शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

हमारा भूमण्डल 
उपभोक्तावाद से पनपता विध्वंस
रिचर्ड मेक्सवेल
अत्यधिक परिष्कृृत तकनीक व यंत्र के बढ़ते इस्तेमाल ने हमारी पृथ्वी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है । इन यंत्रांे के प्रति हमारे बढ़ते मोह और निर्भरता ने पृथ्वी को अत्यन्त जहरीला बना दिया है । इनकी वजह से ऊर्जा के प्रयोग में भी असाधारण तेजी आई है । सुखद बात यह है कि एक वर्ग अब इन पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है ।
एप्पल की पहने जाने वाली घड़ी जैसी ''स्मार्ट'' तकनीक इस वर्ष की एक ''अनिवार्य'' वस्तु बन चुकी है और इसके निर्माता इस पर बहुत कुछ दांव पर लगा चुके हैैं । संभवत: आज यह सभी के लिए एक मानक बन चुकी है । हमेशा की तरह इस बार भी उच्च् तकनीक वाले व्यावसायिक घड़ीसाज केवल अपना उत्पादन नहीं बेच रहे हैैं बल्कि वे मशीन के प्रति वफादरी और मशीन के जादू के प्रति निष्ठा फैला रहे हैैं । 
यह एक ऐसी जुगत (यंत्र) है जिसने वशीकरण की तरह हमें अपने बस में कर लिया है । त्रासदायी बात यह है कि इलेक्ट्रानिक उपभोक्तावाद ने हमसे धरती के प्रति हमारी परिपूर्णता की धारणा का ही हरण कर लिया   है । अब हम इस जीवंत ग्रह के निवासी के बजाए अपने द्वारा अविष्कृत यंत्रों के अविष्कार (साधन) बन कर रह गए हैैं । हमारे उच्च् तकनीकी विकास ने बहुत तेजी से पर्यावरण सुस्थिरता की सीमा रेखा को पार कर लिया है । इसने संतुलन के उन दोनों मायनों का भी विध्वंस कर दिया है जो कि पृथ्वी मानवीय गतिविधियों को प्रदान कर सकती है और पृथ्वी किस हद तक इन गतिविधियों को पुन: अपने में समेट सकती है ।
गौर करिए हम विश्वभर में उपभोक्ता इलेक्ट्रानिक्स पर प्रतिवर्ष करीब १ खरब अमेरिकी डॉलर खर्च करते हैैं । अंतराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार आज नेटवर्क से संबधित १४ अरब यंत्र प्रचलन में हैैं जो कि घरेलू बिजली का १५ प्रतिशत इस्तेमाल करते हैैं । अगर यही प्रवृत्ति जारी रही तो हमारे डिजिटल यंत्र सन् २०२२ तक घरेलू वैश्विक बिजली का ३० प्रतिशत और सन् २०३० तक ४५ प्रतिशत इस्तेमाल करने लगेंगे । इस सबके अलावा, प्रत्येक बार जब हम आंकडे तैयार करते हैं या प्राप्त करते हैं तब भी बिजली का प्रयोग उन डाटा केन्द्रों और संचार नेटवर्कोंा को जो कि मोबाइल नेटवर्क से उसे जोड़ते हैं,  को भी करना पड़ता है । 
जब हम अपनी उच्च् तकनीक जीवनशैली और विद्युत ग्रिड के बीच के बिंदुओं को जोड़ते हैं तो हमारे सामने विमानन उद्योेग जितना बड़ा कार्बन फूटप्रिंट आता है । यदि हम अपने मोबाइल यंत्रों और डिजिटल उपभोग के लिए बढ़ती ऊर्जा खपत हेतु जीवाश्म ईंधन का कोई हरित विकल्प नहीं ढूंढंेगे तो हम प्रत्यक्षत: पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा रहे हांेगे । 
  उच्च् क्षमता वाली वस्तुओें के प्रति हमारा मोह ही इलेक्ट्रानिक एवं विद्युत अपशिष्ट (ई-कचड़ा) का बड़ा कारण बन गया है । हम लोग विश्व भर में ५ करोड़ टन प्रतिवर्ष की दर से ई-कचड़े का उत्पादन कर रहे हैैं । पिछले दशक में ई-कचड़ा हमारे द्वारा फेंके जाने वाली सभी वस्तुओं में सर्वाधिक योेगदान करने लगा है । इसमें जहरीले पदार्थो की भी भरमार होती है । यदि इसे ठीक प्रकार से नहीं हटाया गया इसका दोबारा इस्तेमाल नहीं किया गया या इसका पुर्नचक्रण (रिसायकलिंग) नहीं किया गया तो यह हमारी भूमि, वायु एवं जल के साथ ही साथ उन कर्मचारियों के  शरीर के लिए हानिकारक सिद्ध होगा जो इसके रसायनांे के प्रभाव में आएंगे । 
वैसे इलेक्ट्रानिक यंत्र के पूरे जीवनकाल में ही कचड़े को लेकर समस्या बनी रहती है । इसका जरुरत से ज्यादा उपयोग एवं निर्माण के दौरान निस्तारित पानी में साल्वेंट आदि की मौजूदगी से ही इन अत्याधुनिक यंत्रों की असलियत सामने आने लगती है । कारपोरेट की तयशुदा अप्रचलित करने या लुप्त कर देने की विनाशकारी व्यापारिक रणनीति ही प्रभुत्व बनाए रखती है । इसके बावजूद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हम वास्तव में तब तक परवाह भी नहीं करते जब तक कि हमारे उपभोेेग के आस पास वशीकरण का धुंधलका छाया रहता है । पर जो लोेग विश्व भर में इन ई-कचड़ा स्थलों पर काम करते हैं उनके लिए यह विध्वंसता एक कोर सच्चई है । 
उच्च् तकनीक से लैस अमीर देश अपने ई-कचड़े का ८०-८५ प्रतिशत लेटिन (दक्षिण) अमेरिका, पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और एशिया में फेंकते हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के नवीनतम अनुमान बताते हंै कि केवल चीन में कुल वैश्विक ई-कचड़े का ७० प्रतिशत पहंुचता है । निम्न तकनीक वाले इन कचड़ा शुद्धीकरण अहातों में अर्धकुशल मजदूर भारी धातुओं जैसे सीसा, केडमियम, क्रोमियम एवं पारा, जले हुए प्लास्टिक और जहरीले धुएं के संपर्क में आते हैं । इससे उन्हें स्नायु तंत्र, जी मिचलाना, जन्म से विकलांगता के अलावा दिमाग में नुकसान, हड्डियों, पेट, फेफड़ों और अन्य महत्वपूर्ण अंगों में बीमारी आदि के जोखिम से गुजरना पड़ता है । चीन के गुआंगडांेग प्रांत के गुइयु की बात करें तो वहां के ८० प्रतिशत स्थानीय परिवार अब ई-कचड़े के रिसायकिलिंग क्षेत्र में कार्य करते   हैं। 
एक समय गुइयु कृषि आधारित नगर था लेकिन रिसायकलिंग की वजह से हो रहे प्रदूषण ने वहां की मानव खाद्य श्रृृंखला को बाधित कर दिया है। भूमि एवं जल में निरंतर जैविक प्रदूषण के प्रवाह से प्रभावित कृषि भूमि को अब ऐसी स्थिति में ला दिया है कि भविष्य की पीढ़ियां उसका सुरक्षित उपयोग ही नही कर पाएंगी । इसके बावजूद यदि मिश्रित अर्थव्यवस्था पर लौटने का प्रयास भी करेंगे तो इस मिट्टी से पैदा होने वाली फसल भी जहरीली ही होेगी ।
यह सब कुछ हमारी इलेक्ट्रानिक जीवनशैली के क्षितिज के परे जड़ें जमाता दिखाई पड़ रहा   है । लेकिन अब लोग वह सब कुछ समझने लगे हैं जो हमारे श्रम एवं पर्यावरण कार्यकर्ता तथा विद्वान कार्यकर्ता लम्बे समय से जानते हैं ।  अधिक से अधिक उपभोक्ता अब मशीन के प्रति अपने लगाव का पुर्नआंकलन कर रहे हैंऔर उन्होंने नए गैजेट खरीदना कम कर दिए    हैं । इतना ही नहीं पर्यावरणीय नागरिकता के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए वे अपने पुराने इलेक्ट्रानिक उत्पादों की रिसायकलिंग कर रहे हैं । कार्यस्थलों विद्यालयों, रहवासी भवनों और पास पड़ौस में हरितिमा अब नया मानक बन रही  है । अनेक राज्यों, नगरपालिकाओं राष्ट्रीय सरकारों एवं आंचलिक प्रभागों ने ऐसे कानून पारित किए हैं जो कि ई-कचड़े का सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करते हैं । 
नए संगठन अब अपने निर्माण स्थल पर डिजिटल यंत्रों से इकोसिस्टम के जहरीले होने को रोकने हेतु ई-कचड़े के निपटान हेतु व्यापक प्रबंधन पर अधिक जोर दे रहे हैं जिससे कि पृथ्वी के निवासियों के जैव भौतिक अधिकार संरक्षित हो सकें । हमें एक ऐसी सामाजिक स्थिति निर्मित करना होगी जो कि हम सबको उन वाईब्रेशन (कम्पन) एवं रिंगटोन से बचा सके जिन्हांेने हमारे शरीर की ऊर्जा को गहरी निद्रा में सुला दिया है। हमें जलवायु परिवर्तन, समुद्र के अम्लीकरण एवं एक ऐसा ग्रह जो कि नाईट्रोजन की अधिकता से ग्रस्त है, की चुनौतियों से भी जूझना होगा । हम पारंपरिक प्रदूषण के विशाल स्तरों को कम करना जानते हैं । हम ''छठे महान विप्लव'' को तो शायद न पलट पाएं, लेकिन हम अपने रहवासों को संरक्षित कर सकते हैं और अपनी जैवविविधता की तीव्र हानि को भी रोक सकते हैं । हम सब अपनी शिक्षा सक्रियता और शोध से ऐसी संस्कृति विकसित कर सकते हैं जो कि उपभोक्तावाद के ऊपर काबू पा सके। 
हमें अत्यन्त गंभीरता के साथ सुस्थिरता का ऐसा विचार विकसित करना ही होगा जो समझ सके कि पृथ्वी के पास मानव गतिविधियों के लिए सीमित संसाधन ही हैं । एप्पल घड़ी और उसके तमाम भाई बंद  हमारे बीच यहां मौजूद    हैं । परंतु हमारी आज की वास्तविक आवश्यकता भौतिकवादी पारिस्थि-तिकीय राजनीति और नैतिकता विकसित करने की है जो हमें पर्यावरणीय संकट से बाहर ले जाने में मददगार सिद्ध हो सके । 

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