शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

२ हमारा भूमण्डल


बालश्रम निवारण की धीमी रफ्तार
कनग राजा

बालश्रम समाप्त् करने की दिशा में राष्ट्रों की प्रगति बहुत धीमी है । परंतु यह खुशी का विषय है कि जोखिम भरे कार्योंा में बालश्रम की भागीदारी कम हुई है । वहीं चिंता का विषय है कि १५ से १७ वर्ष तक के बालश्रमिकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है । आवश्यकता इस बात की है सरकारें बालश्रम को घृणित अपराध मानकर समाप्त् करने में सख्ती दिखाएं।
अंतराष्ट्रीय श्रम कार्यालय (आईएलओ) ने चेतावनी दी है कि वर्तमान ेंमें२०१६ तक बालश्रम समाप्त् करने के प्रयासों की गति धीमी पड़ गई है । अपनी चार वर्षीय रिपोर्ट में कार्यालय ने कहा है कि सन् २००४ से २००८ के मध्य बाल श्रमिकों की संख्या २२ करोड़ २० लाख से घटकर २१करोड़ ५० लाख रह गई है । यह ३ प्रतिशत की गिरावट बालश्रम में कमी की धीमी वैश्विक गति की परिचायक है ।
आईएलओ के निदेशक जुआन सोनाविआ का कहना है कि प्रगति की रफ्तार असमान है । इससे हम अपने तय किए गए लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते । अतएव अब बड़े स्तर पर प्रयत्नों की आवश्यकता है । समय की मांग है कि हम बालश्रम के खिलाफ नई ऊर्जा से पुन: संगठित हों । साथ ही हमें अपने प्रयत्नों को और गति देना होगी । आईएलओ का कहना है कि २००६ में की गई समीक्षा के आंकड़े अधिक उत्साह जनक थे । रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस असमान प्रगति से २०१६ तक वीभत्स बालश्रम से मुक्ति पा पाना अब कठिन होता जा रहा है ।
उम्र और लिंग संबंधी आंकड़ों का खुलासा करते हुए इसमें बताया गया है कि ५ से १४ वर्ष तक के बाल श्रमिकों की संख्या में सर्वाधिक १० प्रतिशत की कमी आई है । खतरनाक या जोखिम भरे उद्योगों में इस उम्र के बच्चें की संख्या में ३१ प्रतिशत की कमी आई है । बालश्रम में लड़कियों की संख्या में काफी कमी आई है। यह कमी १५ प्रतिशत अथवा १.५० करोड़ है । वहीं दूसरी और लड़कों की संख्या में ८० लाख अथवा ७ प्रतिशत की वृद्धि हुई है । जबकि जोखिम भरे कामों में लड़कों की स्थिति कमोबेश यथावत यानि ७.४ करोड़ बनी हुई है । कुल मिलाकर बालश्रमिक के रूप में ४ करोड़ लड़के अधिक हैं । अगर तुलनात्मक रूप से देखें तो १२.८ करोड़ लड़कों के मुकाबले ८.८ करोड़ लड़कियां ही बालश्रमिक है ं
अब अधिक उम्र के बच्चें में लड़कों का बालश्रमिक के रूप में अधिक संख्या में आना खतरनाक स्तर को छू रहा है । जोखिम भरे कार्योंा में लड़के एवं लड़कियों के बीच यह अनुपात १:२ का हो गया है अर्थात दुगने लड़के खतरनाक कार्योंा में लगे हुए हैं । रिपोर्ट की मुख्य बात यह है कि इसके अनुसार वैश्विक स्तर पर बालश्रम में कमी आ रही है । परन्तु अभी २१.५ करोड़ बच्च्े इसमें फंसे हुए हैं । खरतनाक किसम के कार्योंा में बच्चें को गुपचुप तरीके से रखे जाने से इस क्षेत्र में बच्चें की उपस्थिति, खासकर १५ वर्ष से कम बच्चें की गणना करना कठिन हो जाता है । इनकी कुल संख्या मे कमी तो आ रही है लेकिन कमी की रफ्तार धीमी है और अभी करीब ११.५० करोड़ बच्च्े खतरनाक एवं जोखिम भरे कार्योंा में लगे हुए हैं ।
जहां एशिया प्रशांत क्षेत्र, लेटिन अमेरिका और केरेबियन देशों में बालश्रम में कमी आ रही है वहीं दूसरी ओर उप सहारा अफ्रीका में इनकी संख्या बढ़ रही है । अधिकांश बालश्रमिक खेती में काम करना जारी रखे हुए हैं । इनमेंं से केवल ५ में से १ बच्च्े को अपने श्रम का भुगतान मिलता है । इसकी वजह यह है कि अधिकांश बच्च्े पारिवारिक श्रमिक हैं । बालश्रम से संबंधित वर्तमान धाराआें ५ से १४ वर्ष एवं १५ से १७ वर्ष आयु वर्ग के अध्ययन से पता चलता है कि पिछले चार वर्षोंा में ५ से १४ वर्ष के बालश्रमिकों की संख्या एवं अनुपात दोनों ही दृष्टि से कमी आई है । पिछले चार वर्षोंा में इस आयु समूह के बालश्रमिकों में १० प्रतिशत की एवं जोखिम भरे कार्योंा में ३१ प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है । इस रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ग में गिरावट पुराने अनुमान के अनुसार ही है साथ ही यह इस बात का भी अनुमोदन करती है कि सुकोमल वर्ग की सबसे घृणित किस्म के श्रम में भागीदारी कम हो रही है ।
परन्तु बड़े बच्चें के मामलों मे तस्वीर डरावनी है । आईएलओ के अनुसार १५ से १७ वर्ष तक के बच्चें की संख्या ५.२० करोड़ से बढ़कर ६.२ करोड़ हो गई है । इसमें २००४ एवं २००८ के मध्य मुकाबले २० प्रतिशत की वृद्धि हुई है । रिपोर्ट के अनुसार सर्वाधिक बालश्रमिकों की संख्या ११.३६ करोड़ एशिया प्रशांत क्षेत्र में और लेटिन अमेरिका और केरेबियन देशों में प्रत्येक १.४१ करोड़ है । अगर आनुपातिक दृष्टिकोण से देखें तो उपसहारा क्षेत्रों में सबसे अधिक चौंकाने वाली स्थिति उभर रही है । इस क्षेत्र में चार में से एक बच्च बालश्रमिक है । जबकि इसकी तुलना में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आठ में से एक ओर लेटिन अमेरिका में दस में से एक बच्च बालश्रमिक है । जोखिम भरे कार्योंा में अलग ही तस्वीर उभर रही हैं उप सहारा क्षेत्र में १५ प्रतिशत एशिया व प्रशांत क्षेत्र में एवं लेटिन अमेरिका एवं केरेबियन देशों में क्रमश: ५.६ प्रतिशत एवं ६.७ प्रतिशत बच्च्े इन कार्योंा में लगे हैं । इस प्रकार इन देशों में करीब १ करोड़ बच्च्े जोखिम भरे कार्य कर रहे हैं ।
आईएलओ का कहना है कि बच्चें के रोजगार मंे २००४-०८ के मध्य उप सहारा अफ्रीका क्षेत्र को छोड़कर सभी जगह कमी आई है । वहीं उप सहारा क्षेत्र में इसमें एकाएक तेजी आई है और २००४ में वहां ४.९३ करोड़ बालश्रमिक थे, वहीं २००८ में ये बढ़कर ५.८२ करोड़ हो गए हैं अर्थात् इनमें २६.४ प्रतिशत से २८.४ प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई
है । आईएलओ ने ऐसे सभी बच्च्े जो कोई न कोई कार्य करते हैं, को रोजगार में बच्च्े के तहत परिभाषित कर रखा है । इसमें से कुछ कार्योंा को आईएलओ और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत मान्यता भी मिली हुई है ।
रिपार्ट का मानना है कि बालश्रम के खिलाफ दक्षिण एशिया में लड़ाई जीतना आवश्यक है । संख्या की ओर इंगित करते हुए बताया गया है कि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में करोड़ों बालश्रमिक मौजूद हैं । इसमें कृषि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र की संयुक्त संख्या की गणना की गई है । इसके अनुसार ५ से १७ वर्ष तक के अधिकांश बालश्रमिक कृषि कार्य करने मेंलगे हैं अगर तुलना करें तो बालश्रमिकों में से ६० प्रतिशत कृषि में २६ प्रतिशत सेवा क्षेत्र में और ७ प्रतिशत उद्योगों में कार्यरत है । जहां लड़के कृषि और उद्योग में अधिक कार्यरत हैं वहीं लड़कियां सेवा क्षेत्र में अधिक संख्या मे हैं । दो तिहाई बालश्रमिक पारिवारिक श्रमिक की तरह मुफ्त में कार्य करते हैं । इसमें ६४ प्रतिशत लड़के और ७३ प्रतिशत लड़कियां हैं ।
रिपोर्ट में इस बात की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया है कि आईएलओ से संकल्प क्रमांक १८२ जिसमें बाल श्रमिक के घृणित स्वरूप का जिक्र किया था, को समाप्त् करने में बहुत तत्परता दिखाई जा रही है । इस संकल्प पर अब तक आईएलओ के १८३ सदस्य देशों में से १७१ हस्ताक्षर कर चुके हैं । इस बीच बालश्रम से लड़ने के सूचकांक मेंमूल शिक्षा संबंधी रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी भी अनुमानत: ७.५ करोड़ बच्च्े , जिनमें ५५ प्रतिशत लड़कियां हैं, विद्यालयों में नहीं
जातीं । वैसे १९९९ से अब तक प्राथमिक स्तर की शिक्षा में नाम न लिखाने वाले बच्चें की संख्या में ३.३ करोड़ की कमी आई है । २००७ में ७.२ करोड़ बच्च्े विद्यालय नहीं जाते थे । वर्तमान प्रवृत्तियों से जान पड़ता है कि २०१५ तक करोड़ों बच्च्े या कम से कम ५.६ करोड़ बच्च्े तो विद्यालयीन शिक्षा में नहीं होंगे । इसका सीधा सा अर्थ हुआ कि २०१५ तक पूर्ण किया जाने वाला शिक्षा संबंधी शताब्दी लक्ष्य पूर्ण नहीं हो पाएगा ।
आईएलओ ने २००६ में अपने दृष्टांत प्रपत्र में २०१६ तक बहुत बुरी प्रवृत्ति वाले बालश्रम को समाप्त् करने का लक्ष्य रखा था । जैसे-जैसे समय नजदीक आता जा रहा है, लगने लगा है कि इसे पूरा नहीं किया जा सकता । रिपोर्ट में राष्ट्रों से कहा गया है कि वे अपनी नीतियों में बालश्रम को समाप्त् करने पर अधिक ध्यान दें । इस हेतु राजनीतिक एवं राष्ट्रीय बजट बनाते समय ये दोनों ही बालश्रम को प्राथमिकता नहीं देते । यदि २०१६ के लक्ष्य को पुन: रास्ते पर लाना है तो कर्मचारी और नियोक्ता संगठनों को अधिक राष्ट्रीय जिम्मेदारी और आकांक्षा के साथ कार्य करना होगा ।
***

कोई टिप्पणी नहीं: