कविता
वन, जग के आधार
डॉ. पुष्पा चौरसिया
बड़, पीपल, अरू नीम की, लग त्रिवेणी द्वार ।
आक्सीजन की दूर तक,फैले शुुद्ध बयार ।।
वन सेऔषधियाँ मिलें, वन से लाभ हजार ।
अब तो जागा ेसाथियों, कर पेड़ों से प्यार ।।
वन उपवन गर मिट गये, कैसे आए बसन्त ।
पर्यावरण सम्हालिये, खुशियाँ पाएँ अनन्त ।।
वृक्ष अगर कटते रहे, तब विनाश है द्वार ।
जंगल होते सर्वदा, जग के प्राणाधार ।।
जंगल से मंगल बँधा, वर्षा के आधार ।
बलखाती नदियाँबहें, हर दिन होत्यौहार ।।
करें प्रदूषण दूर वन, इनकी करें सम्हाल ।
वृक्ष कटाई बंद हो, जीवन होखुशहाल ।।
वर्षा, खेती, शुद्ध जल, पाए जग उपहार ।
रहे सुरक्षित वन तभी, हो जाए उद्धार ।।
वन के अंचल मेंबसेपशु-पक्षी वनराज ।
वन कटने से हो रहा, इनका व्यथित समाज ।।
अल्हड़ सी नदियाँ बहे, ऐसा करोउपाय ।
दोनों तट पर दूर तक, हम सब पेड़ लगाएँ ।।
आक्सीजन कम होरही, संकट में जलधार ।
वृक्ष लगा देना हमें, धरती कोउपहार ।।
वर्षा, खेती, वन, उपज मिलती शुद्ध बयार ।
फिर सेजंगल होघने, जगती का उद्दार ।।
वन, जग के आधार
डॉ. पुष्पा चौरसिया
बड़, पीपल, अरू नीम की, लग त्रिवेणी द्वार ।
आक्सीजन की दूर तक,फैले शुुद्ध बयार ।।
वन सेऔषधियाँ मिलें, वन से लाभ हजार ।
अब तो जागा ेसाथियों, कर पेड़ों से प्यार ।।
वन उपवन गर मिट गये, कैसे आए बसन्त ।
पर्यावरण सम्हालिये, खुशियाँ पाएँ अनन्त ।।
वृक्ष अगर कटते रहे, तब विनाश है द्वार ।
जंगल होते सर्वदा, जग के प्राणाधार ।।
जंगल से मंगल बँधा, वर्षा के आधार ।
बलखाती नदियाँबहें, हर दिन होत्यौहार ।।
करें प्रदूषण दूर वन, इनकी करें सम्हाल ।
वृक्ष कटाई बंद हो, जीवन होखुशहाल ।।
वर्षा, खेती, शुद्ध जल, पाए जग उपहार ।
रहे सुरक्षित वन तभी, हो जाए उद्धार ।।
वन के अंचल मेंबसेपशु-पक्षी वनराज ।
वन कटने से हो रहा, इनका व्यथित समाज ।।
अल्हड़ सी नदियाँ बहे, ऐसा करोउपाय ।
दोनों तट पर दूर तक, हम सब पेड़ लगाएँ ।।
आक्सीजन कम होरही, संकट में जलधार ।
वृक्ष लगा देना हमें, धरती कोउपहार ।।
वर्षा, खेती, वन, उपज मिलती शुद्ध बयार ।
फिर सेजंगल होघने, जगती का उद्दार ।।
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