प्रसंगवश
२८ फीसदी अधिक है गैस पीड़ितों की बीमारियों से मौत का आंकड़ा
सन् १९८४ में २-३ दिसम्बर की दरमियानी रात जोजख्म भोपाल गैस त्रासदी सेलाखों लोगों कोमिलेवह आज भी हरेहै । बीमारियों सेमौतें, शुद्ध पानी नहीं मिलना, छोटे बच्चें में होरही जन्मजात बीमारियां जैसी कई समस्याएं आज भी हैं । हाल ही में तैयार की गई संभावना ट्रस्ट की रिपोर्ट भी चौकानेवाली है । इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हर साल आम लोगों की अपेक्षा गैस पीड़ितों की बीमारियों के कारण मौत का आंकड़ा २८ प्रतिशत अधिक है ।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सामान्य लोगों की अपेक्षा गैस पीड़ित लोगों में ६३ प्रतिशत अधिक बीमारियों है । इसमें सबसेज्यादा सांस की तकलीफ, घबराहट, सीनेमें दर्द, चक्कर, जोड़ों में दर्द जैसी तकलीफे हैं । इसमें से सिर्फ ३० प्रतिशत कोही इलाज मुहैया होपाता है । कैंसर, टीबी, फेफड़ों से संबधित बीमारियों की अपेक्षा किडनी की बीमारी से तीन गुना ज्यादा मौत होरही है ।
रिपोर्ट तैयार करने का काम वर्ष २००२ में शुरू हुआ । इसमें गंभीर रूप से प्रभावित बस्तियों के २,२०० सेअधिक और गैर प्रभावित क्षेत्रों के ९५२ व्यक्तियों पर अध्ययन किया गया । हर साल इनके आंकड़े जुटाए गए । इसके साथ ही गैस पीड़ितों के बच्चेंपर भी शोध किया गया । हर तीन माह में इनका स्वास्थ्य परीक्षण किया गया । इस आधार पर मौतें व बीमारियों का आंकड़ा तैयार किया गया ।
गैस त्रासदी का असर तीसरी पीढ़ियों पर भी दिखाई दे रहा है । सर्वे में ५ से१९ साल तक के बच्चें का भी आकलन किया गया । इसमें पाया गया कि सामान्य बच्चें की अपेक्षा गैस पीड़ितों के बच्चें के कपाल परिधि (सिर का व्यास) भी छोटा है । जो गंभीर बीमारियां का भी कारण होता है । साथ ही धड़ की लंबाई भी कम और पैरों की लंबाई भी स्वस्थ बच्चें की अपेक्षा अधिक पाई गई । शोधकर्ता तस्मीन जैदी ने बताया कि गैस पीड़ितो के परिवार पर अब अनुवांशिक असर भी पड़ने लगा है, जो चिंताजनक है ।
गैस त्रासदी के दौरान यूनियन कार्बाइड से निकले जहरील कचरे का निष्पादन नहींहुआ है । सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इंडियन इंस्टीट्युट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च को रिपोर्ट तैयार करनेका आदेश दिया था । इसमें खुलासा हुआ है कि जहरीले कचरे के कारण प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है । इसमें ऐसे खतरनाक तत्व है जो गूर्दे, जन्मजात विकलांगता, कैंसर जैसे अन्य गंभीर बीमारी का कारण है। शोधकर्ता संतोष क्षोत्रिय ने बताया कि आंकड़े स्पष्ट करते है कि आज भी त्रासदी से प्रभावित लोगों की मौत का सिलसिला जारी है ं । लेकिन, इनकी मौतों के पंजीयन को लेकर सरकार ने कोई व्यवस्था हीं नहीं की है । जबकि इनके इलाज की व्यवस्था और समीक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है ।
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