शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

पक्षी जगत
नीलगगन में उड़ते पंछी
माधव गाडगिल 

आकाश मे उडऩे वाले पक्षी ध्रुव तारे को तो पहचानते ही है, जैव विकास के दौरान उनके मस्तिष्क मेें एक दिशासूचक यंत्र भी फिट कर दिया गया है । 
पक्षियों की खासियत है उनका घुमंतू जीवन । हमारे परिचित तोता और मैना एक दिन में तीस-चालीस किलोमीटर का सफर आसानी से कर लेते हैं, वहीं अल्बेट्रॉस नामक बड़े पंखों वाले समुद्री पक्षी हजार-हजार किलोमीटर तक की दूरी तय कर लेते हैैं । टिटहरी का एक छोटा रिश्तेदार (बार-हेडेड गॉडविट) अलास्का में प्रजनन करने के बाद वहीं अपने बच्चें का पालन-पोषण करता है और फिर न्यूजीलैण्ड तक की ग्यारह हजार किलोमीटर की दूरी बिना कहीं रूके तय कर लेता है । किंतु इस यायावरी के लिए जरूरी है कि शरीर में पर्याप्त् ताकत हो, जोशीला गरम खून हो । 
आज की तारीख में केवल पक्षियों और स्तनधारियों का खून ही लगातर एक ही तापमान पर बना रहता है । लगभग तीस-बत्तीस करोड़ वर्ष पहले सायनॉप्सिड पूर्वजों से डायनासोर के साथ-साथ पक्षी भी विकसित हुए । इससे यह इनुमान लगाया गया है कि डायनासोरो का खून भी गरम रहा होगा । गरम खून के कारण शरीर का जोश बढ़ने के कई फायदे हैं, किंतु इसके कई नुकसान भी हैं ।  
साढ़े छह करोड़ वर्ष पहले भारत के दक्षिणी भाग में ज्वालामुखी का भयानक विस्फोट हुआ था और उसी समय एक विशाल उल्कापिंड पृथ्वी से टकराया था । इसके फलस्वरूप इतनी धूल और धुंआ उड़ा कि सारा संसार लम्बे समय तक अंधेरे में डूबा रहा और पृथ्वी पर हिमयुग आ गया । इसके चलते गरम खून वाले जीवधारियोंपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा । सभी डायनासोर नष्ट हो गए, किंतु पक्षी और स्तनधारी किसी तरह बचे रहे । हजारोंवर्षोंा की बर्फीली रात समाप्त् होने पर पक्षियों और स्तनधारियों की पौबारह हो   गई । उनसे स्पर्धा करने वाले और उनका शिकार करने वाले डायनासौर तो नष्ट हो गए थे और उन्हें नए-नए आहार व निवास स्थान उपलब्ध हो गए थे । आहार और निवास स्थानों की विविधता के चलते पक्षियों और स्तनधारियों की विविधता भी बहुत फली-फूली । 
अपनी तेज गति के कारण पक्षी कई बिखरे हुए संसाधनों का उपयोग कर सकते है जो केवल कुछ विशिष्ट ऋतुआें में ही उपलब्ध होते  हैं । धीमी गति से चलने वाले जंतुआें के लिए इनके सहारे जीवित रहना असंभव होता है । समुद्र पर उड़ने वाले अल्बेट्रॉस पक्षी समुद्र में दूर-दूर तक बिखरी मछलियों और झींगों को खोजते रहते हैं । इसके लिए उन्हें एक दिन में सैकड़ों किलोमीटर तक का सफर करना पड़ता है । इस उड़ान के लिए वे हवा की धाराआें का उपयोग बखूबी कर लेते हैं । 
रेगिस्तान में रहने वाले भटतीतर घांस के बिलकुल सूखे बीज खा कर अपना पेट भरते हैं । इसके फलस्वरूप उन्हें बहुत तेज प्यास लगती है । चूंकि रेगिस्तान में पानी के स्त्रोत बहुत सीमित होते हैं, ये पक्षी हजारों की संख्या में सुबह-शाम साठ किलोमीटर तक की दूरी तय करके पानी के स्त्रोत तक पंहुचते हैं, और फिर उतनी ही दूरी तय करते हूए भोजन और रैनबसेरा खोजने लगते हैं । हवा में उड़ने वाले कीटों का शिकर करने वाले बतासी (स्विफ्ट) जब सुबह उड़ना शुरू करते हैं तो रात में अपने बसेरे पर लौट कर ही विश्राम करते है । चपके नाम पक्षी (नाईटजार) रात में उड़ने वाले कीड़ों का शिकार करते हैं । 
पक्षियों की अन्य प्रजातियों मौसम के अनुसार भटकती रहती   हैं । बगुले, चमचा बाजा (स्पूनबिल), ढोक (स्टोर्क) आदि जलीय पक्षी यह ढूंढते रहते हैं कि किस तालाब, नाले या नदी में पानी है । इसके विपरीत, पीली चोंच वाली टिटहरी (जर्दी) और नुकरी (इंडियन कोर्सन) सूखे स्थान खोजते रहते हैं । पहाड़ी धनेष और बड़ा अबलख धनेष (हॉर्नबिल) इस तलाश में रहते हैं कि जंगल में किस जगह फल पक गए हैं । हिमालय में रहने वाले कोए, बसंता, तीतर आदि ठंड के मौसम में तलहटी की ओर उतर आते हैं और गर्मियों में वापस पहाड़ों की ऊंचाइयों की ओर लौट जाते हैं । 
किंतुअसली दूर के राही तो वे पक्षी हैं जो गर्मियों में ठंडे इलाकों में पहुंच कर बच्चें को जन्म देते हैं, और उनका लालन-पालन करने के बाद ठंडा मौसम आने पर फिर गर्म क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं । पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध का काफी बड़ा भाग जमीन के रूप में है तो दक्षिणी गोलार्ध का बड़ा हिस्सा पानी के नीचे है । इसलिए हजारोंपक्षी प्रजातियां मार्च-अप्रैल से सितम्बर की अवधि में एशिया, युरोप और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों के उत्तरी भागों में या फिर हिमालय जैसी पर्वत श्रृंखलाआें के ऊंचे और ठंडे स्थानों में बच्चें की परवरिश करती हैं और शेष महीनों में इन महाद्वीपों के दक्षिणी इलाकों या अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका,  ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में बिताती हैं । ध्रुवीय इलाकों के निवासी आक्र्टिक टर्न नामक पक्षी गर्मी के मौसम    में अमेरिका, युरोप और एशिया महाद्वीपों के उत्तरी ध्रुव के आसपास के इलाकों में बच्चें का पालन-पोषण करते हैं । 
ठंड का मौसम आते ही वे बीस हजार किलोमीटर दूर स्थित अन्टार्कटिका महाद्वीप की ओर चल पड़ते हैं । सीधी रेखा में सफर न करते हुए ये पक्षी हवा की धाराआें का फायदा उठाते हुए वास्तव में तीस-चालीस हजार किलोमीटर की दूरी तय करते हैं । दक्षिणी गोलार्ध की गर्मियों में वहां के समुद्री जीवों की दावत खा कर फिर उत्तरी ध्रुव की ओर उड़ चलते हैं । अन्य किसी भी जंतु से अधिक समय सूर्य के प्रकाश में बिताने वाले ये पक्षी औसतन बीस वर्ष के अपने जीवनकाल में पच्चीस लाख किलोमीटर की यात्रा कर लेते हैं । 
प्रवासी पक्षियों को पकड़ कर उनके पैरों में बहुत हल्के छल्लेपहना कर छोड़ दिया जाता है । इन छल्लों पर उस स्थान का नाम जहां वे पकड़े गए थे, छल्ला पहनाने वाली संस्था का नाम और पता, और छल्ला पहनाने की तारीख लिखे होते हैं । जब ये पक्षी किसी दूरस्थ स्थान पर दोबारा पकड़े जाते हैं तब उस स्थान के वैज्ञानिक छल्ला पहनाने वाली संस्था को इसकी सूचना देते हैं । इस तरीके से सैकड़ों प्रवासी पक्षी  प्रजातियों के गरम ओर ठंडे इलाकों के ठिकानों के बारे मेंपता चला     है ।  
ये पक्षी इतनी लम्बी यात्राएं सटीक ढंग से कैसे कर पाते हैं ? उन्हें दिशा का ज्ञान कैसेहोता है ? वे किसी शहर के एक घर के बगीचे में प्रति वर्ष अचूक ढंग से कैसे पहुंच सकते हैं ? पक्षियों की देखने की क्षमता हमसे कई गुना अधिक होती है । इसके अलावा उन्हें प्रकाश की तंरगों की आवृत्ति और ध्रुवित (पोलेराइज्ड) प्रकाश की समझ होती है । यदि सूर्य बादलों से पूरी तरह ढंका हो, या अस्त हो चूका हो, तो भी उसकी दिशा ध्रुवित प्रकाश से पहचानी जा सकती है । रात में उड़ते समय उत्तर दिशा पहचानने के लिए पक्षी ध्रुव तारे की मदद लेते हैं जिसे वे जन्म से ही पहचानते हैं । 
कमाल की बात यह है कि पक्षी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा व उसकी तीव्रता को भी पहचानते हैं, जैसे किसी दिक्सूचक यंत्र में होता है । पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा स्थान-स्थान पर बदलती रहती है । पूरे संसार की चट्टानों में उस समय के चुम्बकीय क्षेत्र के निशान होते हैं जब उनका निर्माण हुआ था । ज्वालामुखी के विस्फोट से भारत के दक्षिणी पठार पर स्थित काली चट्टानें जब बनी थीं उस समय भारत दक्षिणी गोलार्ध में था । उसका चुम्बकीय क्षेत्र और उसकी तीव्रता उस समय की परिस्थिति के अनुसार निर्धारित हुई थी और यह भारत की दूसरी चट्टानों से भिन्न है । इसके अलावा, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता में स्थानीय चट्टानों और रासायनिक घटकों के कारण सूक्ष्म अंतर होते हैं । 
यही कारण है कि पूरे संसार की चट्टानों के चुम्बकीय क्षेत्र व उसकी दिशा अलग-अलग होते हैं । इन्हें भांपते हुए पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा करके हर वर्ष उसी स्थान पर पहंुच जाते हैं ।     यही  है जैव विकास की अजीब जादूगरी । 

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