हमारा भूमण्डल
ओजोन परत पर एक और हमला
एस. अनंतनारायणन
हमारे वायुमंडल के ऊपरी भाग में मौजूद ओजोन परत, सूरज से आने वाले पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी की रक्षा करती है। इस सुरक्षा कवच पर खतरा पैदा हुआ था, लेकिन मॉन्ट्रियल संधि के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की बदौलत इसे बचा लिया गया । संधि में इस बात को पहचाना गया था कि कुछ मानव निर्मित रसायन, मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस संधि ने इन पदार्थों के उपयोग और वायुमंडल में इनके उत्सर्जन में कटौती करने के लिए एक वैश्विक अभियान को गति दी थी ।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उपयोग के मामले में मुख्य रूप से एयरोसोल स्प्रे, औद्योगिक विलायकों और शीतलक तरल पदार्थों को दोषी माना गया और इस अभियान का केन्द्रीय मुद्दा उन्हें हटाना था। क्लोरोफॉर्म जैसे कुछ अन्य पदार्थ भी ओजोन परत को प्रभावित करते हैं, लेकिन ये बहुत तेजी से विघटित हो जाते हैं, इसलिए इन्हें संधि में शामिल नहीं किया गया था । यह संधि काफी सफल रही और उम्मीद की गई थी कि अंटार्कटिक के ऊपर बन रहा ओजोन छिद्र २०५० तक खत्म हो जाएगा ।
एमआईटी, कैलिफोर्निया और ब्रिस्टल विश्ववद्यालयों, दक्षिण कोरिया के क्यंुगपुक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के दी क्लाइमेट साइंस सेंटर और एक्सेटर के दी मेट ऑफिसके वैज्ञानिकों के एक समूह ने नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र में बताया है कि क्लोरोफॉर्म जैसे पदार्थों के स्तर में वृद्धि जारी है और इसके चलते ओजोन छिद्र में हो रहे सुधार की गति धीमी पड़ सकती है।
ओजोन गैस ऑक्सीजन का ही एक रूप है जो वायुमंडल में काफी ऊंचाई पर बनती है। गैस की यह परत सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणों को सोखकर पृथ्वी की रक्षा करती है। ऑक्सीजन के परमाणु में बाहरी इलेक्ट्रॉन शेल अधूरा होता है जिसकी वजह से ऑक्सीजन का परमाणु अन्य परमाणुओं के साथ संयोजन करता है। ऑक्सीजन का अणु दो ऑक्सीजन परमाणुओं से मिलकर बनता है। ये दो परमाणु बाहरी शेल के इलेक्ट्रॉन को साझा करके एक स्थिर इकाई बनाते हैं। वायुमंडल की ऊपरी परतों में पराबैंगनी प्रकाश के ऊर्जावान फोटोन ऑक्सीजन अणुओं को घटक परमाणुआेंमें विभक्त कर देते हैं।
एक अकेला परमाणु उच्च् ऊर्जा स्तर पर होता है और स्थिरता के लिए उसे बंधन बनाने की आवश्यकता होती है। वे अन्य ऑक्सीजन अणुओं के साथ बंधन बनाकर ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं वाला ओजोन का अणु बनाते हैं। ओजोन अणु फिर पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित करते हैं और एक अकेला ऑक्सीजन परमाणु मुक्त करते हैं, जो फिर से ऑक्सीजन अणुओं के साथ गठबंधन करके ओजोन बनाते हैं। और यह प्रक्रिया ऐसे ही चलती रहती है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक अकेले परमाणुआें की संख्या कम नहीं हो जाती । ऐसा तब होता है, जब दो अकेले परमाणु ऑक्सीजन का अणु बना लेते हैं।
इस प्रकार से ओजोन निर्माण और विघटन की एक प्रक्रिया चलती है। यह शुरू होती है पराबैंगनी प्रकाश द्वारा ऑक्सीजन अणुओं के विभाजन के साथ। इस क्रिया में उत्पन्न अकेले ऑक्सीजन परमाणु ऑक्सीजन के अणुओं के साथ गठबंधन करके ओजोन का निर्माण करते हैं। ओजोन में से एक बार फिर ऑक्सीजन परमाणु मुक्त होते हैं और ये ऑक्सीजन परमाणु आपस में जुड़कर ऑक्सीजन बना लेते हैं। इस तरह वायुमंडल में ऊंचाई पर ओजोन की मात्रा का एक संतुलन बना रहता है। यह ओजोन पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करके और उसे पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से दूर रखने की प्रक्रिया जारी रखती है। सतह पर पराबैंगनी विकिरण जितना कम होगा उतना मनुष्योंऔर अन्य जन्तुआें के लिए बेहतर है।
लेकिन ओजोन की इस संतुलित सुकूनदायक स्थिति में परिवर्तन तब आता है जब ओजोन को ऑक्सीजन में तोड़ने वाले पदार्थ ऊपरी वायुमंडल में पहुंच जाते हैं। इनमें से सबसे प्रमुख हैं पानी के अणु का ऋणावेशित जक हिस्सा, नाइट्रिक ऑक्साइड का छज हिस्सा, मुक्त क्लोरीन या ब्रोमीन परमाणु । ये पदार्थ ओजोन से अतिरिक्त ऑक्सीजन परमाणुओं को खींचने में सक्षम होते हैं और फिर ये ऑक्सीजन परमाणुओं को अन्य यौगिक बनाने के लिए छोड़ते हैं। इसके बाद ये पदार्थ अन्य ओजोन अणुओं से ऑक्सीजन परमाणुओं को खींचते हैं और लंबे समय तक ऐसा करते रहते हैं। ऊंचाई पर इनमें से सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्लोरीन है और एक क्लोरीन परमाणु १,००,००० ओजोन अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करते हुए दो साल तक सक्रिय रहता है।
ओजोन का विघटन करने वाले पदार्थों को वायुमंडल में भेजने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाएं बहुत कम हैं। लेकिन फिर भी १९७० के दशक के के बाद से ऊंचाइयों पर ओजनो परत में गंभीर क्षति देखी गई है। इसका कारण विभिन्न क्लोरोफ्लोरोकार्बन यौगिकों का वायुमंडल में छोड़ा जाना पहचाना गया था जिनका उपयोग उस समय उद्योगों में बढ़ने लगा था । ये यौगिक वाष्पशील होते हैं और वायुमंडल की ऊंचाइयों तक पहुंच जाते हैं और क्लोरीन के एकल परमाणु मुक्त करते हैं। ये क्लोरीन परमाणु ओजोन परत पर कहर बरपाते हैं।
पराबैंगनी विकिरण को सोखने वाली ओजोन परत हजारों सालों से ही मौजूद रही है और जीवन का विकास ओजोन की मौजूदगी में ही हुआ है । हो सकता है कि थोड़ा पराबैंगनी विकिरण जीवन की उत्पत्ति के लिए एक पूर्व शर्त रहा हो । लेकिन अब ओजोन की कमी और पराबैंगनी विकिरण में वृद्धि के गंभीर स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभाव हैं जिसका एक उदहारण त्वचा कैंसर की घटनाओं में वृद्धि में देखा जा सकता है। अंटार्कटिक के ऊपर के वायुमंडल में ओजोन में भारी कमी यानी ओजोन छिद का पता लगने के परिणामस्वरूप मॉन्ट्रियल संधि अस्तित्व में आई और यह अनुमान लगाया गया कि सीएफसी उपयोग पर रोक लगाई जाए तो २०३० तक त्वचा कैंसर के २० लाख मामलों को रोका जा सकेगा ।
जैसा कि हमने बताया, सीएफसी को ओजोन क्षति का मुख्य कारण माना गया था और इसलिए संधि में क्लोरोफॉर्म जैसे अन्य कारणों पर ध्यान नहीं दिया गया । ऐसा माना गया था कि वे अत्यंत अल्पजीवी पदार्थ (या वीएसएलएस) हैं और यह भी माना गया था कि ये मुख्य रूप से प्राकृतिक स्त्रोतों से उत्पन्न होते हैं। फिर भी, नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार समताप मंडल में वीएस-एलएस का स्तर बढ़ता जा रहा है।
अध्ययन के अनुसार दक्षिण धु्रव के वायुमंडल में क्लोरोफॉर्म का स्तर १९२० में ३.७ खरबवां हिस्सा था जो बढ़ते-बढ़ते १९९० में ६.५ खरबवें हिस्से तक पहुंचा और फिर इसमें गिरावट देखने को मिली। इसी अवधि में उत्तर धु्रव के वायुमंडल में क्लोरोफॉर्म ५.७ खरबवें भाग से बढ़कर १७ खरबवें भाग तक बढ़ने के बाद इसमें कमी आई । गिरावट का यह रुझान २०१० तक अलग-अलग अवलोकन स्टेशनों पर जारी रहा । लेकिन एक बार फिर यह बढ़ना शुरू हो गया। २०१५ तक के आकड़ों के अनुसार यह वृद्धि मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध में हुई है। शोध पत्र के अनुसार इससे पता चलता है कि वायुमण्डल में प्रवेश करने वाले क्लोरोफॉर्म का मुख्य स्त्रोत उत्तरी गोलार्ध में है।
आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमे-रिका और युरोप के पश्चिमी तट के स्टेशनों के अनुसार २००७-२०१५ के दौरान निकटवर्ती स्त्रोतों से उत्सर्जन के कारण क्लोरोफॉर्म स्तर में वृद्धि अधिक नहीं थी। दूसरी ओर, २०१०-२०१५ के दौरान जापान और दक्षिण कोरिया के स्टेशनों पर काफी वृद्धि दर्ज की गई थी ।
इस परिदृश्य का आकलन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने संभावित स्त्रोतों से प्रेक्षण स्थलों तक क्लोरोफॉर्म के स्थानांतरण का पता करने के लिए मॉडल का उपयोग किया। इस अध्ययन से पता चला कि २०१० के बाद से पूर्वी चीन से उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हुई है, जबकि जापान और दक्षिण कोरिया दूसरे स्थान पर हैं। अन्य पूर्वी एशियाई देशों से कोई महत्वपूर्ण वृद्धि देखने को नहीं मिली है। चीन में वृद्धि ऐसे क्षेत्रों में है जहां घनी आबादी के साथ-साथ औद्योगीकरण के कारण
क्लोरोफॉर्म गैस का उत्सर्जन करने वाले कारखाने हैं। शोध पत्र के अनुसार हवा में क्लोरोफॉर्म का एक बड़ा हिस्सा उद्योगों से आता है और क्लोरोफॉर्म के स्तर में वृद्धि मानव निर्मित है।
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