शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

पर्यावरण समाचार
इसरो का एस्ट्रोसैट, हबल का जवाब है

नासा की खगोलीय दूरदर्शी हबल के जवाब में भारत ने अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला प्रक्षेपित    की । एस्ट्रोसैट का वजन और खर्चा दोनों हबल के मुकाबले बेहद कम    है । नासा ने इसके लिए यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी का सहयोग लिया तो इसरो ने स्वयं के संसाधनों से किया । खगोल विज्ञान ने अध्ययन के लिए एस्ट्रोसैट के प्रक्षेपण के साथ ही भारत अब अमेरिका, रूस, यूरोपीय यूनियन व जापान के ऐसा करने वाला पंाचवां देश बन गया है । चीन अभी अपने पहले स्पेस टेलिस्कोप पर काम कर रहा है । भारत पहला विकासशील देश है, जिसका अंतरिक्ष में अपना टेलिस्कोप होगा । 
पीएसएलबी-सी ३० रॉकेट के जरिए छोड़ा गया एस्ट्रोसैट अपने साथ ६ विदेशी उपग्रह भी ले गया, जिनमें से ४ अमेरिकी सैटेलाइट है । यह पहली बार है जब भारत ने अमेरिकी सैटेलाइट प्रक्षेपित किए हैं । आकाशीय वस्तुआें के अध्ययन के लिए बनाए गए एस्ट्रोसैट का प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से किया गया । इसमें इसरों के पोलर सैटेलाइट लॉन्स वीकल पीएसएलवी  की मदद ली गई है । अपनी ३१वीं उड़ान में पीएसएलवी ने उड़ान शुरू होने के लगभग २५ मिनट बाद एस्ट्रोसैट और अन्य उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर दिया । एस्ट्रोसैट के साथ ६ विदेशी उपग्रहों को ले जाने वाला यह चार स्तरीय पीएसएलवी- एक्सएलवी रॉकेट ४४.४ मीटर लंबा और ३२० टन वजनी है । अमेरिकी कंपनी स्पायर ग्लोबल इंक के ४ नैनो उपग्रह एलईएमयूआर भी प्रक्षेपित किए गए । 
भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में ५० वर्ष पूरे कर लिए । इसरो ने २०१० में एक साथ १० सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया था । जिसमें भारत के दो काटॉसैट-२ए उपग्रह भी शामिल है । 
ताजा प्रक्षेपण के साथ ही इसरो द्वारा स्पेस मेंभेजे गए विदेशी उपग्रहों की संख्या ५१ हो गई है । इसके ग्राहकोंमें जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाड़ा, ब्रिटेन समेत कुल २० देश शिााम्ल है ।
चन्द्रयान और मंगलयान की सफलता के बावजूद भारतीय अंतरिक्ष मिशन रिमोट सेसिंग, संचार, मैपिंग आदि तक ही सीमित था । अब हम खगोलीय घटनाआेंका अध्ययन भी कर सकेंगे । अंतरिक्ष में यह देश की बड़ी उपलब्धि है । 

देश में ११५०० की आबादी पर एक सरकारी डाक्टर
पिछले सात सालों के दौरान देश में डाक्टरों की संख्या साढ़े सात लाख से बढ़कर ९.३८ लाख तक तो पहुंच गई लेकिन ये डॉक्टर कहां है, सरकार को भी इसका पता नहीं है । सरकारी सेवा में महज एक लाख छह हजार डाक्टर कार्यरत हैं । केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट में कहा गया है कि एक सरकारी डाक्टर औसत ११५२८ मरीजों के स्वास्थ्य का जिम्मा संभाल रहा है । हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट से देश में चिकित्सा सेवाआें की दुर्दशा की पोल खुलती है । रिपोर्ट के अनुसार २०१४ में देश में एलोपैथी डाक्टरों की संख्या ९३८८६१ थी । लेकिन यह आंकड़ा एमसीआई के पंजीकरण रिकार्ड के आधार पर है जो १९४७से चला आ रहा है । इसमें से कितने डाक्टर आज सक्रिय है, कितने विदेश चले गए सरकार के पास इसका कोई ब्यौरा नहीं है । 
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में सिर्फ १०६४१५ डाक्टर ही सरकारी चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत है । जबकि दांतों के डाक्टरों की बात करें तो सरकार के पास महज ५६१४ डेंटिस्ट ही हैं जबकि देश में पंजीकृत डेंटिस्टों की संख्या १.५४ लाख बताई गई है । एक सरकारी डेंटिस्ट करीब २.१७ लाख लोगों को सेवा दे रहा है । रिपोर्ट सरकारी स्वास्थ्य सेवाआें की कलई खोलती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है । वहां सरकारी डाक्टरों की कुल संख्या ३५७६ है तथा एक डाक्टर २८३९१ लोगों को सेवा दे रहा है । उत्तर प्रदेश में १०७९८ सरकारी डाक्टर है यानी एक डाक्टर के जिम्मे १९५६१ लोग हैं । उत्तराखंड में १२४२, दिल्ली में ९१२१, झारखंड में १६५६, हरियाणा में २६१८ डाक्टर  हैं । इस प्रकार उत्तराखंड में एक सरकारी डाक्टर ८३४३, दिल्ली में २२०३, झारखंड में १९७८६ तथा हरियाणा में १०१८१ लोगों को सेवा दे रहा है । इनमें दिल्ली की स्थिति ही बेहतर है जहां पर्याप्त् संख्या में डाक्टर है । 
रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में सिर्फ ३१ सरकारी डेंटल सर्जन हैं और ३७ लाख की आबादी पर एक डेंटल सर्जन है । 

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