पर्यावरण परिक्रमा
गिर में शेरों की सुरक्षा महिलाआें के हाथों में
आप इन्हें गुजरात की शेरनी कहें तो गलत नहीं होगा । इनका काम ही ऐसा है । गुजरात में गिर के जंगलों में ये बेखौफ घूमती हैं । वही जंगल, जो करीब सवा पांच सौ एशियाई शेरों का घर है । जहां और न जाने कितने तेंदुए, मगरमच्छ और इनके जैसे ही खूंखार जानवर भी रहते हैं । उन्हीं के बीच काम करने वाली तीन शेरनियां हैं - रसीला वाढेर, किरण पीठिया और दर्शना कागड़ा ।
वर्ष २००७ में जब ये तीनों वनकर्मी की परीक्षा में चयनित हुई थी तब इन्हें ऑफिस के कामकाज में लगाया गया था । बाद में उन्हीं के कहने पर जंगल में वे फील्ड पर उतरीं । डीएफओ डॉ. संदीप कुमार का कहना है कि जब वे ऑफिस का काम करती थीं, और फील्ड में जाना चाहती थी तब उन्हें बता दिया गया था कि यह काम चुनौती भरा है । अगर सफल होंगी तो उनके लिए बहुत से अवसर सामने आ जाएंगे । सो, उन्होंने डटकर काम किया । आज वह वक्त आ गया । तीनों फील्ड में पूरी निर्भीकता के साथ काम कर रही हैं । इन्होंने अब तक ८०० से ज्यादा रेस्क्यू ऑपरेशन कर कई सिंहो के अलावा जंगली जानवरों को नई जिंदगी दी है । हमें इन महिला साथियों के कार्यो पर गर्व है ।
भारत २०२५ में सबसे बड़ा जल संकट वाला देश
एक दशक बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा जल संकट वाला देश बन जाएगा । यह टिप्पणी केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित एक उच्च्स्तरीय समिति ने अपने प्रारंभिक आंकलन में कही है । यह समिति देश में इस बार मानसून की धीमी रफ्तार के मद्देनजर गठित की गई है । समिति ने अपने प्रारंभिक आंकलन में कहा है कि पूरे देश में शुरूआती समय में मौसम विज्ञानियों ने कहा था कि इस बार बारिश में १२ फीसदी कमी आएगी लेकिन अब अल नीनो के कारण यह कमी १६ फीसदी जा पहुंची है । समिति ने अपने आंकलन में कहा है कि मानसून सही नहीं होने के कारण छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में जल संकट सबसे अधिक होने का अनुमान है ।
समिति ने कहा है कि देश में कृषि की बढ़ती जरूरतों और जल प्रबंधन के धीरे क्रियान्वयन से स्वच्छ जल पर दबाव तेजी से बढ़ रहा है । देश में केवल १५ फीसदी ही वर्षा जल का उपयोग होता है । शेष ऐसे ही बहकर समुद्र में चला जाता है । वर्षा जल को जमीन के अंदर जितना अधिक डालेंेगे, उतना ही तेजी से जल संकट से छुटकारा पाया जा सकेगा ।
समिति ने कहा है कि १९४७ में प्रतिव्यक्ति मीठा जल ६००० घन लीटर उपलब्ध था । यह वर्ष २००० में घटकर २३०० घन लीटर रह गया है । जल की बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आगामी २०२५ तक यह कमी १६०० घन लीटर हो जाएगी । यही नहीं अगले दो दशकों में पानी की मांग ५० प्रतिशत और बढ़ेगी ।
जल संकट पर समिति ने एक आंकडे का हवाला देते हुए कहा कि यदि देश में जमीनी क्षेत्रफल के पांच फीसदी क्षेत्र में होने वाली वर्षा को संग्रहण करे तो एक अरब लोगों को प्रतिदिन १०० लीटर पानी उपलब्ध हो सकेगा । समिति ने कहा कि प्रत्येक बारिश के मौसम मेंसौ वर्ग मीटर आकार की छत पर ६५ हजार लीटर वर्षा जल का संग्रहण किया जा सकता है । इस पानी से चार सदस्यों वाले एक परिवार की पेयजल और उसकी अन्य जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकता है ।
बंदर के पास है सेल्फी का अधिकार
कुछ समय पहले चर्चा में रहे बंदर के सेल्फी पर कॉपीराइट का विवाद एक बार फिर सामने आ गया है । जानवरोंके अधिकारोंके लिए काम करने वाली संस्था पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने सैन फ्रांसिस्को में फोटोग्राफर डेविड जे. स्लेटर और उनकी कंपनी के खिलाफ इस मामले में केस दायर किया है । स्लेटर और उनकी कंपनी ने इस सेल्फी पर अपना अधिकार जताया है । पेटा का कहना है कि बंदर के पास ही उस सेल्फी का अधिकार है । अगर पेटा जीत जाती है तो यह पहला मामला होगा जब किसी जानवर को सेल्फी का अधिकार मिलेगा ।
तब से लेकर अब तक बंदर का यह सेल्फी बिना किसी कॉपीराइट के दुनियाभर में वायरल हो रहा है । सैन फ्रांसिस्को में स्लेटर की तस्वीरें प्रकाशित करने वाली कंपनी ने नारूतो के दो सेल्फी भी प्रकाशित कर दिए ।
इस मामले मेंविकिपीडिया भी कूद पड़ा था । विकीपीडिया का कहना है कि कॉपीराइट उस बंदर के पास ही रहेगा क्योंकि उस फोटो को उसी ने खींचा था । वेबसाइट पर एक संदेश में वीकिपीडिया ने लिखा है कि यह फाइल पब्लिक डोमेन में ही रहेगी, क्योंकि यह किसी मनुष्य की कृतिनहीं है और इस पर किसी का अधिकार नहीं है ।
पेटा के इस बयान से निराश स्लेटर का कहना है कि बंदर ने सेल्फी नहीं लिया । उसने केवलट्रायपॉड पर रखे कैमरे का बटन दबाया था और फोटो लिया था ।
दरअसल, २०११ में इंडोनेशिया यात्रा पर गए स्लेटर द्वीप पर बंदरो की फोटो खींच रहे थे, तभी ब्लैक मकॉक प्रजाति के एक बंदर नारूतो ने ट्रायपॉड पर लगे कैमरे से हजारो फोटो खींच ली । इनमें से कुछ गजब की तस्वीरें थी खासकर उसकी अपनी । इस सेल्फी ने काफी धूम मचाई और दुनिया भर में वायरल हो गई ।
नहाने योग्य नहीं है शिप्रा का जल
आगामी वर्ष सिंहस्थ के दौरान प्रशासन शिप्रा में करोडों लोगों को स्नान करवाने की तैयारी कर रहा है, लेकिन शिप्रा का पानी नहाने योग्य है ही नहीं । प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है । रिपोर्ट में लिखा है कि शिप्रा में मिल रहे शहर के ११ गंदे नालों के कारण पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा सेन्ट्रल प्रदूषण बोर्ड के मानकों से बहुत ज्यादा है ।
शिप्रा जल में १०० एमपीएन (मोस्ट प्रॉबेबल नंबर) १६०० मिलियन है । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानक अनुसार १०० एमपीएन में इसकी मात्रा ५०० या इससे कम होनी चाहिए । सिंहस्थ के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है । रिपोर्ट के अनुसार सिंहस्थ में भी शिप्रा का पानी नहाने योग्य नहीं रहेगा । हालांकि प्रशासन का दावा है कि नर्मदा-क्षिप्रा लिंक होने के बाद शिप्रा प्रवाहमान रहेगी । इससे पानी साफ रहेगा ।
कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के कारण पैथोजनिक, डायरिया, एपेडेमी डायरिया, इन्फेटाइल डायरिया, यूरीनरी इन्फेक्शन आदि समस्याएं पैदा होती है । यह बैक्टीरिया गॉल ब्लेडर मेंप्रवेश कर किडनी में भी इन्फेक्शन पैदा कर देता है । घाव में बहुत जल्दी पनपता है । रक्त प्रवाह में मिल जाए, तो शरीफ के लिए घातक साबित होता है ।
शिप्रा को नालों से मुक्ति दिलाने के लिए नगर निगम ने ४ करोड़ ४६ लाख की लागत से ११८० मीटर की पाइप लाइन की योजना बनाई, जो करीब १३ महीने में पूरी तो हुई, लेकिन शिप्रा में आज भी नालों से १ लाख गैलन पानी में १ किलो कोलीफॉर्म रोज मिल रहा है ।
देश में ३० फीसदी घरों में है मैट्रिक पास महिला
भारत के ७० फीसदी घरों में एक भी मैट्रिक पास महिला नहीं है । मैट्रिक पास पुरूषों को लें तो ६० फीसदी घरों में ये नहीं मिलेगे । देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की ताजा हालात बयान करने वाले ये आंकड़े भारत के महापंजीयक ने जारी किए है ।
जनगणना के २०११ के इन आंकड़ों के अनुसार देशभर में केवल ५० फीसदी घरोंमें महिला या पुरूष में से कोई एक मैट्रिक पास है । जबकि २००१ की जनगणना में लगभग ४० फीसदी घरों में ही एक मैट्रिक पास थे । २०११ में देश में कुल २४ करोड़ ८३ लाख घरों की पहचान हुई थी, जिनमें लगभग आधे यानी १२ करोड़ २७ लाख घर ही ऐसे थे, जहां कोई न कोई मैट्रिक पास था । वहीं स्नातक पास सदस्य वाले घरों की संख्या तीन करोड़ ३२ लाख (१३.४ फासदी) ही थी । इनमें भी महिला स्नातक वाले घर की संख्या महज दो करोड़ १९ लाख (८.८ फीसदी) ही थी ।
२००१ से तुलना में हालात बेहतर जरूर नजर आती है, लेकिन आंकड़े अब भी स्थिति की गंभीरता बयान कर रहे है । केवल चार करोड़ १४ लाख घर (१६.७ फीसदी) ऐसे हैं, जिनमें कोई न कोई स्नातक पास है । २००१ में महज ३९ फीसदी घर ऐसे थे, जिनमें कोई न कोई मैट्रिक पास था । इसी तरह स्नातक पास घरों की संख्या दो करोड़ ३६ लाख (१२.२ फीसदी) ही थी ।
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