मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

कविता
वन, जग के आधार
डॉ. पुष्पा चौरसिया

बड़, पीपल, अरू नीम की, लग त्रिवेणी द्वार । 
आक्सीजन की दूर तक,फैले शुुद्ध बयार ।। 

वन  सेऔषधियाँ मिलें, वन से लाभ  हजार । 
अब  तो जागा ेसाथियों, कर पेड़ों से प्यार ।। 

वन उपवन गर मिट गये, कैसे आए  बसन्त । 
पर्यावरण  सम्हालिये, खुशियाँ पाएँ अनन्त ।। 

वृक्ष अगर कटते रहे, तब विनाश है द्वार । 
जंगल  होते  सर्वदा, जग  के  प्राणाधार ।। 

जंगल  से मंगल बँधा, वर्षा के आधार । 
बलखाती नदियाँबहें, हर दिन होत्यौहार ।। 

करें प्रदूषण दूर वन, इनकी करें सम्हाल । 
वृक्ष कटाई बंद हो, जीवन होखुशहाल ।। 

वर्षा, खेती, शुद्ध जल, पाए  जग  उपहार । 
रहे सुरक्षित वन तभी, हो जाए  उद्धार  ।। 

वन के अंचल मेंबसेपशु-पक्षी वनराज । 
वन कटने से हो रहा, इनका व्यथित समाज ।।

अल्हड़ सी नदियाँ बहे, ऐसा करोउपाय । 
दोनों तट पर दूर तक, हम सब पेड़ लगाएँ ।। 

आक्सीजन कम होरही, संकट में जलधार । 
वृक्ष लगा देना हमें, धरती कोउपहार ।। 

वर्षा, खेती, वन, उपज मिलती शुद्ध बयार । 
फिर सेजंगल होघने, जगती का उद्दार ।। 

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