मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

स्वास्थ्य
वायरस से लड़ने में मददगार गुड़ और अदरक 
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
हाल ही में मुझे भयानक सर्दी-जुकाम हुआ था । दवाओं (एंटीबायोटिक, विटामिन सी) से कुछ भी आराम नहीं मिल रहा था। तो मेरी पत्नी ने घरेलू नुस्खा-गुड़ और अदरक मिलाकर - दिन में तीन बार लेने की सलाह दी । 
बस एक-दो दिन में ही सर्दी-खांसी गायब थी! यह कमाल गुड़ का था या अदरक का, यह जानने के लिए मैंने आधुनिक वैज्ञानिक साहित्य खंगाल ा। मैंने पाया कि सालों से चीन के लोग भी सर्दी-जुकाम तथा कुछ  अन्य तकलीफों से राहत पाने के लिए इसी तरह के एक पारंपरिक नुस्खे - जे जेन तांग - का उपयोग करते आए हैं । इसमें अदरक के साथ एक मीठी जड़ी-बूटी (कुदॅजू की जड़) का सेवन किया जाता है ।
अदरक के औषधीय गुणों से तो सभी वाकिफ है। कई जगहों, खासकर भारत, चीन, पाकिस्तान और ईरान में इसके औषधीय गुणों के अध्ययन भी हुए हैं । ऐसा पाया गया है कि इसमें दर्जन भर औषधीय रसायन मौजूद होते हैं। १९९४ में डॉ. सी. वी. डेनियर और उनके साथियों ने अदरक के औषधीय गुणों पर हुए १२ प्रमुख अध्ययनोंकी समीक्षा नेचुरल प्रोडक्ट्स पत्रिका में की थी। 
ये अध्ययन अदरक के ऑक्सीकरण-रोधी गुण, शोथ-रोधी गुण, मितली में राहत और वमनरोघी गुणों पर हुए थे। इसके अलावा पश्चिम एशियाई क्षेत्र के  एक शोध पत्र के मुताबिक अदरक स्मृति-लोप और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों में भी फायदेमंद है। इस्फहान के ईरानी शोधकर्ताओं के एक समूह ने अदरक में स्वास्थ्य और शारीरिक क्रियाकलापों पर असर के अलावा कैंसर-रोघी गुण होने के मौजूदा प्रमाणों की समीक्षा की है।
कई अध्ययनों में अदरक में कैंसर-रोधी गुण होने की बात सामने आई है। औद्योगिक विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (अब भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान) के डॉ. योगेश्वर शुक्ल और डॉ. एम. सिंह ने साल २००७ में अपने पर्चे में अदरक के कैंसर-रोधी गुण के बारे में बात की थी । उनके अनुसार अदरक में ६-जिंजेरॉल और ६-पेराडोल अवयव सक्रिय होने की संभावना है। साल २०११ में डॉ. ए. एम. बोड़े और डॉ जेड डोंग ने इस बात की पुन: समीक्षा की । 
अपनी पुस्तक   दी अमेजिंग एंड माइटी जिंजर हर्बल मेडिसिन  में उन्होंने ताजी और सूखी (सौंठ), दोनों तरह की अदरक में मौजूद ११५ घटकों के बारे में बताया, जिनमें जिंजेरॉल और उसके यौगिक मुख्य थे। शंघाई में हाल ही में प्रकाशित पर्चे के अनुसार अदरक कैंसर-रोधी फ्लोरोयूरेसिल यौगिक की गठान-रोधक क्रिया को बढ़ाता है । 
यानी अदरक औषधियों का खजाना है । मगर वापिस सर्दी-खांसी पर आ जाते हैं । कैसे अदरक सर्दी-खांसी में राहत पहुंचाता है? इसक ेबारे में कुछ जानकारी साल २०१३ में जर्नल ऑ एथ्नोमोफार्माकोलॉजी में प्रकाशित प्रो. जुंंग सान चांग के पेपर से मिलती है। पेपर के अनुसार ताज़े अदरक में वायरस-रोधी गुण होते हैं । आम तौर पर सर्दी-जुकाम वायरल संक्रमण के कारण होता है (इसीलिए एंटीबायोटिक दवाइयां सर्दी-जुकाम में कारगर नहीं होती)। संक्रमण के लिए दो तरह के वायरस जिम्मेदार होते हैं। इनमें से एक है ह्यूमन रेस्पीरेटरी सिंशियल वायरस । चांग और उनके साथियों ने कठडत वायरस से संक्रमित कोशिकाओं पर अदरक के प्रभाव का अध्ययन किया । उन्होंने पाया कि अदरक श्लेष्मा कोशिकाओं को वायरस से लड़ने वाले यौगिक का स्त्राव करने के लिए प्रेरित करता है । 
यह अनुमान तो पहले से था कि अदरक में विभिन्न वायरस से लड़ने वाले यौगिक मौजूद होते हैं। यह अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि अदरक कोशिकाओं को वायरस से लड़ने वाले यौगिक का स्त्राव करने के लिए प्रेरित करता है । इसके पहले डेनियर और उनके साथियों ने बताया था कि अदरक में मौजूद बीटा-सेस्कवीफिलांड्रीन सर्दी-जुकाम के वायरस से लड़ता है और उसमें राहत पहुंचाता है ।
वर्तमान में प्राकृतिक स्त्रोत से अच्छे  एंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल पदार्थों की खोज, पारंपरिक औषधियों की तरफ रुझान, आधुनिक विधियों से उनकी कारगरता की जांच और पारंपरिक औषधियों को समझने के क्षेत्र में काफी काम हो रहा है। चीन इस क्षेत्र में अग्रणी है। चीन ने पेकिंग विश्वविद्यालय में पूर्ण विकसित औषधि विज्ञान केन्द्र शुरू किया है। भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है। भारत फंडिंग और कैरियर प्रोत्साहन के जरिए इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा दे रहा है ।
परंपरा और वर्तमान
भारत में भी आयुष मंत्रालय इसी तरह के काम के लिए है । यह मंत्रालय यूनानी, आयुर्वेदिक, प्राकृतिक चिकित्सा, सिद्ध, योग और होम्योपैथी के क्षेत्र में शोध और चिकित्सीय परीक्षण को बढ़ावा देता है । यह एक स्वागत-योग्य शुरुआती कदम है। दरअसल, हमें इस क्षेत्र के (पारंपरिक) चिकित्सकों और शोधकर्ताओं की जरूरत है जो आधुनिक तकनीकों और तरीकों से काम करने वाले जीव वैज्ञानिकों और औषधि वैज्ञानिकों के साथ काम कर सकें ताकि इससे अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सके । वैसे सलीमुज्जमन सिद्दीकी, टी. आर. शेषाद्री, के. वेंकटरमन, टी.आर. गोविंदाचारी, आसिमा चटर्जी, नित्यानंद जैसे जैव-रसायनज्ञ और औषधि वैज्ञानिक वनस्पति विज्ञानियों और पारंपरिक चिकित्सकों के साथ मिलकर काम करते रहे हैं । 
यदि आयुष मंत्रालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और रसायन और उर्वरक मंत्रालय के सम्बंधित विभागों के साथ मिलकर काम करे तो कम समय में अधिक प्रगति की जा सकती है। भारत में घरेलू उपचार की समृद्ध परंपरा रही   है । देश भर में फैली अपनी सुसज्जित प्रयोगशाला के दम पर भारत भी चीन की तरह सफलता हासिल कर सकता है। शुरुआत हम भी चीन की तरह ही प्राकृतिक स्त्रोतों में एंटी-वायरल तत्व खोजने के कार्यक्रम से कर सकते हैं । 
मगर आखिर इस नुस्खे में गुड़ क्या काम करता है। ऐसा लगता है कि तीखे स्वाद के अदरक को खाने के लिए गुड़ की मिठास का सहारा लेते हैं । पर गुड़ में शक्कर की तुलना में १५-३५ प्रतिशत कम सुक्रोस होता है और ज्यादा खनिज तत्व (कैल्शियम, मैग्नीशियम और लौह) होते हैं । साथ ही यह फ्लू के  लक्षणों से लड़ने के लिए भी अच्छा माना जाता है। दुर्भाग्य से गुड़ के जैव रासायनिक और औषधीय गुणों पर अधिक अनुसंधान नहीं हुए हैं । तो शोध के लिए एक और रोचक विषय सामने   है ।

कोई टिप्पणी नहीं: