पर्यावरण परिक्रमा
प्रेस की आजादी के मामले में भारत की बदतर हालत
रिपोट्र्स विदआउट बार्डर्स की सालाना रिपोर्ट में भारत प्रेस की आजादी के मामले मेंदो पायदान खिसक गया है । १८० देशों में भारत का स्थान १४०वां है । रिपोर्ट में भारत में चल रहे चुनाव प्रचार के दौर को पत्रकारों के लिए खासतौर पर सबसे खतरनाक वक्त के तौर पर चिन्हित किया है ।
सूचकांक मेंकहा गया है कि भारत में प्रेस स्वतत्रंता की वर्तमान स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है जिसमें पुलिस की हिंसा, माओवादियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल हैं । २०१८ में अपने काम की वजह से भारत में छह पत्रकारों की जान गई है । एक मामले में भी यही संदेह हैं ।
इसमें कहा गया है कि ये हत्याएं बताती हैं कि भारतीय पत्रकार कई खतरों का सामना करते हैं, खासतौर पर, ग्रामीण इलाकों में गैर अंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार । विश्लेषण में आरोप लगया गया हे कि २०१९ के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकोंद्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं ।
पेरिस स्थित रिपोट्र्स सैंन्स फ्रंटियर्स(आरएसएफ) या रिपोट्र्स विदआउट बार्ड्र्स एक गैर लाभकारी संगठन है जो दुनिया भर के पत्रकारोंपर हमलों का दस्तावेजी-करण करने और मुकाबला करने केलिए काम करता है । २०१९ के सूचकांक मेंरिपोट्र्स विदआउट बार्ड्र्स ने पाया कि पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदल गई है जिससे दुनिया भर में डर बढ़ा है । भारत के संदर्भ में, इसने हिन्दुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर समन्वित घृणित अभियानों पर चिंता जताई है । इसने रेखांकित किया है कि जब महिलाआें को निशाना बनाया जाता है तो अभियान खासतौर पर उग्र हो जाता है ।
२०१८ में मीडिया में मी टू अभियान के शुरू होने से महिला संवाददाताआेंके संबंध मेंउत्पीड़न और यौन हमले के कई मामलोेंपर से पर्दा हटा । इसमें कहा गया है कि जिन क्षेत्रों को प्रशासन संवेदनशील मानता है वहां रिपोर्टिंग करना बहुत मुश्किल है जैसे कश्मीर । कश्मीर में विदेशी पत्रकारों को जाने की इजाजत नहीं है और वहां अक्सर इंटरनेट काट दिया जाता है । दक्षिण एशिया से प्रेस की आजादी के मामले में पाकिस्तान तीन पायदान लुढ़ककर १४२वंे स्थान पर है जबकि बांग्लादेश चार पायदान लुढ़ककर १५०वें स्थान पर है । नार्वे लगातार तीसरे साल पहले पायदान पर है जबकि फिनलैंड दूसरे स्थान पर है ।
पहली बार सौर ऊर्जा से दिल्ली मेट्रो ने भरी रफ्तार
प्रदूषण नियंत्रण में दिल्ली मेट्रो की खास पहचान रही है । इस क्रम में प्रदूषण नियंत्रण व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दिल्ली मेट्रो ने एक और बड़ी छलांग लगाई है । मध्यप्रदेश के रीवा में लगाए गए ७५० मेगावाट की क्षमता वाले सौर ऊर्जा संयंत्र (सोलर पावर प्लांट) से दिल्ली मेट्रो को सौर ऊर्जा मिलने लगी है । इसके पहले दिन दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) को रीवा से २७ मेगावाट सौर ऊर्जा की आपूर्ति हुई । इस कारण पहली बार सौर ऊर्जा से मेट्रो ने रफ्तार भरी । इस दौरान वायलेट लाइन पर सौर ऊर्जा े रफ्तार भर रही मेट्रो में डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह व रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड के चेयरमैन उपेंद्र त्रिपाठी सहित कई अधिकारियों ने जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम से केंद्रीय सचिवालय तक सफर किया । इसके साथ ही सौर ऊर्जा से मेट्रो का परिचालन शुभारंभ हो गया ।
डीएमआरसी का कहना है कि आगामी दिनों में रीवा से प्रतिदिन ९९ मेगावाट सौर ऊर्जा मिलने लगेगी । इसका इस्तेमाल मेट्रो के परिचालन के साथ-साथ फेज तीन के स्टेशनों, डिपो इत्यादि में भी होगा । रीवा सोलर पावर प्लांट से डीएमआरसी को हर साल ३४ करोड़ यूनिट (एमयू) बिजली किफायती दर पर मिलेगी । वर्ष २०१८-१९ में मेट्रो के परिचालन में १०९.२ करोड़ यूनिट बिजली खपत हुई । इसतिए डीएमआरसी को बिजली के बिल पर बड़ी रकम खर्च करना पड़ता है ।
अब सौर ऊर्जा से दिन में मेट्रो की ६० फीसदी बिजली की जरूरतें पूरी हो जाएंगी । इसके अलावा डीएमआरसी मेट्रो स्टेशनों, इपने आवासीय परिसरों व डिपो की छतों पर सोलर प्लेट लगाकर २८ मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भी कर रहा है । सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ही १७ अप्रैल २०१७ को डीएमआरसी ने रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड, सेलर पावर डेवलपस्र व एमपीपीएमसीएल (मध्यप्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड) से समझौता किया था । रीवा से डीएमआरसी को जून २०१८ से ही बिजली की आपूर्ति होनी थी पर तकनीकी कारणों से देरी हुई ।
डीएमआरसी ने तैयार की थी संयंत्र की रूपरेखा : रीवा का सौर ऊर्जा संयंत्र दुनिया के बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों में शुमार है । रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड ने यह संयंत्र लगाया है । यह भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एईसीआई), मध्यप्रदेश सरकार, एमपीपीएमसीएल (मध्यप्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड) व सोलर पावर डेवलपर्स का संयुक्त उपक्रम है । शुरूआत से ही इस परियोजना की रूपरेखा तैयार करने में डीएम-आरसी की अहम भूमिका रही है । इस परियोजना में डीएमआरसी सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा और पहला खरीदार पार्टनर है ।
तलाबों में पनपा था धरती का जीवन
ब्रह्मांड के बारे में वैज्ञानिक लगातार रिसर्च करते रहते हैं, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया जा सका है कि आखिर पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत कैसेहुई ।
वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत जल से हुई और कहा जाता रहा है कि महासागर में सबसे पहले जीवन शुरू हुआ होगा । हांलाकि हाल की एक स्टडी में इससे अलग बात कही गई हैं । इसमें कहा गया है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत के लिए छोटे तालाब ज्यादा अनुकूल थे । रिपोर्ट में बताया गया है कि पानी में १० सेंटी मीटर की गहराई में नाइट्रोजन ऑक्साइड की अच्छी मात्रा होती है जो जीवन की शुरूआत के लिए सही वातावरण का निर्माण करती है । मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी (एमआईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक समंदर की गहराई में नाइट्रोजन आसानी से नही फिक्स होता है और इसलिए लाइफ कैटलाइजिंग मुश्किल होती है । शोधकर्ता सुकृत रंजन ने कहा, जीवन की शुरूआत के लिए नाइट्रोजन फिक्सिंग जरूरी है और यह सागर की गहराई मेंसंभव नहीं है । पानी में नाइट्रोजन मौजूद होता है और उसके टूटने के लिए धरती के महौल की जरूरत होती है । वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन तीन बॉन्ड से बंधी होती है और इसलिए इसके टूटने के लिए ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है ।
उन्होेंने कहा कि उस समय वायुमंडल में लाइटिंग के जरिए नाइट्रोजिन फिक्स होकर महासागर मेंबारिश के जरिए गिरकर जीवन की शुरूआत कर सकता था लेकिन यह इसलिए नहींसंभव लगता है क्योंकि महासागर में नीचे मौजूद आयरन इस फिक्स्ड नाइट्रोजन से जीवन के कारक खत्म कर देता । जीवन के लिए सभी जरूरतेंकेवल उथले जल मेंही पूरी हो सकती थी । उनका कहना है कि तालाब में नाइट्रोजन ऑक्साइड का अच्छा कॉन्संट्रेशन बन सकता है । तालाब में अल्ट्रा वॉइलट रेज और आयरन का भी प्रभाव कम होता है इसलिए नाइट्रोजन आरएनए से लिकर जीवन की शुरूआत करने में ज्यादा सक्षम होता है ।
दशकों की खोज के बाद ब्राह्मंड
ब्रह्मांड निर्माण की रासायनिक क्रिया का पहला सबूत मिल गया है । वैज्ञानिकों ने सुदूर अंतरिक्ष में हीलियम हाइड्राइड आयन का अणु खोज निकाला है । माना जाता है कि ब्रह्मांड के विकासक्रम में सबसे पहले यहीं अणु बना था । इसी ने आगे चलकर आणविक हाइड्रोजन के निर्माण का रास्ता खोला और ब्रह्मांड वर्तमान स्वरूप में आया ।
दशकों से वैज्ञानिक अंतरिक्ष में हीलियम हाइड्राइड आयन को खोजने की कोशिश कर रहे हैं । जिस अणु का ब्रह्मांड निर्माण की रासायनिक क्रियाका मूल कहा जाता है, अंतरिक्ष में कहीं भी उसका प्रमाण नहीं मिलने से ब्रह्मांड निर्माण को लेकर स्थापित पूरे सिद्धांत पर सवालिया निशान लगते रहे हैं । अब एक गैसीय बादल (नेबुला) एनजीसी ७०२७ में इस अणु का प्रमाण मिला है ।
फ्लाइंग ऑब्जर्वेटरी सोफिया पर स्थापित फार इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर ग्रेट की मदद से वैज्ञानिकोंने इस अणु को खोजा है । अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के डेविड न्यूफेल्ड ने कहा, हीलियम हाइड्राइड आयन की खोज बेहद अहम है । प्रकृति मेंअणु निर्माण की व्यवस्था का यह खूबसूरत उदाहरण है । वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अणु के मिलने से दशकों पुरानी खोज का सुखद अंत हुआ है । इससे ब्रह्मांड निर्माण के रासयनिक सिद्धांत पर लनेग वाले सवालिया निशान भी हट गए हैं । ब्रह्मांड का लगातार विस्तार हो रहा है ।
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