पर्यावरण परिक्रमा
बंजर जमीन की बदलेगी सूरत
देश में बंजर जमीन के संबंध मेंकेन्द्र सरकार ने बड़ा ऐलान किया है । वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि केन्द्र सरकार अगले १० वर्षो में ५० लाख हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का काम करेगी ।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र सीसीडी कॉप १४ की बैठक सितम्बर के महीने में होने वाली है । इस बैठक में अलग-अलग देशों के वैज्ञानिक आधुनिक तकनीकों के बारे में भी बताएंगे । केन्द्र सरकार बंजर जमीन के संबंध मेंयूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन के समझौता भी करेगी । सरकार नई दिल्ली डेक्लरेशन के बताए गए कायदों केहिसाब से आगे बढ़ेगी जिसमें देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में सेन्टर आफ एक्सीलेंस का गठन होगा ।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में करीब १.६० करोड़ हेक्टेयर जमीन बंजर है । इस जमीन को खेती के योग्य बनाने के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारेंआपस में मिलकर काम करेगी । यूएनसी-सीडी कॉप १४ में दुनिया के करीब २०० देश हिस्सा लेंगे । उन्होंने कहा कि ब्राजील के रियोड डी जेनेरियो के बाद इस तरह की बड़ी बैठक का प्रयास किया जा रहा है । भारत २०२१ तक यूएनसीसीडी का अगुवाई करेगा । ग्रेटर नोएडा में प्रस्तावित इस बैठक में करीब १०० देशों के मंत्री भी शामिल होगे । इसके साथ ही करीब तीन हजार डेलीगेट्स भी हिस्सा लेगें । इस बैठक को इसलिए भी अहम बताया जा रहा क्योंकि भारत में छोटे और सीमांत किसानों की तादाद ज्यादा है । अगर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का अभियान कामयाब हुआ तो न केवल किसानों की आय में इजाफा होगा बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को और रफ्तार मिलेगी ।
गैंडों को बचाए रखने के लिए बाढ़ जरूरी
पिछले कई साल की तरह इस साल भी असम में विनाशकारी बाढ़ में विश्व प्रसिद्ध कांजीरंगा नेशनल पार्क के २०० से अधिक जंगली जानवरों की जानें गई है । इनमें विलुप्त् हो रही प्रजाति के एक सींग वाले २० गैंडों के साथ १०० हॉग डियर और कुछ अन्य प्रजातियां शामिल हैं । बाढ़ के बीच एक रॉयल बंगाल टाइगर सबसे ज्यादा चर्चा मे रहा, जो बाढ़ से बचने के लिए पास के एक घर में जाकर बैठ गया था । इससे साफ पता चल रहा था कि पार्क के जानवर किस कदर बाढ़ से प्रभावित थे । कई लोगों का मानना है कि बाढ़ से नेशनल पार्क को बचाने की कोशिशें नहीं की गई । पर विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ नहीं आती, तो पार्क में विशेष रूप से गैंडे और भैंसे जैसे अन्य जानवरों का अस्तित्व ही नहीं होता।
काजीरंगा नेशनल पार्क के डायरेक्टर पी शिवकुमार ने बताया कि पार्क में ग्रासलैंड ईको-सिस्टम है, इसके बने रहने पर ही शाकाहारी जानवर बच सकते है । ब्रह्मापुत्र की बाढ़ हर साल जमीन को साफ कर कुछ विलुप्त् होती प्रजातियोंको जीवनदान दे जाती है । पोषक तत्व से भरपूर यह जमीन चरने वाले पशुआें को चारा देती है । ऊंची-ऊंची घास शिकारी जानवरों को छुपकर शिकार करने का सहारा भी बनती है ।
हर साल बढ़ा जलीय स्त्रोतों में बड़ी संख्या में पोषक तत्व भर देती है । इससे पानी में रहने वाली कई प्रजातियां सुरक्षित हो जाती है । इन्हीं स्त्रोतों में हजारों किमी से प्रवासी पक्षी भी आते है ।
वाइल्ड लाइफ बायोलॉ-जिस्ट और पार्क में वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण केन्द्र के प्रमुख डॉ. रथिन बर्मन का कहनाहै कि बाढ़ यहां के ईको सिस्टम की रीढ़ है । बाढ़ अच्छी है, बशर्ते है कि बाढ़ के समय हाइलैड्स पर जानवरों को सुरक्षित रख सकें । लेकिन ब्रह्मपुत्र के ऊपरी हिस्से में बन रहे बांध से समस्या हो सकती है, इससे कुछ ही समय में काजीरंगा के निचले हिस्से को खतरा हो सकता है ।
बाढ़ से इस साल नेशनल पार्क का ९० प्रतिशत हिस्सा डूब गया था । पार्क में २४१४ गैंडे है, १०८० हाथी, ११० बाघ और ९०७ स्वैम्प डियर है । पार्क में १४० हाइलैंड्स हैं, जहां बाढ़ के दौरान जानवर शरण लेते है । इस साल पार्क का ९० प्रतिशत हिस्सा डूब गया था । इससे जानवरों ने हाइलैंड्स मेें शरण ली थी ।
प्लास्टिक के विरूद्ध अभियान
देश में आगामी २ अक्टूबर से भारत में प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में इस आशय की घोषणा की । भारत में हर रोज करीब २६ हजार टन प्लास्टिक इस्तेमाल हो रहा है । इस प्लास्टिक से पदार्थ निकलकर चुपचाप हमारी सांस और पीने की पानी तक में घुलता रहता है और हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है । न केवल मानव, बल्कि धरती के दूसरे प्राणी और पेड़-पौधें भी इससे प्रभावित होते है । प्लास्टिक से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी तक हो सकती है । प्लास्ट इंडिया फाउंडेशन के अनुसार अभी जितनी प्लास्टिक की खपत हो रही है २०२० तक वह डेढ़ गुना तक हो सकती है । जाहिर है कि जब इतनी प्लास्टिक ही हम सहन नहीं कर पा रहे है तो आगे जाकर क्या होगा ? इसीलिए प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया गया है ।
प्लास्टिक की कुछ वस्तुएं हमारे जीवन में उपयोगी है, लेकिन एक समय के लिए इस्तेमाल होना वाला प्लास्टिक कई घातक बीमारियोंको जन्म दे रहा है, जिससे लड़ने के लिए खरबों रूपए खर्च करने पड़ रहे है । न्यूर्याक स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में खुलासा किया है कि बोतलबंद पानी में जैसे ही सूर्य की किरणें पहुंचती है, प्लास्टिक के माइक्रोकण पानी में मिल जाते है । वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक की बोतलों में ठंडे पदार्थ रखना उतना खतरनाक नहीं हैं, लेकिन आज कल शहरों में चाय की दुकान वाले प्लास्टिक की पन्नी में गर्म चाय ग्राहकों को पैक करके दे देते है । इतना ही नहीं प्लास्टिक के कप में गर्म चाय-कॉफी और सूप जैसे पदार्थ भी सर्व किए जा रहे है । यह सब स्वास्थ्य के लिए घातक है । डॉक्टर्स भी चेतावनी दे चुके है कि प्लास्टिक के कप और ग्लास की खपत बढ़ती जा रही है । मिट्टी के कुल्हड़ का उपयोग धीरे-धीरे कम होता जा रहा था, लेकिन अब लोगों का ध्यान वापस कुल्हड़ की तरफ आने लगा है । कई पर्यावरण प्रेमी तो मिट्टी के बर्तनों में पकाया खाना पसंद करने लगे है ।
यह बात सही है कि प्लास्टिक सस्ता है और सुगमता से उपलब्ध है, लेकिन प्लास्टिक के कचरेका निपटारा एक चुनौती बन गया है । यहां-वहां उड़ता प्लास्टिक का कचरा न केवल गांवोंऔर नगरों को बल्कि वनों और समुद्र को भी नुकसान पहुंचा रहा है । कई राज्यों ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की पहल की है, लेकिन प्लास्टिक को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता । दुर्भाग्य की बात है कि स्थानीय उत्पादक से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक छोटे-छोटे पाउच में गुटखा, शैम्पू, तेल आदि पदार्थ बेचने लगे है । उपयोग के बाद खाली पाउच हवा मेंयहां-वहां उडते रहते हैं और नालियों को चोक करते रहते है ।
नगर पालिकाआें, नगर निगमों आदि के लिए ऐसे कचरे का प्रबंध चुनौती बन गया है । पर्यटन केन्द्रों में तो यह चुनौती और भी अधिक है । वक्त आ गया है कि समस्या से निपटने के लिए पुरानी तकनीकों पर ही लौटा जाए । जैसे कुल्हड़ और पलाश के पत्तों से बने पत्तल दोनों का प्रयोग । कुछ दशक पहले तक रेल यात्री अपने साथ अपना धातु का ग्लास लेकर यात्रा करते थे और जरूरत पड़ने पर उसी में चाय या पानी पी लेते थे, लेकिन धीरे-धीरे यात्रियों की सुविधा के नाम पर खाद्य पदार्थो की बिक्री बढ़ने लगी ।
आमआदमी के मन मेंयह सवाल आना स्वाभाविक है कि अगर प्लास्टिक इतना बड़ा खतरा है, जिसकी चिंता प्रधानमंत्री तक को है और इस खतरे के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है, तो आखिर ऐसे प्लास्टिक के सामान का उत्पादन ही क्योंकरने दिया जा रहा है ? तम्बाखू और सिगरेट की तरह ही प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादन पर कोई रोक नहीं है । जैसे तम्बाखू और सिगरेट के उत्पादन पर रोक नहीं है, लेकिन चेतावनियां बार-बार दी जा रही है । अगर उत्पादन ही बंद कर दिया जाए तो, समस्या से निपटा जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार को संकल्पित होकर कार्य करना होगा ।
अब शगुन बताएगा स्कूलोंके सारे गुण
भारत सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलोंसे जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए शगुन नाम से एक एकीकृत आनलाईन पोर्टल लॉन्च किया है । इस पोर्टल से देशभर के सभी १५ लाख स्कूलों, ९० लाख से ज्यादा शिक्षकों और करीब २५ करोड़ छात्रों को जोड़ा गया है । इनमें निजी और सरकारी स्कूलों सहित स्कूली शिक्षा से जुड़े संस्थाआें को शामिल किया गया है ।
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पिछले दिनों स्कूली शिक्षा पर निगरानी रखने के लिए इस एकीकृत पोर्टल को लांच किया । इस पोर्टल में शिकायत और सुझाव का भी विकल्प रखा गया है, जिसके जरिए कोई भी छात्र, अभिभावक या कोई अन्य व्यक्ति अपनी शिकायत का सुझाव दे सकेंगे । शगुन के जरिये स्कूली शिक्षा से जुडी करबी दो लाख वेबसाइटों को एक साथ जोड़ा गया है ।
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