शनिवार, 18 जून 2016

सामयिक
पर्यावरण विनाश बनाम अस्तित्व का संकट
भारत डोगरा
विकास की अंधी दौड़ ने पूरी मानवता के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया  है । औद्योगिक एवं समृद्ध देश इस समस्या को लेकर कतई चिंतित भी नहीं हैं। पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अब देखना होगा कि ये देश अपने यहां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कितनी कमी लाते हैं।
वैज्ञानिक जगत में अब इस बारे में व्यापक सहमति बनती जा रही है कि धरती पर जीवन को संकट में डालने वाली अनेक गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं दिनोंदिन विकट होती जा रही हैं। इनमें जलवायु का बदलाव सबसे चर्चित समस्या है । परंतु इसी के साथ अनेक अन्य गंभीर समस्याएं भी हैंजैसें समुद्रों का अम्लीकरण व जलसंकट । ऐसी अनेक समस्याओं का मिला-जुला असर यह है कि इनसे धरती पर पनप रहे विविध तरह के जीवन के अस्तित्व मात्र के लिए संकट उपस्थित हो गया है । विविध प्रजातियों के अतिरिक्त इस संकट की पहुंच मनुष्य तकभी हो गई है ।
इन पर्यावरणीय समस्याओं के अतिरिक्त एक अन्य वजह से भी धरती पर जीवन के लिए गंभीर संकट उपस्थित हुआ है और वह है महाविनाशक हथियारों के बड़े भंडार का एकत्र होना व इन हथियारों के वास्तविक उपयोग की या दुर्घटनाग्रस्त होने की बढ़ती संभावनाएं । इन दो कारणों से मानव इतिहास में पहली बार मानव निर्मित कारणों की वजह से जीवन के अस्तित्व मात्र के लिए गंभीर संंकट उत्पन्न हुआ है । हम इसे अस्तित्व का संकट भी कह सकते हैं।
मानव इतिहास के सबसे बड़े सवाल न्याय, समता और लोकतंत्र के  रहे हैं। अब जब अस्तित्व की बड़ी चुनौती सामने है तो इसका सामना भी न्याय, समता और लोकतंत्र की राह पर ही होना चाहिए । अस्तित्व का संकट उपस्थित करने वाले कारणों को दूर करना निश्चय ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए पर अभी तक इन समस्याओं के समाधान का विश्व नेतृत्व का रिकार्ड बहुत निराशाजनक रहा है। इस विफलता के कारण इस संदर्भ में जनआंदोलनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है । यहां पर एक बड़ा सवाल सामने है कि अनेक समस्याओं के दौर से गुजर रहे यह जनांदोलन इस बड़ी जिम्मेदारी को कहां तक निभा पाएंगे ।
ऐसी अनेक समस्याओं के बावजूद समय की मांग है कि जनआंदोलन अपनी इस बहुत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाने का अधिकतम प्रयास अवश्य करें । इसके लिए एक ओर तो यह बहुत जरूरी है कि जनआंदोलनों में व्यापक आपसी एकता बने तथा दूसरी ओर यह भी उतना ही जरूरी है कि आपसी गहन विमर्श से बहुत सुलझे हुए विकल्प तैयार किए जाएं ।
विश्व स्तर पर पर्यावरण संबंधी अंादोलनों का जनाधार इस कारण व्यापक नहीं हो सका है क्योंकि इसमें न्याय व समता के  मुद्दों का उचित ढंग से समावेश नहीं हो पाया है । जलवायु बदलाव के संकट को नियंत्रण में करने के उपायों में जनसाधारण की भागीदारी प्राप्त करने का सबसे असरदार उपाय यह है कि विश्व स्तर पर ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में पर्याप्त कमी वह भी उचित समयावधि में लाए जाने की ऐसी योजना बनाई जाए जो सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने से जुड़ी हो । तत्पश्चात इस योजना को कार्यान्वित करने की दिशा में तेजी से बढ़ा जाए। 
यदि इस तरह की योजना बना कर कार्य होगा तो ग्रीनहाऊस गैस उत्सर्जन में कमी के जरूरी लक्ष्य के साथ-साथ करोड़ों अभावग्रस्त लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य अनिवार्य तौर पर इसमें जुड़ जाएगा व इस तरह ऐसी योजना के लिए करोड़ों लोगों का उत्साहवर्धक समर्थन भी प्राप्त हो सकेगा । यदि गरीब लोगों के लिए जरूरी उत्पादन को प्राथमिकता देने वाला नियोजन न किया गया तो फिर विश्व स्तर पर बाजार की मांग के अनुकूल ही उत्पादन होता रहेगा । 
वर्तमान विषमताओं वाले समाज में विश्व के धनी व्यक्तियों के पास क्रय शक्ति बेहद अन्यायपूर्ण हद तक केन्द्रित है। अत: बाजार में उनकी गैर-जरूरी व विलासिता की वस्तुओं की मांग को प्राथमिकता मिलती रहेगी । जिससे अंतत: इन्हीं वस्तुओं के उत्पादन को प्राथमिकता मिलेगी । सीमित प्राकृतिक संसाधनों व कार्बन स्पेस का उपयोग इन गैरजरूरी वस्तुओं के उत्पादन के लिए होगा ।  गरीब लोगों की जरूरी वस्तुएं पीछे छूट जाएंगी, उनका अभाव बना रहेगा या और बढ़ जाएगा ।
अत: यह बहुत जरूरी है कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की योजना से विश्व के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की योजना को जोड़ दिया जाए व उपलब्ध कार्बन स्पेस में बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता देने को एक अनिवार्यता बना दिया जाए। इस योजना के तहत जब गैर-जरूरी उत्पादों को प्राथमिकता से हटाया जाएगा तो यह जरूरी बात है कि सब तरह के हथियारों के उत्पादन में बहुत कमी लाई जाएगी । मनुष्य व अन्य जीवों की भलाई की दृष्टि से देखें तो हथियार न केवल सबसे अधिक गैरजरूरी हैं अपितु सबसे अधिक हानिकारक भी हैं। इसी तरह के अनेक हानिकारक उत्पाद हैं(शराब, सिगरेट, कुछ बेहद खतरनाक केमिकल्स आदि) जिनके उत्पादन को कम करना जरूरी है ।
इस तरह की योजना पर्यावरण आंदोलन को न्याय व समता आन्दोलन के नजदीक लाती है व साथ ही इन दोनों आंदोलनों को शान्ति आंदोलन के नजदीक लाती  है । जब यह तीनों सरोकार एक होंेगे तो दुनिया की भलाई के कई महत्वपूर्ण कार्य आगे बढेंगे ।

कोई टिप्पणी नहीं: