शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

सामयिक
एवरेस्ट की चढ़ाई का व्यापार
संध्या रायचौधरी
दुनिया के सर्वोच्च् शिखर एवरेस्ट पर पहुंचना रोमांचक और साहसिक है लेकिन बाजारवाद ने इस यात्रा के मायने ही बदल दिए हैं। आज यह शिखर कुछ लोगोंके लिए सैर-सपाटे का केन्द्र बन गया है । इसके चलते यहां इतना कचरा जमा हो गया है जो यहां के पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है । लगातार पिघलते ग्लेशियर और भूंकप के झटकों से इस पर्वत पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं । 
पं. नेहरू ने हिमालय के बारे में कहा था - किसी बेहद सुन्दर स्त्री की तरह हिमालय भी सुंदर है । वासना और कामना से परे इसकी नदियां, घाटियां, झीलें और पेड़ों का सौंदर्य स्त्री सुलभ है तो इसका दूसरा पहलु पुरूषोचित है । मजबूत, निर्मम और जबर्दस्त । कभी मुस्कुराते हैं तो कभी दुख से कराहते हैं । इन दृश्यों को निहारता हँू तो मुझे लगता है यह एक सपना है । 
एवरेस्ट ऊपर से तो वार झेल ही रहा है, जड़ों से भी इसे खोखला करने की तैयारी चल रही है । चीन की योजना इसके नीचे नेपाल तक सुरंग बनाने की है । सब कुछ ठीक ठाक रहा तो अगले साल सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा । यह दुनिया की सबसे बड़ी सुरंग होगी । चीन का कहना है कि २०२० तक इसे पूरा कर लिया जाएगा । 
नेपाल में आए भूकंप ने तबाहो ही नहीं मचाई बल्कि पूरे हिमालय का भूगोल बदलकर रख दिया । वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि माउंट एवरेस्ट की चोटी भी कांपने से बची नहीं रह पाई । यहां तक कि इसकी ऊंचाई घट गई है । दो सेंटीमीटर वार्षिक रफ्तार से ऊंचा उठ रहे माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई भूकंप के बाद ढाई सेंटीमीटर तक कम हो गई । 
वर्ष २०१४ मे १८ अप्रैल को एवरेस्ट की राह में पड़ने वाले खुंबु हिमप्रताप के नजदीक हिमस्खलन से १६ शेरपा मारे गए थे । बहुत से घायल भी हुए । इसके बाद शेरपाआें ने हड़ताल कर दी । नेपाल सरकार को प्रतिदिन लाखों का नुकसान  हुआ । कई अभियान रद्द करने पड़े । कुल मिलाकर स्थिति ऐसी बन गई है कि २०१४ को हिमालय का काला वर्ष कहा गया । अब २०१५ की जो हालत है, उसे भी कम बुरा नहीं कहा जा सकता । एक तरफ एवरेस्ट चढ़ाई के अभियान थम से गए हैं । दूसरी ओर हिमालय के इस इलाके मेंउथल-पुथल का अंदेशा बरकरार है ।
उपग्रह डाटा विश्लेषण से यह साफ हुआ है कि काठमांडू की घाटी का इलाका ऊपर उठा है । भूवैज्ञानिक क्रिश्चियन मिनेट ने सेटेलाइट आंकड़ों का अध्ययन कर बताया है कि घाटी की ऊंचाई में ८० से.मी. तक का इजाफा हुआ है । ऐसा भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के तिब्बती प्लेट की ओर बढ़ने के कारण    हुआ । मिनेट ने बताया कि भूकंप के पहले और बाद में काठमांडू और आसपास की तस्वीरों के संकलन से पता चला है कि यह क्षेत्र अब सेटेलाइट के नजदीक है जिसका मतलब है कि इसकी ऊंचाई बढ़ गई है । जीपीआरएस सर्वे से पता चला कि काठमांडू घाटी की ऊंचाई भूकंप से पहले १३३८ मीटर थी जो थोड़ी और ऊंची हो गई है । लीड्स युनिवर्सिटी के भूगर्भ वैज्ञानिक टिम राइट के मुताबिक भूकंप के बाद १२० कि.मी. लंबा और ५० कि.मी. चौड़ा इलाका तकरीबन तीन फीट ऊपर  उठा । 
नेपाल में आई प्राकृतिक विपदा के बाद इसकी ऊंचाई कितनी कम हो गई, इसके बारे में वैज्ञानिकों की राय है - करीब एक इंच । यह निष्कर्ष युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक भू-उपग्रह सेंटीनल १ए से मिली जानकारी के आधार पर निकाला  गया । २९ अप्रैल को यह उपग्रह एवरेस्ट के  ऊपर से गुजरा था । हालांकि पर्यावरण रक्षा विशेषज्ञ प्रोफेसर रोजर विलहैम का कहना है कि एवरेस्ट की ऊंचाई मेंकेवल १-२ मिलीमीटर का अंतर आया है जबकि अन्नपूर्णा पर्वतमाला की ऊंचाई २० सेंटीमीटर बढ़ गई है । हाल ही में एवरेस्ट और पास के नेशनल पार्क मेंकिए गए सर्वे से पता चला है कि एवरेसट का पूरा इलाका धीरे-धीरे गर्म हो रहा है । 
पिछले पांच दशक से ग्लेशियर के पिघलने का सिलसिला जारी है । अब तक कई छोटे ग्लेशियरों का वजूद मिट चुका है । शोध से पता चला है कि एवरेस्ट की हिमेरखा १८० सेंटीमीटर तक ऊपर खिसक गई है । चिंतनीय पहलू यह है कि बर्फ के रंग में भी बदलाव हो रहा है । स्नो एंड एवलांश स्टडी एस्टेब्लिशमेंट का अध्ययन बताता है कि कहीं बर्फ बैंगनी दिख रही है तो कहीं हरी । इसका कारण ग्लोबल वार्मिग और प्रदूषण दोनों है । 
अब कम ही लोग बचे हैं जो एवरेस्ट की चढ़ाई समर्पण और खेल भावना से करते हैं । एवरेस्ट अब रोमांच तलाश करने वालों की भी जमीन बन गई है । पर्वतारोही अपना पूरा कंफर्ट जोन साथ लेकर चलते हैं और ऐसा लगता है एवरेस्ट तफरीह करने आए हजार से अधिक लोग एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे हैं । इससे वहां अब इतना कचरा फैल चुका है कि पर्यावरणविद उसे खतरनाक करार दे रहे हैं । 
इसलिए पर्वतारोहियों और शेरपाआें का संंबंध भी बिगड़ा है । पहले यह संबंध आत्मीय था लेकिन अब विशुद्ध व्यावसायिक है । एडमंड हिलेरी अपने साथ एवरेस्ट पहुंचे तेनजिंग शेरपा का बेहद सम्मान करते थे, लेकिन आज स्थिति वैसी नहीं है । पिछले साल साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर पर्वतारोहियों और शेरपाआें में हाथापाई की नौबत तक आ गई थी । शेरपा अपने साथ नौकर की तरह व्यवहार करने और हिमालय पर बेहद कचरा फैलाए जाने से नाराज थे । कचरे में वैसी कई चीजें थी जिसे एवरेस्ट पर लाए जाने की जरूरत नहीं थी । इस बार जब भूकंप आया, एवरेस्ट के निचले आधार शिविर में कई ऐसे लोग भी मौजूद थे जो वहां हनीमून मनाने पहुंचे थे । ब्रिटेन की एलेक्स चैप्पेटे और उनके पति सैम स्नाइडर ने भूकंप के दौरान का आंखों  देखा हाल अपने ब्लॉग पर भी लिखा । 
दुनिया के सर्वोच्च् शिखर पर जाना और उसे जीना हर कोई चाहता है, लेकिन बाजार ने यहां पहुंचने के मायने ही बदल दिए हैं । एवरेस्ट इतना आम हो गया है कि उस पर पहुंचने का असली रोमांच और आनंद ही खत्म हो गया है । हर साल संख्या के नए रिकार्ड बन रहे हैं, साहस के नहीं । होना यह चाहिए कि जिसमें साहस, जोश और जोखिम उठाने का दमखम हो वही एवरेस्ट पर पहुंचे । 
संतोष यादव दो बार एवरेस्ट चढ़ चुकी है । वे कहती है कि एवरेस्ट विजेता बनने की चाहत रखने वाला युवक-युवतियों को नेपाल की कंपनियां लूट रही हैं । कंपनियां मोटी रकम वसूलती हैं और शॉर्टकट रास्ते से एवरेस्ट पर पहुंचा देती है । संतोष कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि पिछले १०-१२ सालों में सारे एवरेस्ट विजेता चढ़ाई के मापदण्डों पर खरा नहीं उतरे लेकिन ज्यादातर के साथ नेपाली कंपनियों ने धोखा किया । वे कहती है कि चढ़ाई के लिए पहले बकायदा तीन महीने का प्रशिक्षण दिया जाता था । अब इसकी जगह टीम के साथ अलग से एक टीम भेजी जाती है जो रास्ता खोलने के साथ-साथ ऑक्सीजन से लेकर सभी खाने-पीने के सामान का भार उठाती है । 
कमाई मेंज्यादा बड़ा रोल तो ट्रेवल एजेंसियों का होता है लेकिन इसके पीछे नेपाल की सरकार भी    है । गौरतलब है कि नेपाल ही नहीं, कई देशों की सरकारें अपने युवाआें को बेवकूफ बना मोटी कमाई कर रही हैं । २०१३ में तो हद हो गई । नेपाल सरकार ने ३० दलों के ३३५ सदस्यों को एवरेस्ट पर चढ़ने की अनुमति दी । सिर्फ इन्हें परमिट देने के नाम पर नेपाल सरकार को २५ करोड़ ४० लाख रूपये मिले । एक पर्वतारोही को आज चढ़ाई के लिए ७५ से ८० लाख खर्च करने होते    है । इस खेल को लेकर अब हमारा खेल मंत्रालय काफी जागरूक हो गया है । इंडियन माउंटेन फाउडेशन अब आवेदनों को गहराई से जांचता है । मंत्रालय ने तय किया है कि एवरेस्ट के नाम पर कोई अवार्ड नहीं  मिलेगा । 
कभी अजेय मानी जाने वाली एवरेस्ट की चोटी आज कुचली हुई नजर आती है । कारण, यहां आने वाले लोगों की बढ़ती तादाद भी है । 

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