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चन्द्रयान २ : हम होगे कामयाब
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने कहा है कि चन्द्रयान-२ के ऑर्बिटर ने चांद की सतह पर उस स्थान का पता लगा लिया है, जहां उसके लैंडर विक्रम ने लैंड किया है ।
इसरो केअधिकारियों ने बताया कि विक्रम से संपर्क टूटने तक ऑर्बिटर तथा लैंडर से मिले डाटा की लगातार निगरानी के बाद उसके लैंड करने के स्थान का पता लगाया जा सका है । इसरो इस बात का पता लगाएगा कि विक्रम लैडर ने हार्ड लैडिग की है अथवा चांद की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयाहै । उन्होंने बताया कि इसका पता विक्रम लैंडर का इसरो से सम्पर्क टूटने से पहले अंतिम क्षण तक उसके द्वारा भेजे गए डाटा का अध्ययन करके ही लगाया जा सकता है ।
भारत का चन्द्रयान-२ मिशन अपना उद्देश्य पाने में ९० से ९०.५प्रतिशत तक पाने में सफल रहा । जब लेन्डर विक्रम चांद के धरातल से २.१ किलोमीटर की दूरी पर था उसका इसरो के बैगलुरू केन्द्र से संपक र् टूटा जब उसके उतरने में ६९ सेकण्ड का समय बचा था, इस समय लेंडर विक्रम की गति लगातार कम की जा रही थी जो उतरने की प्रक्रिया का अंतिम कार्य था ।
ऐसा अनुमान हो रहा है कि जब कमान्ड सेन्टर से उसकी रफ्तार करने के लिये जो ब्रेक लगाये जा रहे थे उसी समय लेन्डर विक्रम थोड़ा सा तिरछा हो गया और सिग्नल मिलना बंद हो गया । लेकिन चन्द्रयान के साथ जो आर्बीटर चांद के फोटो लेने के लिये भेजा गया है, वह बराबर उसके निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लगातार चांद का चक्कर लगाते हुए फोटो भेजने का काम करता जा रहा है । उसने लेन्डर विक्रम की फोटो भी भेज दी है कि वह कहां और किस स्थिति में है । इसरो का कमान्ड लेन्डर का चित्र आते ही उससे पुन: संपर्क स्थापित करने के प्रयास कर रहा है । यदि इससे सफलता मिल गयी तो उसे कमान्ड देकर यही स्थिति लाकर उसे पूर्ववत कार्यक्रम के अनुसार पुन: उतारने की प्रक्रिया संपन्न की जा सकती है । आर्बीटर अपना काम बराबर करता जा रहा है और उससे फोटो प्राप्त् हो रहे है, उन्हीं में एक फोटो लेन्डर विक्रम का भी मिल गया ।
लगभग सभी वैज्ञानिक अनुसंधान व कार्यक्रम त्रुटि व असफलता में गुजरते हुए सफल हुए है जिन्होंने दुनिया में क्रांति ला दी है । इसी साल इजरायल ने चांद के दक्षिणी धु्रव पर उसका चन्द्रयान भेजा था । यह भी वहां उतरने में विफल रहा ।भारत ने २२ अक्टूबर २००८ में चन्द्र यान- १ भेजा था जो सफल रहा ।
रूस ने सन् १६५९ से ७६ तक चांद पर २४ प्रयास किये और ९ असफल और १५ सफल रहे । सन १९९० में जापान का पहला चन्द्रयान असफल रहा और २००९ में उसका चन्द्र अभियान सफल रहा ।
जब ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इसरो में वैज्ञानिक थे, उनकी टीम ने एक राकेट श्री हरिकोटा में लांच किया था जो छोड़ने के कुछ ही मिनिटों में बंगाल की खाड़ी में गिर गया था । उस समय इसरो के प्रधान सतीश धवन थे । इस असफलता पर श्री कलाम ने इस्तीफा पेश किया जिसे श्री धवन ने अस्वीकार करते हुए श्री कलाम से कहा कि वैज्ञानिक अपने अनुसंधानों व प्रयोगों से इस तरह पीछे नहीं हटते है, बल्कि उसके लिए और अधिक प्रयास करते हैं ।
श्री कलाम अपने काम में बने रहे और बाद मेंअसफल वैज्ञानिक श्री कलाम उस बुलन्दी पर पहुंचे कि उन्होंने भारत की रक्षा प्रणाली में मिसाइल युग प्रारंभ कर दिया और उन्हें भारत के मिसाइल मैन के रूप में ख्याति मिली । राष्ट्र ने उनके मिसाइल कार्यक्रम के लिए उन्हें भारत रत्न दिया और उन्हें देश का राष्ट्रपति बनाया ।
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