शनिवार, 18 जून 2016

विज्ञान हमारे आसपास
स्पेस वॉक में लंबाई बढ़ी, उम्र घटी
शर्मिला पाल

इंसान रोज नए-नए रहस्यों को सुलझाने में जुटा रहता है । बं्रह्माड में आज क्या, कैसे, क्यों और आगे क्या, यह जानने की जिज्ञासा वैज्ञानिकों को चैन से नहीं रहने देती है । और जब इन रहस्यों की कुछ जानकारियां सामने आती है तो आम इंसान तो क्या खुद वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं । 
ऐसा ही तब हुआ जब अमेरिका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्कॉट केली ३४० दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद धरती पर लौटे । स्वाभाविक रूप से मन में यह सवाल उठता है कि इतने लंबे समय तक वे अंतरिक्ष में कैसे रहे होंगे, उन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा । दिलचस्प बात यह पता चली कि उनकी लंबाई दो इंच बढ़ गई थी, जबकि उम्र १० मिली सेंकड घट गई थी । उन्होनें यह भी बताया कि वहां पर रहकर अंतरिक्ष यात्री कैसे अंतरिक्ष में चहलकदमी करते  हैं । जब कोई अंतरिक्ष यात्री मिशन पर जाता है तो उसके लिए तैयारियां काफी पहले से ही शुरू हो जाती है । 
अंतरिक्ष यात्री खुद को अंतरिक्ष की परिस्थितियों के मुताबिक ढालने लगते है । इस दौरान उनके खानपान से लेकर पोशाक तक का ख्याल रखा जाता है । सामान्य पोशाक और स्थितियों में अंतरिक्ष में कदम नहीं रखा जा सकता । आपने देखा होगा अंतरिक्ष यात्री हमेशा एक खास तरह की ड्रेस पहनते है । एक भारी भरकम सूट और उस पर हेलमेट और ऑक्सीजन मास्क भी लगा रहता है । अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों को यही सूट पहनना पड़ता  है । इसे स्पेश सूट कहते हैं । स्पेश सूट की बदौलत ही अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष के प्रतिकूल माहौल मेंजीवित रह पाते हैं । 
इस स्पेश सूट को तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत मेहनत और शोध किया है । यह सूट उस कपड़े से नहीं बना होता है, जिसे हम और आप पहनते है । अंतरिक्ष की स्थितियों का आंकलन करने के बाद यह सूट तैयार किया जाता है । इस सूट को पहनने के बाद शरीर का तापमान और बाहरी वातावरण से शरीर पर पड़ने वाला दबाव नियंत्रित रहता है । इसके साथ ही यह सूट इस तरह से बनाया जाता है कि यह एक कवच के समान अंतरिक्ष में मौजूद हानिकारक किरणों से शरीर की रक्षा करें । इस सूट के अंदर ही एक लाइफ सपोर्ट सिस्टम होता है, जिससे अंतरिक्ष यात्री को शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त् होती है । इस सूट के अंदर गैस और द्रव पदार्थो को रीचार्ज और डिस्चार्ज करने की व्यवस्था भी होती है । इस सूट में ही अंतरिक्ष यात्री वहां से एकत्रित किए गए ठोस कणों को सुरक्षित रख सकते हैं । 
जब कोई अंतरिक्ष यात्री यान से निकलकर अंतरिक्ष में कदम रखता है, तो उसे स्पेश वॉक कहते   है । १८ मार्च १९६५ को रूसी अंतरिक्ष यात्री एल्केसी लियोनोव ने पहली बार स्पेश वॉक की थी । आज समय-समय पर अंतरिक्ष यात्री स्पेश वॉक के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर जाते हैं । स्पेश वॉक पर जाते समय वे एक विशेष प्रकार की पोशाक पहनते हैं जो उन्हें अंतरिक्ष में सुरक्षित रखती है । वहां हवा का अभाव होने के कारण इन स्पेश सूट के अंदर ही ऑक्सीजन की व्यवस्था रहती है जिससे वे सांस लेते हैं । सांस के तौर पर सिर्फ ऑक्सीजन लेने से अंतरिक्ष यात्री के शरीर से पूरी नाइट्रोजन बाहर निकल जाती है । यदि उनके शरीर में जरा सी भी नाइट्रोजन हो तो उससे स्पेश वॉक के दौरान अंतरिक्ष यात्री के शरीर में नाइट्रोजन का बुलबुला बन सकता है। 
इन बुलबुले से उनके जोड़ों में तेज दर्द हो सकता है । यह स्पेशसूट उन्हें वॉक पर जाने से कई घंटे पहले ही पहन लेना पडता है । यह सूट इतना बड़ा होता है कि इसे पहनकर अभ्यास करना जरूरी होता है, ताकि वे सहज ही जाएं और सूट से जुड़ी तकनीकी बातों को समझ लें । इतना ही नहीं स्पेश सूट अंतरिक्ष यात्री को सामान्य तापमान उपलब्ध कराता    है । अंतरिक्ष में तापमान शून्य से २०० डिग्री कम या २०० डिग्री अधिक भी हो सकता है ।
इन तैयारियों के बाद अंतरिक्ष यात्री स्पेश वॉक के लिए तैयार रहते है । इस वॉक के लिए यान से वे एयरलॉक से बाहर निकलते   है । एयरलॉक में दो दरवाजे होते    हैं । जब अंतरिक्ष यात्री यान के अंदर होते है तो एयरलॉक इस तरह बंद होता है कि अंदर की जरा सी भी हवा बाहर न जाने पाए । जब अंतरिक्ष यात्री स्पेश वॉक के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं तो वे एयरलॉक के पहले दरवाजे से बाहर जाते है और पीछे से उसे मजबूती से बंद कर दिया जाता है । इसके बाद वे एयरलॉक का दूसरा दरवाजा खोलते हैं । स्पेश वॉक करने के बाद फिर एयरलॉक से ही वे यान के अंदर आते हैं । 
अंतरिक्ष यात्रियों में घर से दूर रहने का तनाव या होमसिकनेस जैसा भाव उत्पन्न होने लगता है । आम तौर पर मिशन के चौथे महीने में अंतरिक्ष यात्री घर लौटाना चाहता है । वे स्पेश स्टेशन में रहकर थक जाते हैं और अपने परिवार वालों से मिलना चाहते है । अब नासा के ज्यादातर अभियान छह महीने से लेकर साल भर के होते है । नासा इसलिए अब ज्यादा चॉकलेट पुडिंग भेजने पर विचार कर रहा है । 
इतना ही नहीं अलाबामा में बैठी जमीनी टीम को इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन के अंतरिक्ष यात्रियों की इधर-उधर गुम हो चुकी चीजों पर भी नजर रखनी होती है । यह स्पेस प्रोग्राम का सबसे मुश्किल काम होता है । अंतरिक्ष यात्री अपना सामान इधर-उधर रखकर भूल जाते हैं । ज्यादातर समय चीजें सुराखों में फंसी हुई मिलती है । जाहिर है एक अंतरिक्ष यात्री के साथ में हजारों का सपोर्ट स्टॉफ काम करता है । 
लोगों के मन में हमेशा यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में कैसे रहते होंगे । अंतरिक्ष में गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव खत्म हो जाता है, ऐसे में उन्हें किन परेशानियों का सामना करना पड़ता होगा । अंतरिक्ष यात्री क्या खाना खाते होंगे ? उनका वॉशरूम कैसाहोता होगा ? उनका बिस्तर कैसा होता है ?
अमूमन अंतरिक्ष यात्री ४ से ६ घंटे सोते हैं । यान में स्लीप सेंटर होता है । स्लीप सेंटर एक छोटे फोन बूथ की तरह होता है, जिसमें स्लीपिंग बैग होता है । स्लीप सेंटर में कम्प्यूटर, किताबें और खिलौने भी रख सकते है । ब्रश करते समय पानी भी बुलबुलों की तरह उड़ता है । यान में हाइड्रेटेड और डिहाइड्रेटेड सभी तरह का भोजन होता है । असलियत यह है कि अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने का एक अहम मकसद होता है पृथ्वी से कई किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में रहते हुए मनुष्यों पर उन परिस्थितियों का असर देखना । 
यदि मनुष्य को कभी स्पेश में, ग्रहों या उपग्रहों पर लंबे समय तक रहना है, तो यह पता होना जरूरी है कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने का इंसान पर असर क्या होता है । लेकिन खुद अंतरिक्ष यात्रियों पर हो रहे प्रयोग के असर पर नजर रखता कौन है ? अंतरिक्ष यात्रियों के हर पल की हरकत और उन पर हो रहे असर को जांचती है हजारों विशेषज्ञों की एक टीम, जो नासा के कन्ट्रोल हब या फिर नासा पेलोड ऑपरेशन्स इंटीग्रेशन सेंटर के नाम से जानी जाती है । 
अमेरिका के अलाबामा स्थित एक सैन्य अड्डे से संचालित इस कन्ट्रोल हब में एक समय में आठ पुरूष और महिलाएं होती है । उनकी नजरें कम्प्यूटर मॉनिटर्स पर जमी होती है और चेहरों पर आंकड़ों का बोझ स्पष्ट नजर आता है । यह सेंटर दरअसल इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन के वैज्ञानिक प्रयोगों का नियंत्रण केन्द्र है जहां चौबीसों घंटे काम होता है । पेलोड कम्यूनिकेशन्स मैनेजर सेम शाइन कहती हैं कि हम वैज्ञानिकों और स्पेश स्टेशन के अंतरिक्ष यात्रियों के बीच संपर्क सेतु का काम करते हैं । शाइन उन लोगों में शामिल है जो इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन के वैज्ञानिकों से सीधे बात करते रहते हैं । यह काफी मुश्किल होता है - भाषाई अंतर होता है, टाइम जोन का अंतर होता है, कई बार इटली के अंतरिक्ष यात्री को कोई जानकारी देनी होती है, तो कई बार किसी जर्मन यात्री से जानकारी लेनी होती है । 
सन् २०११ में १०० अरब डॉलर की लागत से तैयार हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अमेरिका, रूस, जापान और युरोपीय प्रयोगशालाएं है और इसमें काम करने वाले अंतरिक्ष यात्री अब छह माह से एक साल तक वहां बिताते    हैं । शाइन कहती हैं, आप विज्ञान की किसी भी शाखा का नाम लें, हम उसके किसी न किसी विषय पर जरूर रिसर्च कर रहे होंगे । हम सूक्ष्म गुरूत्व अनुसंधान से लेकर पौधों की वृद्धि और तरल धातुआें के गुणों की समझ तक के बारे में प्रयोग कर रहे हैं । 
एक अहम अध्ययन इन परिस्थितियों में हडि्डयों और मांसपेशियों के वेस्टेज पर हो रहा    है । अंतरिक्ष यात्रियों पर पृथ्वी से बाहर धातु के बक्से में रहने, कृत्रिम भोजन खाने, रिसाइकिल किए मूत्र को पीने और महीनों तक चंद अंतरिक्ष यात्रियों के साथ रहने का असर भी देखा जाता है । ये वे अहम अध्ययन है जिनके बाद तय होगा कि मनुष्य अंतरिक्ष में, ग्रहों-उपग्रहों पर कितनी देर रह सकता है । इतना ही नहीं, महीनों तक पृथ्वी से दूर रहने से संबंधित मनोवैज्ञानिक पहलुआें का अध्ययन भी किया जा रहा है । 
कई बार स्पेस स्टेशन के निवासी शिकायत करते हैं कि उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है । शाइन कहती है कि ऐसी सूरत में पता किया जाता है कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं । फिर उन्हें कम्फर्ट भोजन दिया जाता है और उनकी स्थिति को देखा जाता है । शाइन के मुताबिक नियंत्रण केन्द्र की कोशिश होती है कि वे उन्हें घर जैसा महसूस कराएं । 
स्पेस वॉक के दौरान अंतरिक्ष यात्री खुद को यान के करीब रखने के लिए टेदर का इस्तेमाल करते है । यह रस्सी की तरह होता है, जिसका एक सिरा स्पेस वॉक करने वाले से और दूसरा यान से जुड़ा होता है । टेदर यात्री को अंतरिक्ष में यान से काफी दूर जाने से रोकता है । इसके अलावा अंतरिक्ष यात्री सेफर (सिंप्लीफाइड एड फॉर इवीए रेसक्यू) भी पहनते हैं । इसे पीठ पर थैले की तरह पहना जाता है । स्पेस वॉक के दौरान यदि अंतरिक्ष यात्री से काफी दूर जाने लगे, तो यह सेफर उसे वापस यान में लौटने में मदद करता है । स्पेस वॉकर सेफर को जॉय स्टिक से नियंत्रित करता है । 
अंतरिक्ष में पहला स्पेस वॉक करने वाले अंतरिक्ष यात्री थे रूस के एल्केसी लियोनोव । उन्होनें ८ मार्च १९६५ को पहली बार १० मिनट तक स्पेस वॉक किया था । अब तक दुनिया के कई देशों के कई अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में स्पेस वॉक कर चुके हैं । 

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