाए जावेंगे और बिजली पैदा की जायेगी । कम्पनी द्वारा उस बिजली को चार रूपये प्रति यूनिट की दर से दिल्ली सरकार के विभागों को बेची जावेगी । सोलर पैनल का खर्च कम्पनी उठायेगी । किसान पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा ।
दिल्ली राज्य सरकार का मानना है कि एक एकड़ जमीन से किसान को प्रति वर्ष बीस से तीस हजार रुपयों तक की आय होती है। एक तिहाई जमीन पर सोलर पेनल लगने से किसान को एक तिहाई उत्पादन का नुकसान होगा और आय प्रभावित होगी पर जमीन के किराए के तौर पर चूँकि उसे हर साल एक लाख रूपया प्राप्त होगा, इसलिए वह घाटे में नहीं रहेगा । वह पहले की ही तरह दो तिहाई जमीन से उत्पादन ले सकेगा । उसे तीस हजार की जगह बीस हजार प्राप्त होंगे । उसकी सालाना आय तीस हजार के स्थान पर एक लाख बीस हजार होगी । अर्थात उसकी आय में चार गुना बढ़ोत्तरी संभावित है ।
दिल्ली की राज्य सरकार का मानना है कि चूँकि सोलर पेनल जमीन से साढ़े तीन मीटर की ऊँचाई पर लगाए जावेंगे इसलिए उसकी जमीन बेकार नहीं जावेगी । सोलर पेनल लगाने से खेती के काम में कोई खास व्यवधान नहीं होगा । किसान उस हिस्से से भी उत्पादन ले सकेगा । यह किसान की अतिरिक्त आय होगी जो अन्तत: उसका फायदा ही बढ़ायेगी ।
ज्ञातव्य है कि मौजूदा समय में दिल्ली की राज्य सरकार नौ रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदती है। इस दर का बोझ अन्तत: दिल्ली की जनता को उठाना होता है। किसान के खेत में लगने वाले सोलर पेनल वाली नई व्यवस्था के कारण अब उसे चार रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी । अर्थात् उसे प्रति यूनिट पाँच रूपये की बचत होगी । उसके सारे विभाग यही बिजली खरीदेंगे इस कारण राज्य सरकार के हर वर्ष ४०० से ५०० करोड़ रूपये बचेंगे ।
पिछले कई वर्षों से किसान की आय बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किए जाते रहे हैं। खेती की लागत का हिसाब किताब लगाया जाता रहा है । क्या जोडें और क्या घटायें पर खूब माथापच्ची होती रही है । न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या हो -पर अर्थशस्त्री से लेकर मंत्रालय तथा नौकरशाही और जन प्रतिनिधि शिद्दत से बहस करते रहे हैंपर सर्वमान्य लागत फार्मूला या देय समर्थन मूल्य हमेशा विवादास्पद ही रहा है ।
अनेक लोग उसके पक्ष में तो अनेक लोग उसके विपक्ष में दलील देते रहे हैं। यह सही है कि किसान को लाभ पहुँचाने के लिए अनेक उपाय सुझाए तथा लागू किए जाते रहे हैं। उन सब अवदानों के बावजूद किसान कभी कर्ज के चक्रव्यूह का भेदन नहीं कर पाया है । कर्ज माफी का फार्मला भी सालाना कार्यक्रम बनता नजर आता है। सारी कसरत के बावजूद कोई भी प्रस्ताव या निर्णय किसान की न्यूनतम आय सुनिश्चित नहीं कर पाया है । उसके पलायन को कम नहीं कर पाया है । उसके खेती से होते मोहभंग को कम नहीं कर पाया । उसकी माली हालत में अपेक्षित सुधार नहीं ला पाया ।
लगता है कि दिल्ली की राज्य सरकार ने एक साथ दो लक्ष्यों का सफलतापूर्वक भेदन किया है। महंगी बिजली का विकल्प खोजकर न केवल अपना खर्च कम किया है वरन दिल्ली की जनता से टैक्स के रूप में वसूले पैसों की भी चिन्ता की है । यह बहुत कम प्रकरणों में ही होता है । दूसरे, दिल्ली की राज्य सरकार ने अपने राज्य के किसानों की सालाना आय को सुनिश्चित किया है । यह आय हर साल कम से कम एक लाख रुपयेे अवश्य होगी । यह आय किसान को मानसून की बेरुखी के कारण होने वाले नुकसान से बचायेगी । पुख्ता रक्षा कवच उपलब्ध करायेगी । आत्महत्या के आँकड़े कोकम करेगी ।
लगता है दिल्ली की राज्य सरकार की मुख्यमंत्री किसान आय बढ़ोत्तरी योजना की अवधारणा भारत की परम्परागत खेती की उस मूल अवधारणा से प्रेरित है जिसमें मानसून पर निर्भर अनिश्चित खेती को सुनिश्चित आय देने वाले काम से जोड़ा जाता था। पहले ये काम पशुपालन हुआ करता था । अब समय बदल गया है । गोचर खत्म हो गए हैं। खेती में काम आने वाले जानवर अप्रसांगिक हो गए हैं। इस कारण सोलर पेनल के माध्यम से आय जुटाने का नया रास्ता इजाद किया गया है ।
एक बात और, दिल्ली की राज्य सरकार की इस नवाचारी योजना ने खेती पर मानसून की बेरुखी से होने वाले खतरे पर चोट नहीं की है । अच्छा होता, इस योजना के साथ-साथ मानसून की बेरुखी पर चोट करने वाली योजना का भी आगाज होता । अर्थात् ऐसी योजना, जिसके अन्तर्गत कम से कम खरीफ की फसल की शत प्रतिशत सुरक्षा की बात को, हर खेत को पानी की बात और निरापद खेती (आर्गेनिक खेती) से जोड़कर आगे बढ़ाई होती । लगता है, इस बिन्दु पर किसानों से सीधी बात होनी चाहिए । समाधान वहीं से निकलेगा । निरापद खेती का भी आगाज वहीं से होगा । असंभव कुछ भी नहीं है । आईडिया कभी भी किसी के मोहताज नहीं रहे ।
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