मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

पर्यावरण परिक्रमा
जलवायु परिवर्तन के कारण देश में खेती पर संकट
भारत के १५१ जिलोंकी फसलें, पौधेऔर पशु जलवायु परिवर्तन के कारण अति संवेदनशीाल हालात में पहुंच चुके हैं। यह देश के कुल  जिलों का करीब २० फीसदी है । कृषि मंत्रालय से जुड़े सेजुड़े संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की वार्षिक समीक्षा बैठक में यह चिंता जताई गई हैं । 
खेती से देश की तकरीबन आधी आबादी कोरोजी-रोटी मिलती हैं, जबकि देश के आर्थिक उत्पादन का १७ फीसदी यहीं सेप्राप्त् होता है । खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर इतना ज्यादा पड़ रहा है कि फसलों के उत्पादन के बारे में अनुमान भी गलत साबित होरहेहैं । 
आइसीएआर नेअध्ययन में पाया कि देशभर में करीब २८० लाख हेक्टेयर गेंहू की फसल के अंतर्गत आता है । इनमें से९० लाख हेक्टेयर गेंहू प्रभावित हुआ है । भारत में मौसम में बेतरतीब बदलाव सेऐसेही कुप्रभाव पड़ रहेहैं । 
आइसीएआर के अनुसार हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती के लिए अब किसान अधिक ऊंचाई पर जा रहेहैं, ताकि पर्याप्त् ठंडा मौसम मिल सके । मध्य भारत मेंफसलें तूफान सेप्रभावित होरही हैंं । पंजाब में २०१० में अचानक बढ़े तापमान सेगेंहू के उत्पादन में २६ फीसदी कमी आई । 
झारखंड में चावल की खेती करनेवालेकिसान नए कीटों से फसल की रक्षा करते-करते परेशान हो चुके हैं । कीटों से परेशान झारखंड के साहिबगंज जिले का माल्टोस आदिवासी समुदाय दूसरेइलाके में जा रहा हैं, जहां संथाल जनजाति रहती हैं । ऐसेमें संघर्ष की आशंका है । 
डेलवेयर विश्वविद्यालय और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों का इस्तेमाल कर समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि इससेभारत में वार्षिक कृषि आय कम हो रही है । यह औसतन १५-१८ फीसदी हो गई है । देश के ५४ फीसदी खेती वाले इलाकों तक सिंचाई की व्यवस्था ठीक नहीं है । 
इन्दौर में कचरे से रोजाना बन रही ६० टन खाद
देशभर में कचरेकी समस्या विकराल होती जा रही है । कचरेके ढेर बढ़तेजा रहेहैंं, लेकिन इस मसलेपर अब सरकार नेगंभीरता दिखाई है और सालों सेचली आ रही प्लानिंग पर अब तेजी सेकाम शुरू होगया है । देश में दोबार स्वच्छता का ताज हासिल करनेवाला इंदौर कचरेके निपटान में भी आदर्श बन गया है । यहां थ्री आर पर फोकस किया जा रहा है । 
कचरे से बन रही अच्छी गुणवत्ता की खाद को दोऔर तीन रूपए किलोबेचा जा रहा है । यह खाद देवगुराड़िया स्थिति ट्रेंचिंग ग्राउंड में बनाई जा रही है, जिसमें डिमांड भी है । खाद बेचनेके लिए एनजीओकी मदद भी ली जा रही है । स्वच्छ भारत मिशन के तहत नगर निगम द्वारा डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण का काम किया जा रहा है । इसमें गीला व सूखा कचरा अलग-अलग लिया जा रहा है । इस जैविक कचरे को देवगुराड़िया स्थित प्रोसेसिंग प्लांट पर ले जाया जाता है । जहां पर कचरे से खाद बनाने का कार्य वैज्ञानिक पद्धति से किया जा रहा है । इसमें प्रतिदिन ५० से६० टन उच्च् गुणवत्ता की जैविक खाद बनाई जा रही है । निगम द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जैविक खाद का विक्रय इंदौर जिलेके किसानोंको किए  जाने के नगर निगम ट्रेंचिंग ग्राउंड में रोजाना ५० से६० टन खाद बन रही है । इसकी खपत नहीं होनेके कारण बार-बार प्लांट कोबंद करना पड़ता था, लेकिन अब खाद को दो रूपए किलो में बेचा जा रहा है, जिससे डिमांड भी बढ़ गई है । इससे शहर की जनता को भी पता चलेगा तो वो सस्ती खाद लेजा सकेंगे और अपने उद्यानों व घरों के अंदर लगे पेड़-पौधों में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे ।  इससे खाद की खपत भी शुरू होजाएंगे । यही कारण है कि अब एनजीओ को भी जोड़ा जा रहा है, जिनकी मदद से किसानों तक दो रूपए  किलो खाद पहुंचाइ  जाएगी  ।
संकट में है भारतीय कागज उद्योग
देश में कागज उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रह हैं । अंतरराष्ट्रीय बाजार में वुड पल्प (लकड़ी की लुगदी) की कमी का असर देश के बाजार पर दिखई देनेलगा हैं । अंतरराष्ट्रीय बाजार में आनेवाली पूरी लुगदी चीन उठा रहा है । इससेदेश में इसका आयात जरूरत मुताबिक नहीं होपा रहा  है । कच्च माल न मिलनेके कारण कागज की कीमतों में गत दोमहीनेमें पचार फीसदी वृद्धि होगई है । 
कागज निर्माण में लगे कुटीरउद्योगों पर भी असर पड़ रहा  है । इससे जुड़े तमाम लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा उत्पन्न होगया है । देश में वुड पल्प का बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है । चीन में कुछ समय पहलेतक रद्दी कोरीसाइकिल कर पल्प तैयार किया जाता था लेकिन वहां इस पर प्रतिबंध लगनेके बाद चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार से बड़ी मात्रा में वुड पल्प खरीद रहा है, जिसका सीधा असर भारतीय कागज उद्योग पर भी पड़तेदिख रहा है । 
उत्तर प्रदेश का बरेली कागज की बड़ी मंडी है । यहां हर महीनेकरीब पांच सौ टन कागज की खपत होती   है । यह सारा कागज ब्रोकरों के जरिए मिलों सेजिलेके व्यापारियों के पास पहुंचता है । जिलेमें करीब दोसौ बड़े व्यापारी समेत पांच सौ सेअधिक छोटे व्यापारी स्टेशनरी कारोबार में लगेहैं । इसके साथ ही यहां हजारों लोगों के रोजगार का साधन कुटीर उद्योग के रूप में कागज का काम है । बंडल या रोल के रूप में कागज का काम है । बंडल या रोल के रूप में सादा कागज आनेके बाद यहां कारखानों में बाइडिंग, रूलिंग, कवर, पैंकिंग आदि का काम होता   हैं । 
पिछले२० साल की बात करें तोकागज के दामों में अमूमन एक या दोरूपए प्रति किलोतक की तेजी आती थी । इस बार दोमहीनेमें करीब ३० से४० रूपए प्रति किलोके दाम बढ़ गए हैं । कागज का एक रिम जोडेढ़ सौ रूपए का आता था, आज उसकी कीमत करीब २२० रूपए होगई हैं । इस तरह करीब ५० फीसदी तक दामों में बढ़ोतरी हुई है ।
कागज का काम करने वाले व्यापारी अमूमन एक साथ ही माल का सौदा कर लेतेथे, फिर मिल से थोड़ा-थोड़ा मल मंगवातेथे। इस बार व्यापारी कोदेनेके लिए मिलों के पास माल ही नहीं रहा है । कारखानों में स्टॉक खत्म होगया  है । व्यापारी नुकसान के डरसेखरीद नहीं रहा है । कारखानों में कारीगर बैठे हुए हैं । स्टेपलर, पेस्टिंग, मिशिल उठाना, रूलिंग करनेवालेकारीगरों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है । व्यापारी परेशान हैं कि जनवरी सेशुरू होने वाले सीजन के लिए अभी से तैयारी करनी होती है लेकिन कच्च माल नहीं मिल रहा है । 
बदल जाएगा किलोग्राम तौलने का तरीका
किलोग्राम मापने का तरीका बदल गया है । अभी तक इसे प्लैटिनम-इरिडियम के अलॉय से बने जिस सिलेण्डर से मापा जाता था, उसे रिटायर कर दिया गया है । साल १८८९ से इसी को माप माना जाता था । हालांकि अब वैज्ञानिक माप के जरिए किलोग्राम तय होगा । इस बारे में पेरिस में हुई दुनियाभर के वैज्ञानिकों की मीटिंग में एकमत से फैसला किया गया है । हालांकि माप का तरीका बदलने से मार्केट में होने वाले माप में फर्क नहीं पड़ेगा । २० मई से नई परिभाष लागू हो जाएगी । किलोग्राम को एक बेहद छोटे मगर अचल भार के जरिए परिभाषित किया जाएगा । इसके लिए प्लैंक कॉन्स्टेंट का इस्तेमाल किया जाएगा । नई परिभाषा के लिए वजन मापने का काम किब्बल नाम का एक तराजू करेगा । अब इसका आधार प्लेटिनम इरीडियम का सिलिंडर नहीं होगा । इसकी जगह यह प्लैंक कॉन्स्टेंट के आधार पर तय किया जाएगा । क्वांटम फिजिक्स में प्लैंक कॉन्स्टेंट को ऊर्जा और फोटॉन जैसे कणों की आवृत्ति के बीच संबंध से तैयार किया जाता है । 
वैज्ञानिक चाहते थे कि किलोग्राम के बाट की पैमाइश के लिए किसी चीज का इस्तेमाल न हो जैसा कि अभी तक होता था । इसकी जगह वे भौतिकी में इस्तेमाल होने वाले प्लैंक के स्थिरांक को पैमाना बनाना चाहते था । जिस तरह दूरी का पैमाइश के लिए मीटर को स्टैंडर्ड इकाई निर्धारित किया गया, उसी तरह किलोग्राम निर्धारित करने के बारे में भी सोचा जा रहा है । फिलहाल मीटर प्रकाश द्वारा एक सेंकण्ड के ३०० वें मिलियन में तय की गई दूरी के बराबर है । अब बहुमत के बदलाव के पक्ष में वोट करने से किलोग्राम को निर्धारित करने के लिए प्लैंक के स्थिरांक का इस्तेमाल किया   जाएगा । 
पिछले दिनों १६ नवम्बर २०१८ को दुनियाभर के वैज्ञानिकों  ने  वजन तौलने वाले किलोग्राम के बाट को बदलने के लिए वोट किया । बहुत बदलाव के पक्ष में है । इसके बाद आप किलोग्राम के बाट को तौलने का तरीका बदल गया है । पहले दुनियाभर के किलोग्राम का वजन तय करने के लिए सिलेंडर के आकार के एक बाट का इस्तेमाल किया जाता था । यानी उसका वजन जितना होता था, उतना ही किलोग्राम का स्टैंडर्ड वजन होता । यह सिलेंडर प्लेटिनियम और झरिडियम से बना था इसका उपनाम ले ग्रैंड के है। 

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