शनिवार, 18 जून 2016

प्रदेश चर्चा
म.प्र. : इन्दौर में रोजाना करोड़ों लीटर पानी की बर्बादी 
चिन्मय मिश्र
पिछले कुछ अर्से से पानी उल्लास नहीं बल्कितनाव का कारण बनता जा रहा है । भारत का संभवत: प्रत्येक अंचल इस वक्त किसी न किसी स्वरूप में जलसंकट का साक्षी बना हुआ है ।  
राजस्थान के जैसलेमर जिले के रामगढ़ जैसे क्षेत्र जहां पर हिन्दुस्तान में सबसे कम पानी, औसतन करीब ४ इंच पानी वर्ष भर में बरसता है, इसके अपवाद हैं। वहां साल भर पीने के पानी का संकट नहीं होता । फसलों की स्थिति ऐसी है कि मालवा जिसके बारे में कभी कहा जाता था ``डग डग रोटी पग पग नीर`` से मजदूर अब यहां फसल काटने आते हैं। परंतु सीखने की प्रकृति को तो अधिकांश भारतीय समाज बिदाई दे चुका है और वैसे भी समझदारी में तो उसकी कोई सानी ही नहीं है। ऐसे ही समझदारों की एक फौज अब मांग कर रही है कि देश का पूरा पानी केन्द्र सरकार के अधीन कर दिया जाए । 
राज्यों से पानी संबंधित सभी अधिकार वापस ले लिए जाएं । इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया जाए । परंतु स्थितियां इसके ठीक उलट होना चाहिये । मांग की जानी चाहिए कि पानी को पूरी तरह से पंचायत और स्थानीय समुदाय को सौंप दिया जाए ।
अपनी स्मृति को थोड़ा पीछे ले जाइये । बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक खनन के तमाम अधिकार वहां बसने वाले समुदायों के पास थे । धीरे-धीरे उनका अतिक्रमण होता गया । पहले राज्य और बाद में केन्द्र ने जमीन के नीचे मौजूद सभी संसाधनों में से अधिकांश को अपने कब्जे में लेकर राज्यों को रायल्टी देने और समुदायों को ठेंगा दिखाना प्रारंभ कर दिया । अब पारदर्शिता के नाम पर खनिज संसाधनों की खदानों की नीलामी हो रही है और भारत की अमूल्य संपदा गिने-चुने निजी हाथों में चली जा रही है । ऐसा ही अब पानी के साथ होने की आशंका है वर्तमान केन्द्र सरकार पारदर्शिता की आड़ में पानी के स्त्रोतों की नीलमी से शायद ही हिचकिचाए । वैसे प्रायोगिक तौर पर छतीसगढ़  सरकार शिवनाथ नदी को निजी हाथों में सौंप कर मुसीबत मोल ले चुकी है । लेकिन हमारी नई संघीय सरकार पिछली गलतियांे से ``सबक`` लेकर कोई असाधारण फार्मूला लाकर पानी की नीलामी को कानूनी और व्यावहारिक जामा पहना सकती है ।
अभी जोर शोर से यह प्रचार किया जा रहा है कि राजस्थान के कोटा से पानी की रेल लातूर जा रही है और शीघ्र ऐसी ही एक रेल बुंदेलखंड के लिए भी रवाना होगी । अनुपम मिश्र ने ``आज भी खरे हैंतालाब`` में जिक्र किया है, ``२५ अप्रैल १९९० को इंदौर (म.प्र) से ५० टेंकर पानी लेकर रेलगा़़डी देवास आई । स्थानीय शासन मंत्री की उपस्थिति में ढोल नगाड़े बजाकर पानी की रेल का स्वागत हुआ । मंत्रीजी ने रेल्वे स्टेशन आई ``नर्मदा`` का पानी पीकर इस योजना का उद्घाटन किया ।`` गौरतलब है इंदौर से देवास की दूरी करीब ४० किलोमीटर है और तब इस पानी का रेलभाड़ा प्रतिदिन ४० हजार रु. था । तो सोचिए कोटा से लातूर करीब ७०० कि.मी. है तो  आज ५ लाख लीटर पानी पर कितना रेलभाड़ा लग रहा होगा ? परंतु परिस्थितियां दिनों दिन और भी जटिल होती जा रहीं हैं। 
उपरोक्त घटना के ३६ वर्ष बाद भी देवास की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ । फर्क सिर्फ इतना पड़ा कि जो पानी रेल से जाता था अब पाइप से जा रहा है । आज शहरों में खासकर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे महानगरों में पानी १०० से ३०० कि.मी की दूरी से आ रहा है। इसी पुस्तक में अनुपम जी इंदौर का ही एक और उदाहरण देते हैं``कुछ शहरों ने दूर बहने वाली किसी नदी से पानी उठाकर लाने के बेहद खर्चीले और अव्यावहारिक तरीके अपनाएं हैं। इंदौर का ऐसा ही उदाहरण आंख खोल सकता है। यहां दूर बह रही नर्मदा (करीब १०० कि. मी) का पानी लाया गया है । योजना का पहला चरण छोटा पड़ा तो एक स्वर से दूसरे चरण की मांग भी उठी और सन् १९९३ में तीसरे चरण के लिए भी आंदोलन चल रहा है ।``
इंदौर में पीने के पानी के  नाम पर इसके करीब ३२ वर्ष बाद सन् २०१५ में तीसरा चरण भी आ गया । इसके बाद इंदौर को करीब ३०० मिलियन लीटर (३० करोड़ ली.) पानी सिर्फ नर्मदा नदी से मिल जाता है और बाकी का १५० मिलियन लीटर अन्य स्त्रोतों से आ रहा है। तीसरे चरण के माध्यम से इंदौर तक पानी पहुंचाने का कुल खर्च करीब ६७० करोड़ रु. आया है। इसके रखरखाव व बिजली का खर्च भी नगर निगम के लिए वहन कर पाना कठिन हो जाता है । यदि विद्युत नियामक आयोग बिजली दरों में २० पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि कर देता है तो नगर निगम की सांस ऊपर नीचे होने लगती है । सबसे विचित्र तथ्य यह है कि २४ द ७ की बात करने वाला इंदौर नगर निगम पानी की इतनी आवक के बावजूद शहर को दो दिन में सिर्फ एक बार मात्र एक घंटे पानी दे पा रहा है, वह भी बिना किसी तेज दबाव के । 
परंतु बात यहीं खत्म नहीं होती । पिछले दिनों जिला योजना समिति की बैठक में शहर की मेयर ने पानी के वितरण संबंधी सूचनाएं देते अथवा देते धीरे से बतलाया कि नर्मदा नदी से जो पानी आ रहा है उसमें से २० से २५ प्रतिशत का वितरण के दौरान और टंकियों तक पहुंचाने के दौरान अपव्यय साधारण भाषा में कहें तो लीकेज में नष्ट हो जाता है। इस रहस्योद्घाटन पर किसी भी दल या गैरसरकारी संगठनों की कोई प्रतिक्रिया न आना वास्तव में अत्यन्त आश्चर्य का विषय है । 
महापौर के हिसाब से इंदौर में प्रतिदिन करीब ७.५ करोड़ लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। यानी प्रति माह करीब २२५ करोड़ लीटर पानी और वर्ष भर में करीब २७०० करोड़ लीटर पानी व्यर्थ बह रहा है। क्या हम इससे बर्बादी की भयावहता का अंदाज लगा सकते हैं। लातूर में ५ लाख लीटर पानी लेकर रेलगाड़ी प्रति सप्ताह पहंुच रही है । इस हिसाब से इंदौर में प्रतिदिन जितना पानी व्यर्थ बह रहा है उससे लातूर को करीब १४५ हफ्ते तक पानी मिल सकता है । क्या पानी की कमी से जूझ रहा एक देश इतने पानी की बर्बादी को झेल सकता है ? परंतु आज किसी पर कोई जवाबदेही नहीं है और हम अपनी स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को उनकी बची कुची जवाबदारी से भी छुटकारा दिलवा देना चाहते हैं।
पानी को लेकर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बात करना आवश्यक है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद वंदना शिवा ने एक रिपोर्ट में बताया है कि एक ग्रामीण महिला को सिर्फ पानी लाने के लिए एक वर्ष में औसतन १४००० किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है । अब आप इससे पानी की अनुपलब्धता की त्रासदी का अंदाजा लगा सकते हैं। यह दूरी औसतन ३८ किलोमीटर प्रतिदिन पड़ती है । (इसे इस तरह समझिए किपानी के स्त्रोत के पास कितने चक्कर लगाना पड़ते हैं। अनुमान है कि सुदूर ग्रामीण अंचलों में यह दूरी प्रति चक्कर २.५ किलोमीटर पड़ती है।) यह तो हुई महिलाओं की बात । अर्थात् अपने घर में पानी लाने के लिए एक भारतीय महिला प्रतिवर्ष पूरी धरती की परिक्रमा कर लेती है । 
केन्द्र सरकार ने बताया है कि देश में कुल ३३ करोड़ ६० लाख नागरिक अकाल से प्रभावित हैंऔर इसमें से १६.४० करोड़ बच्च्े हैं। इस परिस्थिति के चलते बच्चें की स्थिति दिनांेदिन दयनीय होती जा रही है । उन्हें मानव तस्करी, जबरन या बंधुआ मजदूरी, बाल मृत्यु, स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव, बालविवाह का सामना और पलायन की स्थिति में शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है। यह बात भी सामने आई है कि बाल विवाह में से आधे से भी ज्यादा इन्हीं १० अकाल प्रभावित प्रदेशों से हैं।  
जंगलों की आग बुझाने के लिए भी पानी दूर दराज से हेलिकाप्टरों से आ रहा है । क्या हम अभी भी अपनी प्राथामिकताओं पर ध्यान नहीं देंगे । सिर्फ वर्तमान में जीने वाला समाज अपना भविष्य अंधकार में डाल देता है । 

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