सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

११ सामाजिक पर्यावरण

रक्षा बंधन से वृक्ष रक्षा
डॉ.ओ.पी.जोशी
हम एक विरोधाभासी समय के साक्षी हैं। एक ओर सारी दुनिया में हरियाली बचाने के लिए जोर-शोर से प्रचार हो रहा है वहीं दूसरी और जिस तरह जंगलों और शहरों में पेड़ों को काटा जा रहा है । उससे यह लगता है कि आने वाले वर्षोंा में हमने कृत्रिम प्राणवायु पर रहने की तैयारी कर ली है । रक्षाबंधन पर वृक्षोंकी रक्षा का संकल्प हमारी सभ्यता को बचाने का एक प्रयास है । यह कार्य आज भले ही छोटा प्रतीत हो रहा हो परंतु हमारी धरती को बचाने में यह बड़ा प्रयास सिद्ध होगा । वृक्षों की रक्षा हेतु रक्षाबंधन पर्व को रक्षा के स्वरूप में मनाने की भावना बढ़ती जा रही है । रक्षाबंधन पर्व पर वृक्षों पर राखी बांधने का प्रारंभ सन् १९९२ में पांच पेड़ों पर प्रतीक स्वरूप राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया था । वर्ष २००४ में व्यापक स्तर पर राज्य के लोगों ने वृक्षों को रक्षा सूत्र (राखी) बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाया । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमनसिंह एवं उनकी पत्नी ने भी आम के एक पेड़ पर रक्षासूत्र बांधकर इस आयोजन की सराहना की थी । १९७३ में वृक्षों को बचाने हेतु हिमाचल क्षेत्र में प्रारम्भ किये गये चिपको आन्दोलन के बाद १९९४ मे उतराखंड में रक्षासूत्र आंदोलन चलाया गया । रियाला, मेही व डालगांव की महिलाआें ने वृक्षों पर रक्षासूत्र बांधे । १० एवं ११ अगस्त १९९५ को लगभग ३०० ग्रामीण महिलाआें ने गांव के आसपास के जंगलों में जाकर वृक्षों को रक्षासूत्र बांधकर उन्हें बचाने का संकल्प लिया । उड़ीसा में वनों एवं पेड़ों की सुरक्षा हेतु प्रयासरत मयूरभंज स्वयं सेवी संस्था के सदस्य वर्षोंा से रक्षाबंधन का पर्व पेड़ों को राखी बांधकर मना रहे हैं । झारखंड के कुछ गांवों में भी एक नया त्यौहार तरूबंधन या वृक्षबंधन के रूप में मनाया जाने लगा है । पर्यावरण प्रेमियों एवं वन विभाग की प्रेरणा से गांवों में पिछले कुछ वर्षोंा से प्रारम्भ किया गया यह त्यौहार सावन में मनाया जाता है । इस अवसर पर पेड़ों के तने पर रोली कंकु लगाकर गुड़हल के फूलोंकी राखी बांधकर आरती उतारी जाती है । मध्यप्रदेश के ब्यावरा के पास स्थित १२००-१५०० की आबादी वाले गांव, नालाझीरी की महिलाआें ने पेड़ों को भाई मानने का सिलसिला १८-२० वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया था तथा यह आज भी जारी है । महिलाआें ने लकड़ी माफिया से पेड़ों को बचाकर पूरा क्षेत्र हराभरा बनाए रखा है । मुलायमसिंह सरकार ने भी उत्तरप्रदेश मेंें लखनऊ के आसपास एक-दो वर्षोंा तक वृक्ष रक्षासूत्र कार्यक्रम कार्यक्रम चलाया था । लखनऊ में ही कछ स्कूली बच्चें ने अपने परिसर में लगे पेड़ पौधों को राखी बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाया था एवं एक निजी स्कूल में आम के पेड़ पर दुनिया की सबसे बड़ी राखी बनाकर बांधी गयी थी । वर्ष २००५ में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के लोगों ने अपने आसपास स्थित वृक्षों की शाखाआें पर राखी बांधकर उन्हें सजाया एवं रक्षा का संकल्प लिया । शहर की घटती हरियाली को बचाने हेतु जनजागरण का यह सार्वजनिक प्रयास काफी सफल एवं प्रशंसनीय रहा था । वर्ष २००६ मे बिहार की राजधानी पटना में एक स्कूल के छात्रोंने पेड़ों को राखी बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाया था । वहीं पर कार्यरत पर्यावरण संरक्षण संगठन तरूमित्र के प्रयासों से प्रसिद्ध स्कूल डानवास्को अकादमी में यह पहल की गयी थी । इस आयोजन की एक ओर विशेषता यह रही कि छात्रों ने व्यर्थ कागज एवं कपास आदि से ईको फ्रेंडली राखियां बनाकर पेड़ों को बांधी । तरूमित्र संगठन अन्य स्कूलों में भी ऐसा आयोजन करने हेतु प्रयासरत हैं । वर्ष २००४ में राष्ट्रकुल खेलों के आयोजन के संदर्भ में यमुना किनारे प्रस्तावित निर्माण कार्योंा के लिए काटे जाने वाले वृक्षों को जल बिरादरी व यमुना सत्याग्रही संगठन के कार्यकर्ताआें ने राखी बांधकर बचाने का संकल्प लिया था । इसमें मेससेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्रसिंह पर्यावरणविद् डॉ.वंदना शिवा एवं एस.ए. नकवी शामिल हुए थे । वर्ष २००९ में भी वृक्षों को राखी बांधकर उन्हें बचाने हेतु कई प्रसास किये गये । ५ अगस्त को लखनऊ के हजारों हरियाली प्रेमियों ने पेड़ों पर राखी बांधी । चिड़ियाघर के प्रवेश द्वारों पर हजारों राखियां रखी गयी थीं । चिड़ियाघर आये दर्शकों ने वृक्षों पर प्रतीक स्वरूप राखियां बांधकर वृक्षों को बचाने का संकल्प लिया । म.प्र. में बैतुल के पास स्थित गांव सिमोरी के शासकीय स्कूल में बच्चें ने ६० वृक्षों पर राखी बांधकर उन्हें बचाने की प्रतिज्ञा ली । हिमाचलप्रदेश के सिरमौर जिले में रेणुका पनबिजली योजना हेतु काटे जाने वाले वृक्षों को बचाने हेतु महिलाआें ने उन पर रक्षासूत्र बांधे । वैसे प्रतिवर्ष रक्षाबंधन का त्यौहार वर्षा काल की समािप्त् के आसपास आता है ।एवं वर्षाकाल के प्रारम्भ में लगाये गये पौधों की सुरक्षा यदि इससे जोड़ दी जाए तो हरियाली फैलने के साथ-साथ पर्यावरण की आधुनिक शब्दावली में कहें तो कार्बन क्रेडिट की प्रािप्त् भी होगी । ***

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