शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

८ विज्ञान-जगत

जैविक नकल और वास्तविक जीवन
सुश्री सिन्दुजा कृष्णन

प्रकृति हमेंवह सबकुछ प्रदान करने में समर्थ है, जिसकी हमें सामान्यतौर पर आवश्यकता पड़ती है । अनादिकाल से प्रकृति पर विजय पा लेने की आकांक्षा आधुनिक विज्ञान युग में हमें फलीभूत होते दिखाई पड़ने लगी है । हमारे इस घमंड ने ही हमें विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है । यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि हम अपनी इस जिद को छोड़कर प्रकृति की छाया मेंमानवता को बचाना चाहते है या नहीं ।
वास्तुशिल्पी प्रकृति से अत्यधिक प्रेरणा लेते हैं । उन्हें पेड़ों से ऊँचे भवनों के बारे में सोचने में मदद मिली और उड़ने वाले चिडरा (ड्रेगन फ्लाय) से हेलिकॉप्टर बनाने की प्रेरणा मिली थी । हमारी अधिकांश उपलब्धियाँ प्रकृति से है परंतु हम यह समझ ही नहीं पाते । सक्रिय कार्यकर्ता, दार्शनिक और रचनाशील जेनी बेनीयस ने यह अपना मिशन ही बना लिया है कि बताया जाए कि हम प्रकृति से क्या-क्या लेते हैं । उन्होंने तथा अन्य वैज्ञानिकों ने अमेरिका के मोन्टाना में बायो मिमिकरी इंस्टिट्यूट (जैव नकल संस्थान) के माध्यम से प्रकृति के सिद्धांत पर आधारित बनी वस्तुआेंके बारे में पुन: सीखने का उपक्रम प्रारंभ भी कर दिया है । बेनीयस का विचार है कि प्रकृति के अवलोकन तथा उन्हें समझने और इन प्रक्रियाआें और डिजाइनों की नकल करने से मनुष्यों की बहुत सारी समस्याएं हमेशा के लिए दूर हो जाएगीं । वे इसे जैविक नकल का नाम देती हैं ।
जैविक नकल का सार भी जीवन की नकल और उसका प्रदर्शन ही है । सूर्य का उदय होना शुरूआत को दर्शाता है और फूल का खिलना, जीवन का प्रारंभ है । तितलियाँ और चिड़ियाएं अपने पंखों को धीमे-धीमे से हिलाकर उसे चरम पर पहुंचाकर आकाश में उड़ जाती हैं हमने इन्हीं प्राणियों से सीखकर हवाई जहाज बनाया है । जैव नकल के मूल में कुछ सिद्धान्त हैं और ये सिद्धान्त ही सक्रिय हल निकालने को प्रेरित करते हैं । अनुकूलता की असमानता को समझना रूचिकर है । मनुष्य का अनुकूलता से अभिप्राय है बहुत थोड़े से अधिक से अधिक ले लेना । दूसरी तरफ प्रकृति का अनुकूलता का मार्ग है अपर्याप्त्ता और इन कमियों की प्रतिपूर्ति करना ।
प्रकृति में सब कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं होता । मृगशावक अपनी मां से बहुत दूर नहीं जाता अन्यथा वह किसी का शिकार बन जाएगा मांसभक्षी लसदार पौधा अपने शिकार को पत्ती में पकड़ता है और छुई-मुई के पौधे को छूते ही इसकी पत्तियां मुरझाकर और नीचे की तरफ झुक कर बंद हो जाती हैं । इसके बाद इन्हें कितना भी छुएं इनमें कोई हलचल नहीं होती । यही प्रकृति की विविधता है परन्तु यह अत्यंत दुखद है कि २१ वीं सदी का मनुष्य एकरूपता को ही प्रोत्साहित कर रहा है ।
जैविक नकल हमें प्रकृति के सबसे प्रभावशील से सीखने का मौका देती है । सोलर पेनल को वृक्ष की एक पत्ती के आधार पर बनाया गया है । इसकी जटिल संरचना सूर्य की ऊर्जा को हमारे कार्य में आने वाली ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है । पत्ती में यह ऊर्जा भोजन के रूप में भंडार रहती हैं । वहीं सोलर पेनल में यह विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है । मकड़ी बिना किसी प्रयत्न के अपना जाल बुनती है जो कि पृथ्वी का सबसे कठोर पदार्थ है । यह जाल की बुलेटप्रुफ जैकेट का आधार है जो कि ऐसे नकली पदार्थ से तैयार होता है जो कि मकड़ियों द्वारा जाले के रूप में हमारे सामने आए रेशम के धागे के समतुल्य होता
है ।
जापान की ३०० कि.मी. प्रतिघंटे की रफ्तार से चलने वाली शिकानसेन बुलेट ट्रेन अपने प्रारंभिक दौर में जब सुरंग से निकलती थी तो इतनी जोर से आवाज करती थी की चौथाई मील दूर के निवासी समझ जाते थे कि ट्रेन सुरंग से गुजर रही है । इस शोर को कम करने की प्रक्रिया में एक इंजीनियर इंति नाकात्सु को एकाएक किंगफिशर नामक पक्षी की याद हो आई जो कि बिना कोई आवाज करे तो पानी में गोता लगा लेता है । उन्होंने रेल का अगला हिस्सा किंगफिशर की चोंच की तरह बनाया । इसके परिणामस्वरूप रेल की आवाज कम हो गई और ईधन की खपत १५ प्रतिशत की कमी आई बल्कि इसकी रफ्तार भी बढ़ गई ।
भारत जैसे देशों में गर्मी के महीने बहुत गरम होते हैं । शहरों में कई लोग इस समस्या के तुरंत समाधान के लिए एयरकंडीशन लगा लेते हैं । इससे ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है । हम सौभाग्यशाली है कि प्रकृति ने इस समस्या से निपटने का शानदार तरीका हमें दिया हुआ है । इसका हल अफ्रीका में पाई जाने वाली दीमक की बांबी है । दीपक इसके अंदर का तापमान दिन में ४२ डिग्री सेंटीग्रेड होता है। तो रात में ३ डिग्री है । लेकिन बांबी के अन्दर तापमान स्थिर बना रहता है । जैविक नकल की वेबसाइट के अनुसार हमारे भवन ही ४० प्रतिशत ऊर्जा का उपभोग कर लेते हैं। अतएव हमें ऐसे भवनों की आवश्यकता है जिनमें ऊर्जा का कम से कम उपयोग हो । जिम्बाब्वे के हरारे में स्थित भवन ईस्टगेट इसका बेहतरीन उदाहरण है । जिसमें इसी क्षेत्रफल के किसी अन्य भवन से ९० प्रतिशत कम ऊर्जा लगती है ।
चिम्पांजियों का ध्यान सेअवलोकन भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे समुदाय के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है । चिम्पाजियों को स्थानीय पौधों का असाधारण ज्ञान होता है और बीमार पड़ने की स्थिति में वे विशिष्ट पेड़ से अपने लिए दवाई प्राप्त् कर लेते हैं । वेरोना जीनस नामक वृक्षों से चिम्पांजी जो दवाई लेते हैं उसमें वे रसायन होते हैं जो मनुष्य की आंतों में मिलने वाले हुकवर्म व पिनवर्म जैसे परजीवी कीटाणों को नष्ट करते हैं ।
ये घटनाएं हमें बताती हैं कि हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हमने जो भी खोजा है व प्रकृति के सूक्ष्म अवलोकन का ही परिणाम है । हमारा यह मानना कि ताकतवर ही जिंदा रह सकता है या जिसकी लाठी उसकी भैंस प्रकृतिके संदर्भ में एक गलत व्याख्या है । प्रकृति में प्रतिस्पर्धा से कहीं अधिक आपसी सहयोग है । प्रकृति के कई पहलु हैं। हमें ताप एवं परमाणु विद्युत परियोजनाआें, तेलशोधक कारखानों और भूमि को एक ही तरह की फसल लगाकर को जीतने का प्रयास करने की बजाए प्रकृति से प्ररेणा लेने को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
जैविक नकल कोई नया विचार नहीं बल्कि सिर्फ नई शब्दावली भर है । आवश्यकता इस बात की है कि लाखों-लाख वर्षोंा के जीवन से जो कुछ हम सीख सकते हैं, हमें सीखना चाहिए । जेनी बेनीयस ने इस संदर्भ बहुत सुन्दर शब्द कहे हैं कि, जैसे-जैसे हमारा विश्व व्यापकता से एक प्राकृतिक विश्व की तरह आगे बढ़ेगा । वैसे-वैसे हम हमारे इस घर पर यह मानते हुए और भी निर्भर होते जाएंगे, कि यह घर सिर्फ हमारा नहीं है ।
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