सोमवार, 20 मई 2019

प्रसंगवश
उत्तरप्रदेश में महाभारत काल के अवशेष मिले
महाभारत काल में इसानों की वेश-भूषा कैसी रही होगी ? टीवी के पात्रोंऔर किताबों में पढ़कर महाभारत काल को लेकर हमारी समझ कितनी सही है ? 
उ.प्र. में बागपत के सिनौली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई)द्वारा कराई जा रही खुदाई से आने वाले सालों में इससे पर्दा उठ सकता है ? खुदाई से शाही शव पेटिकाएं, रथ, कंकाल, आभूषण समेत कई ऐसी चीजे मिली हैं, जिन्हें महाभारत काल से जोडकर देखा जा रहा है । 
इस बार खुदाई में एक चैम्बर व दो और शव पेटिकाएं मिली हैं । इनमें जली लकड़ी के अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस चैम्बर को मृत देह को स्नान कराने व पूजा-पाठ के लिए उपयोग में लाया जाता होगा । पुरातत्वविद सीधे तौर पर इसे महाभारत काल के समय की संस्कृति कहने से बच रहे हैं लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि यह हड़प्पा सभ्यता नहीं है । 
हड़प्पा के समानांतर या इससे पहले की संस्कृति है । पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के सिनौली में अभी तक तीन बार खुदाई हो चुकी है । सबसे पहले वर्ष २००५-०६ में खुदाई हुई थी । इसके बाद वर्ष २०१८ में और फिर इस साल जनवरी में खुदाई का कार्य शुरू हुआ था । 
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य रूप से ताम्र सामान आदि की आकृति एक-दूसरे से अलग है । ताम्र हथियार बनाने की प्रक्रिया और उनके आकार हड़प्पा सभ्यता की किसी भी खुदाई में मिले साक्ष्यों से नहीं मिलते है । यहां मिले मनके आदि हड़प्पा  तकनीक से अलग है । 
हड़प्पा सभ्यता के लिए अभी तक ५०० स्थानों पर खुदाई हो चुकी है, लेकिन शवधान में चार पाये वाली शव पेटिकाएं, रथ व युद्ध के समय उपयोग में लाए जाने वाले हथियार आदि किसी अन्य स्थान पर नहीं मिल हैं । 
सवाल यह है कि हमारा देश इतना विशाल है और यहां क्या केवल एक ही संस्कृति के लोग रहते रहे होंगे । एक ही संस्कृति विकसित रही होगी, ऐसा कैसे हो सकता है । साक्ष्योंके आधार पर मात्र कहा जा रहा है कि यह हड़प्पा सभ्यता नहीं है । यहां मिलेसाक्ष्य हड़प्पा की संस्कृति से बिल्कुल मेल नहीं खाते है । यह संस्कृति यमुना और गंगा के बीच के इलाके में पुष्पित और पल्लवित हो रही थी । 

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