शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

९ ज्ञान विज्ञान

अब मच्छर के काटने से मलेरिया नहीं होगा

कई वर्षोंा के प्रयास के बाद वैज्ञानिकों को जानलेवा मलेरिया की रोकथाम का एक कारगर उपाय मिल गया है । वैज्ञानिकों ने मच्छर के जीन में परिवर्तन किया है । अब इस मच्छर के काटने पर मलेरिया नहीं
होगा । हर साल मलेरिया के कारण दुनिया भर में दस लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है ।
वैज्ञानिकों ने पहली बार मच्छर की आनुवांशिक संरचना में बदलाव करके एक कोशिकीय मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम का एक ऐसा संशोधित रूप विकसित किया है, जिसके काटने का मनुष्य पर कोई असर नहीं होगा । एरिजोना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम को यह महत्वपूर्ण सफलता मिली है । टीम के प्रमुख माइकल रिचले ने बताया, अगर आप प्रभावी रूप से मलेरिया की रोकथाम चाहते हैं तो आपको ऐसे मच्छरों की आवश्यकता है, जो सौ फीसदी प्रतिरोधी हों । यदि एकअकेला परजीवी भी चूक से मनुष्य को संक्रमित करता है, तो मलेरियारोधी मच्छर विकसित करने का मकसद नाकाम हो
जाएगा । अपने प्रयोगों के लिए वैज्ञानिकोंने पहली बार मॉलिक्युलर बायोलॉजी तकनीक का इस्तेमाल किया । उन्होंने एक मच्छर के जीनोम में बदलाव करके इन जीनोम को अन्य मच्छरों के अंडों में प्रवेश कराया उन अंडों से विकसित होने वाले मच्छरों का आनुवांशिक उपक्रम बदल चुका था । उसके बाद यही आनुवांशिक लक्षण उन मच्छरों की अगली पीढ़ी में भी देखे गए ।
अपने प्रयोग में वैज्ञानिकों ने मच्छरों की एनोफिलीज स्टेफेंसी प्रजाति का इस्तेमाल किया । भारती उपमहाद्वीप में मच्छरों की यही प्रजाति बीमारी फैलाने में अहम भूमिका निभाती है ।
नेतत्वकर्ता वैज्ञानिक साइकल रिचले ने कहा, हमारा प्रयोग पूर्ण रूप से सफल रहा । इस तकनीक ने मच्छरों के संक्रमण के फैलाने की क्षमता को पूरे तरीके से खत्म कर दिया । वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन संक्रमण फैलाने वाले मच्छरों की जगह ये संशोधित मच्छर ले लेंगे । शोध परिणाम पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंर्स पैथोजन्स में छपे हैं ।

अमेजन नदी की पैदल यात्रा

ब्रिटेन के एक पूर्व सैनिक एड स्टेफोर्ड ने अपनी तरह का अनोखा कर्तिमान बनाया है । एड ने अमेजन नदी के उदगम से लेकर उसके समुद्र में मिलने तक की यात्रा पैदल पूरी की है । ऐसा करने वाले वे पहले व्यक्ति हैं, जिसके बारे में दुनिया को जानकारी है । एड को यह कारनामा करने में ढाई साल का समय लगा । वे लगातार ८५९ दिन तक इस अभियान में लगे रहे ।
पेरू के पहाड़ों में अमेजन के उदगम से उन्होंने शुरूआत की और ब्राजील में समुद्र पर आकर उनके सफर का अंत हुआ । यह दूरी ६४०० किलोमीटर की थी । अपनी इस यात्रा में एड को हजारों मच्छरों ने काटा, उन पर हत्या करने के आरोप लगे और वे कई बार वकीलों के गुस्से का निशाना बनते-बनते बचे । यात्रा की शुरूआत में ही एड के साथियों ने यात्रा में उसका साथ छोड़
दिया । इसके बाद पेरू के गैडियल सांचेज रिवेरा ने उनका पूरी यात्रा मे साथ दिया । यह यात्रा बाढ़ की वजह से और लंबी हो गई । बाढ़ के कारण एड और सांचेज को दो हजार किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ा ।
यात्रा पूरी होने के बाद एड का कहना था कि जिस दिन उन्होंने यात्रा पूरी की, वह उनके जीवन का अभूतपूर्व दिन रहा । एड अपनी इस यात्रा के दौरान अपने वीडियो सेटफोन के जरिए एक स्कूल के बच्चें को अपने अनुभवों से अवगत कराते रहते थे । एड का कहना था कि अगर आपके अनुभव दुनिया को न पता चलें तो फिर यात्रा का मजा ही क्या है ।

आदमी के पेट में मटर का पौधा

अब तक आपने मिट्टी में पौधों के उगने के बारे में सुना होगा, लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि किसी के पेट में भी पौधा उग सकता है । मैसाच्युसेट्स राज्य में रहने वाले एक व्यक्ति के पेट में मटर का पौधा उग आया, जो डॉक्टरों के लिए भी कौतूहल बन गया ।
७५ वर्षीय रॉन स्वीडन नाम के व्यक्ति ने मटर खाई तो उसका एक दाना आमाशय की तरफ न जाकर फेफड़ों की ओर मुड़ गया और कुछ ही दिन में इसमें कोपलें फूट
गई । हालांकि, सर्जरी के बाद डॉक्टरों ने पौधे को निकाल दिया है और अब व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ है ।
श्री स्वीडन ने बताया कि उसका ब्ल्ड प्रेशर बहुत कम था, उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और ऑक्सीजन काउंट बिल्कुल कम हो गया था । मेरे बांए फेफड़े में सिकुड़न आ रही थी और मुझे डिहाइड्रेशन की समस्या हो गई थी । केप कोड अस्पताल में स्वीडन के एक्स-रे के बाद डॉक्टरोंको पहले तो लगा कि यह व्यक्ति लंग केंसर से जूझ रहा है और उसके फेफड़े में टयूमर हो गया है । स्वीडन के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ और उसे लगा के अब तो कैंसर से उसकी मौत नजदीक है । स्वीडन के सैंपल की दुबारा जांच करने पर डॉक्टरों ने पाया कि उसके फेफड़ों में टयूमर नहीं है बल्कि किसी पौधे का अंकुरण हो रहा है । डॉक्टरों के अनुसार रॉन ने मटर खाया होगा, जो पाचन नली के बजाय श्वास नली में ठहर गया और वहां अंकुरित हो गया ।

गाउन पहनकर छूमंतर होने का जादू

सोने की कढ़ाई वाले सिल्क के कपड़ों को अब तक लोग खास मौकों पर भीड़ से अलग दिखने के लिए पहना करते थे । लेकिन अब सोने के कढ़ा हुआ रेशम का चमचमाता कपड़ा जादूई तरीके से आपको भीड में खड़े होकर के बीचों-बीच से गायब करने आ रहा है ।
बिल्कुल हैरी पॉटर की जादुई फिल्मोंकी तरह पहली बार साइंटिस्टों ने सोने की कढ़ाई वाला सिल्क से बना गायब करने वाला मेटेरियल तैयार किया है । टफ्ट्स एंड बॉस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सिल्क के मेटामटीरियल से इसे तैयार किया है ।
हालांकि यह आपको फिलहाल पूरी तरह हैरी पॉटर नहीं बना सकेगा, क्योंकि अभी इस मेटामैटेरियल का असर एक खास इलाके में होता है । इसे टेराहट्र्ज रेंज कहते हैं । नया मटीरियल रेडियो और इन्फ्रारेड रेज के लंबी वेवलेंथ वाले इलाके में ही अपना जादू दिखाता है । हालांकि इस तकनीक का ईजाद करने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि जल्द ही कम वेवलेंथ में विजिबल रेंज में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा । बायोमेडिसिन किया जा सकेगा । बायोमेडिसिन और डिफेंस के मामलों में यह तकनीक बेहद कारगर साबित होगी ।
डायबीटीज के मरीजों में ग्लूकोज सेंसर इंप्लांट किए जाने में इसका इस्तेमाल मुमकिन होगा । तब इंजेक्शन जरूरी नहीं
होगा ।
इस मैटेरियल को वैज्ञानिकों ने सिल्कवर्म के एक सेंटीमीटर स्क्वेयर टुकड़े के बराबर सिल्क से तैयार करना शुरू किया । उस छोटे से रेशम के टुकड़े पर सोने की पॉलिश की गई । आमतौर पर जब सिल्क को टेरार्हट्ज तरंगों में रखा जाता है तो वे इसके आरपार हो जाती है । लेकिन जब इस नए सिल्क मेटामटीरियल को टेराहट्र्ज तरंगोंें के बीच रखा गया तो वैज्ञानिकों ने पाया कि शरीर इस मटीरियल को रिजेक्ट नहीं करता । वैज्ञानिकों ने इस टुकड़े को इंसान के शरीर की एक मसल में इप्लांट किया तो वहीं रेजोनेस हुआ ।

अब समुद्र का पानी भी पिया जा सकेगा

समुद्र के पानी से नमक निकालकर उसे पीने लायक बनाने का एक संयंत्र चेन्नई में पिछले दिनों शुरू हो गया । इससे देश के दक्षिणी भाग के तटवर्ती इलाकों में सस्ता पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। यह संयंत्र मात्र ४८.६६ रूपये में एक हजार लीटर पेयजल की आपूर्ति करेगा । यह प्रयास अन्य भारतीय तटीय शहरों के लिए अनुकरणीय बन सकेगा ।
यह संयंत्र लगाने वाली कंपनी का कहना है कि यह पूरे दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा संयंत्र है । यह संयंत्र १० करोड़ लीटर समुद्री जल को साफ कर पानी की आपूर्ति करेगा । जबकि सरकार की ओर से संचालित जल बोर्ड चेन्नई के ७० लाख लोगों को ६५ करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति करता है ।
चेन्नई वाटर डीसेलिनेशन कंपनी के संयुक्त महाप्रबंधक नटराजन गणेशन ने कहा कि हम उन्नत रिवर्स ओसमोसिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं और पानी को उच्च् दबाव के तहत फिल्टर करके शुद्ध करते हैं । अन्य विलवणीकृत संयंत्रोंके मुकाबले हम पानी को उबालते नहीं हैं । इस तरह बड़ी मात्रा में ऊर्जा की बचत करते हैं । उन्होंने बताया कि संयंत्र में एनर्जी रिकवरिंग टेक्नोलॉजी इस्तेमाल से बिजली की खपत कम होती है और भारत में पेयजल का उत्पादन सबसे कम मूल्यमें किया गया है । प्राकृतिक स्त्रोत जैसे झील से पानी की आपूर्ति की तुलना में यह और सस्ता हो सकता है । झीलों से पानी लाने में ही काफी रकम खर्च हो जाती है ।
संयंत्र प्रतिदिन २३.७ करोड़ लीटर समुद्री पानी का इस्तेमाल करेगा । आरंभिक दौर मे पहले उच्च् दबाव के जरिए इसकी झिल्ली को खत्म कर पानी मे मौजूद ठोस अवशिष्टों को हटाया जाएगा । यह संयंत्र भारतीय कंपनी आईवीआरसीएल ओर स्पेन की बेफेसा का संयुक्त उपक्रम है और इस पर लगभग ७०० करोड़ रूपये की लागत आई है ।
चेन्नई मेट्रोपोलिटन वाटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड अगले २५ साल तक इससे शुद्ध पेयजल खरीदेगा । चेन्नई मेट्रोपोलिटन वाटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड के प्रबंध निदेशक शिवदास मीणा ने कहा कि हम लोग ऊनसे ४८.६६ रूपये प्रति १००० लीटर की दर से पानी खरीदेंगे । वे कहते हैं कि पानी से नमक की मात्रा निकालकर उसे शुद्ध किया गया है ।
यह शुद्ध जल सरकार के मानकों के अनुरूप है । इसका स्वाद भी सामान्य पानी की तरह है और ये सस्ता भी है । चेन्नई दशकों से पानी की किल्लत से जूझ रहा है । शहर के चारों ओर स्थित झील से पानी की जरूरत को पूरा किया जाता है, लेकिन ये झील उत्तर-पूर्व के अनियमित मानसून पर निर्भर है । औसतन एक साल में १०० सेंटीमीटर वर्षा होती है । वर्ष २०१२ तक ऐसी ही क्षमता वाले और विलवणीकृत जल संयंत्र खोलने की उम्मीद की जा रही है । ***

कोई टिप्पणी नहीं: