शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

१० हमारा देश


क्या सचमुच मुक्त व्यापार है
डॉ. बनवारी लाल शर्मा

कम से कम पिछले तीस सालों से मुक्त व्यापार अन्तराष्ट्रीय व्यापार के एक उसूल के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है । विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) का गठन १९९४ में इस उद्देश्य से किया गया था कि तमाम देशों के बीच व्यापार में आने वाली रूकावटों को दूर किया जा सके और उन्मुक्त प्रवाह के साथ व्यापार हो सके । अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में बड़ी शक्तियों ने घोषित किया था कि दुनिया का विकास व्यापार के जरिये ही संभव है । विकासशील देशों ने अपने घरेलू उत्पादों के विकास और कर लगा कर सस्ते विदेशी आयातों से उनकी रक्षा करने के लिए संरक्षणवाद का जो रास्ता अपनाया था, उसे गलत तरीका करार दिया गया । इस अन्तर्राष्ट्रीय नीति के परिणामस्वरूप भारत जैसे देशों को अपने दरवाजे खोलने पड़े । विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) का इस्तेमाल निर्यातों के लिए बाजार हासिल करने के लिए किया
गया । उदाहरण के लिए १९९२ में विश्व व्यापार संगठन के विवाद निस्तारण बोर्ड ने अमेरिका की शिकायत पर एक फैसला दिया था जिसके तहत भारत को १४२९ विदेशी वस्तुआेंके लिए अपना बाजार मजबूरन खोलना पड़ा था । इनमें ऐसे उत्पाद भी शामिल थे जिनका भारत निर्माण करता आ रहा था ।
भारत और अन्य देशों को खास करके सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आउटसोर्सिंग के लिए प्रतिबंधित करने वाले जिस नये कानून पर हाल में राष्ट्रपति ओबामा ने हस्ताक्षर किये हैं वह मुक्त व्यापार बड़ा आघात है । बहुत अमरीकी कम्पनियां-एयरलाइन्स, बैंक आदि अपने सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी काम भारत जैसे देशों के सस्ते श्रमिकों द्वारा करवा लेते थे । पिछले कई सालों से भारत में बंगलोर, पुणे, मुम्बई, दिल्ली जैसे नगरों में तमाम कॉल सेन्टर चल रहे थे जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षित युवक-युवतियां अमरीकी फर्मोंा के लिए रात मेंे काम करते थे (क्योंकि अमरीका में यह दिन का वक्त होगा) अनेक भारतीय आई.टी. कम्पनियां अच्छा बिजिनेस कर रही थीं ।
लेकिन अमरीका बिना किसी रूकावट के होने वाले इस व्यापार में जहां भारत के सस्ते श्रम का बखूबी इस्तेमाल कर रहा था, वहीं नौकरियां अमरीका से भारत को स्थानांतरित भी तो हो रही थीं । यही स्थिति अमेरीका और यूरोप से कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में भी थी । इन देशों की सरकारों द्वारा किसानों को भारी आर्थिक सहायता (सब्सीडी) दी जाती है । यह भारी आर्थिक सहायता डब्लूटीओ के प्रावधानों के विरूद्ध हैं, लेकिन मुक्त व्यापार के नाम पर जारी है । अमरीकी राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया यह नया कदम अमरीका में मंदी से उत्पन्न बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए है । कोई भी देश बेरोजगारी पर काबू करने के लिए ऐसे कदम उठा सकती है, लेकिन अमरीका को मुक्त व्यापार पर उपदेश देना बन्द कर देना चाहिए ।
पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर
वर्चस्व रखने वाले विकसित देशों द्वारा अपनाये गये दोहरे मानदंड का यह पहला उदाहरण नहीं है । भारत से इस्पात का निर्यात होता था जो कि अमरीका के इस्पात से बेहतर था और सस्ता भी था । तत्कालीन राष्ट्रपति जार्जबुश ने भारतीय इस्पात पर १५ फीसदी एण्टीडम्पिग ड्यूटी थोप दी थी । नतीजतन भारतीय इस्पात के व्यापार में बड़ा घाटा
हुआ ।
सूती वस्त्र का मामला सबसे ज्वलंत उदाहरण है दोहरे मानदंड का । १९९५ में डब्लूटीओ की स्थापना के साथ सूती वस्त्र के बड़े निर्यातक थे हम । सूती वस्त्र का व्यापार एमएफए (मल्टी फाइबर एग्रीमेंट) द्वारा नियंत्रित होता था और अन्तराष्ट्रीय व्यापार में इसे शामिल करने के लिए दस साल की अवधि निर्धारित की गयी थी । भारत को कई काफी नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि यूरोप द्वारा भारतीय सूती वस्त्र की खेपें लौटा दी जाती थीं ।
दरअसल तथ्य यह है कि कहीं से भी मुक्त व्यापार नहीं है तो यह बन्द हो जाता है । मुक्त व्यापार प्रतिस्पर्धा पर आधारित है, परन्तु जो हम देख रहे हैं यह प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि विलयन और अधिग्रहण है ।
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