बुधवार, 18 सितंबर 2019

प्रदेश चर्चा
उत्तराखंड : चारधाम रोड़ का संकट
सुरेश भाई 
  विशालकाय बांधों के बाद बेहद संवेदनशील पहाड़ों के साथ अब एक नया खेल शुरु हो रहा है-चार धाम के लिए चौड़ी सड़क के निर्माण का । 
आधुनिक विकास के नाम पर किए जा रहे इस कारनामे के लिए लाखों पेड़ों, संवेदनशील पहाड़ों, नदियों के प्राकृतिक रास्तों और पीढ़ियों से बसे आम लोगों की बलि दी जाएगी। मैदानी क्षेत्रों और पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील हिमालय इसकी कीमत कैसे चुकाएगा ? 
पहाड़ से मैदान तक बाढ़ व भूस्खलन का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। पहाड़ों पर मिट्टी व पत्थरों को थामकर रखने वाली वनस्पति व पेड़-पौधे हर वर्ष आग में जल जाते हैं और नतीजे में भूस्खलन होता है। छोटे-बड़े भूकम्पों ने भी उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर जैसे इलाकों के पहाड़ों में दरारें पैदा कर रखी हैं, जिसमें बारिश का पानी एकत्रित होकर 'पनगोलों` के रूप में धरती को फाड़कर हर बार आपदा की स्थिति पैदा करता है। 
पिछले माह तक केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उतर-पूर्व, हिमाचल, बिहार आदि राज्यों में बाढ़ में फंसे लाखों लोगों में मरने वालों की संख्या ३०० के पार हो गई थी । पिछल्े दिनों उत्तराखण्ड के मोरी विकासखंड में भारी बारिश के चलते डेढ़ दर्जन लोग भूस्खलन की चपेट में आकर मरे हैं। इस दुखद घटना के प्रभावितों को राहत पहुँचाने गए एक हेलिकॉप्टर में तीन लोग मारे गए । लोगों की खेती-बाड़ी, मकान, रास्ते मलवे के ढेर में तब्दील हो गये हैं। यहां से होकर बहने वाली हिमाचल की पावर नदी और यमुना की सहायक टौंस नदी में आये जलप्रलय ने आगे हरियाणा में यमुना पर बने हथिनी कुंड बैराज में पानी बढ़ने से लगभग आठ  लाख क्यूसेक पानी अकस्मात छोड़ा गया, जिससे गंगा-यमुना के मैदानी क्षेत्र और दिल्ली के लोगों को जानलेवा बाढ़ का सामना करना पड़ा। यह घटना हर वर्ष हो रही हैं। देश के मैदानी राज्यों में बाढ़ की वजह बांध और बैराजों से छोड़ा जा रहा पानी भी है।
साफ जाहिर है कि नदियों की बर्बादी हो रही हैं। जल-निकासी के रास्तों पर सीमेंट की बहुमंजिली इमारतें बन गई हैं। कुल मिलाकर वर्तमान जीवन शैली और अनियंत्रित विकास के अंधानुकरण ने जहां एक ओर जलप्रलय की स्थिति पैदा की हैं, वहीं साल के कई महिनों तक जल की भारी कमी भी लोग झेल रहे हैं। पहाड़ों में भी इसके कई उदाहरण हैं । छोटे आकार की घाटियों और चोटियों को नजरअंदाज करके चार धाम के लिये बनाई जा रही १८ मीटर चौड़ी सड़क बरसात के इस मौसम में मुसीबत बन गई है।
'केन्द्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री` नितिन गडकरी पहाड़ों में जिस हरित निर्माण तकनीक के आधार पर सड़कों के चौडीकरण का दावा कर रहे हैं, उसके विपरीत केदारनाथ, यमनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ जाने वाली मोटर सड़क के चौडीकरण के निर्माण से निकल रहा मलवा सीधे भागीरथी, अलकनंदा, यमुना, मंदाकिनी में उडेला जा रहा हैं। कहीं-कहीं दिखाने के लिए डंपिंग-यार्ड बनाए गए हैं, लेकिन उनकी क्षमता पूरे मलवे को समेटने की नहीं है। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर बडेथी, धरासू और अन्य कई स्थानों पर डंपिंग-यार्डों की चिंताजनक स्थिति है। खतरनाक क्षेत्रों (डेन्जर जोन्स) के सुधार पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी भूस्खलन बढ़ता ही जा  रहा है। 
स्थानीय मीडिया और प्रशासन की सतर्कता के बाद भी सड़क चौडीकरण का मलवा नदियों में जाने से नहीं रोका जा सका है। इसके कारण टिहरी बाँध के  जलाशय में बड़ी मात्रा में रेत जमा होती जा रही है। दूसरी ओर बाँध के चारों ओर भूस्खलन दिखाई दे रहा है। यहां बसे हुए गांवों के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है। यमुना के मायके में स्थित औजरी-डाबरकोट भूस्खलन यमनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर पिछले २-३ वर्षों से लगातार जारी है।
सच्चई यह है कि संवेदनशील पहाड़ों में भूस्खलन रोकने के लिए निर्माण की वैज्ञानिक तकनीक पर कभी सोचा ही नहीं गया है। यहां निर्माण शुरू होते ही संवेदनशील जगहों पर बड़ी जेसीबी मशीनों से खुदाई शुरू हो जाती है। इसके चलते पहाड़ों की ढालदार कटिंग करने की बजाय जल्दी काम पूरा करने के चक्कर में वे खड़े में काट दिए जाते हैं जो आगे जाकर पूरे पहाड़ को ही टूटने के लिए मजबूर कर देते हैं। इसी कारण वर्ष २०१८ तक चार-धाम की सड़कों पर केवल तीन दर्जन खतरनाक क्षेत्र (डेंजर जोन्स) बढ़कर अब दुगने से अधिक हो गए  हैं।
ऋषिकेश-चंबा-धरासू राष्ट्रीय राज मार्ग पर सड़क चौड़ीकरण से नरेन्द्र नगर बाईपास, हिंडोलाखाल, फकोट, आगराखाल, ताछला, उपरी खाडी, ढिक्यारा, डाबरी, कोटी गाड, किरगणी आदि स्थानों पर खतरनाक क्षेत्र (डेंजर जोन्स) बन गये हैं। पिछले दिनों यहां पर पहाड़ से पत्थर गिरने से चार कावडियों ने अपनी जान गंवाई है। इसी तरह बद्रीनाथ के पास लामबगड में यात्री बस पर चट्टान गिरने से छह लोगों की मौत हुई है। यहां कई स्थानों पर लोगों के व्यावसायिक होटल, घर, खेती बर्बाद हो गई है । इसी तरह बद्रीनाथ मार्ग पर कालेश्वर भंकुडा, देवली बगड, सोनला, पुरसाडी, मैठाणा, चमोलीचाडा, पातालगंगा, गुलाबकोटी भी 'डेंजर जांेन` का रूप ले रहे हैं। सिरोह बगड, लामबगड जैसे बड़े भूस्खलन पूर्व में सड़क निर्माण के दौरान किये गये विस्फोटों से सक्रिय थे, अब वे जानलेवा बन गये हैं। रूद्र प्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर बांसवाडा समेत दर्जनों स्थानों पर भूस्खलन सक्रिय हैं।
चार धाम सड़क चौडीकरण जिसे 'ऑल-वेदर रोड` के नाम से ख्याति तो मिली है, लेकिन इसको 'डेंजर झोन` से मुक्ति नहीं मिली तो यह सभी मौसमों का सामना कैसे करेगी ? यहां 'डेजर जोन` बनने का एक और भी कारण हैं कि मौजूदा सड़क के दोनों ओर हजारों हरे पेड़ों को काटा गया है और भविष्य में भी हजारों दुर्लभ प्रजाति के पेड़ काटे जाने प्रस्तावित हैं। प्रख्यात पर्यावरणविद् चंडीप्रसाद भट्ट, गांधीवादी राधा बहन, भूगर्भवेत्ता पद्मभूषण खडग सिंह बाल्दिया जैसे गणमान्यों ने भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील इस जोन-४-५ में चौडी सड़क के निर्माण के दौरान पर्यावरण के नुकसान के प्रति केन्द्र सरकार को अगाह किया था। पहाड़ी राज्यों में निश्चित ही दुर्गम स्थानों को पार करने के लिए सड़क की आवश्यकता है, लेकिन सड़कों का निर्माण पहाडों की बर्बादी का कारण नहीं बनना चाहिए ।
उच्च् अदालतें भी इस विषय पर सचेत करती रहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त २०१९ के तीसरे सप्ताह में 'सिटिजन फॉर ग्रीन दून` की एक याचिका पर ऑलवेदर रोड में पर्यावरण मानकों के अध्ययन के  लिए एक उच्चधिकार समिति बनाने का आदेश दिया है। इसी तरह का एक आदेश वर्ष २०१३ की केदारनाथ आपदा के कारणों के अध्ययन के लिये एक विशेषज्ञ समिति को बनाकर भी दिया गया था । इस समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिये बहुत उत्साह भी दिखाया गया था, लेकिन जब सही वक्त पर इसे क्रियान्वयन किया जाना था तब उससे किनाराकसी कर ली गई । 
अब इसे केवल जलवायु परिवर्तन कहकर मनुष्य की कारगुजारियों से पल्ला झाडा जा रहा है। ऐसे उदाहरणों से लगता है प्रकृति के रौद्र रूप का सामना करने के लिये कोई तैयारी ही नहीं की जा रही।

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