शनिवार, 18 जून 2016

जल जगत
पानी पर हकदारी का सवाल 
अरूण तिवारी 
प्यास किसी की प्रतिक्षा नहीं करती । अपने पानी के इंतजाम के लिए हमें भी किसी की प्रतिक्षा नहीं करनी है । हमें अपनी जरूरत के पानी का इंतजाम खुद करना है । 
देवउठनी ग्यारस का अबूझ सावा आये, तो नये जोहड़, कुण्ड और बावड़िया बनाने का मुहूर्त करना है । आखा तीज का अबूझ सावा आये, तो समस्त पुरानी जल संरचनाआें की गाद निकालनी है, पाल और मेडबंदियां दुरूस्त करनी हैं, ताकि बारिश आये, तो पानी का कोई कटोरा खाली न रहे । 
जल नीति और नेताआें के वादे ने फिलहाल इस एहसास पर धूल चाहे जो डाल दी हो, किन्तु भारत के गांव-समाज को अपना यह दायित्व् हमेशा से स्पष्ट था । जब तक हमारे शहरों में पानी की पाइप लाइन नहीं पहुंची थी, तब तक यह दायित्वपूर्ति शहरी भारतीय समुदाय को भी स्पष्ट थी, किन्तु पानी के अधिकार को लेकर अस्पष्टता हमेशा बनी रही । याद कीजिए कि यह अस्पष्टता, प्रश्न करने वाले यक्ष और जवाब देने वाले पाण्डु पुत्रों के बीच हुई बहस का भी कारण बनी थी । सवाल आज भी कायम हैं कि कौन सा पानी किसका है ? बारिश की बूंदों पर किसका हक है ? नदी-समूद्र का पानी किसका   है ? तल, वितल, सुतल व पाताल का पानी किसका है ? सरकार, पानी की मालकिन है या सिर्फ ट्रस्टी ? यदि ट्रस्टी, सौंपी गई संपत्ति का ठीक से देखभाल न करें, तो क्या हमें हक है कि हम ट्रस्टी बदल दें ?
पानी की हकदारी को लेकर मौजूं इन सवालों में जल संसाधन संबंधी संसदीय स्थायी समिति की ताजा सिफारिश ने एक नई बहस जोड़ दी है । बीती तीन मई को सामने आई रिपोर्ट ने पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफारिश की  है । स्थायी समिति की राय है कि यदि पानी पर राज्यों के बदले, केन्द्र का अधिकार हो, तो बाढ़ और सुखा जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना संभव होगा । 
क्या वाकई यह होगा ? बाढ़ सुखा से निपटने में राज्य क्या वाकई बाधक हैं ? पानी के प्रंबंधन का विकेन्द्रित होना अच्छा है या केन्द्रित होना ? समवर्ती सूची में आने से पानी पर एकाधिकार, तानाशाही बढेगी या घटेगी ? बाजार का रास्ता आसान हो जायेगा या कठिन ? स्थायी समिति की सिफारिश से उठे इस नई बहस में जाने के लिए जरूरी है कि हम पहले समझ लें कि पानी की वर्तमान संवैधानिक स्थिति क्या है और पानी को समवर्ती सूची में लाने का मतलब क्या है ?
वर्तमान संवैधानिक स्थिति के अनुसार जमीन के नीचे का पानी उसका है, जिसकी जमीन है । सतही जल के मामले में अलग-अलग राज्यों में थोड़ी भिन्नता जरूर है, किन्तु सामान्य नियम है कि निजी भूमि पर बनी जल संरचना का मालिक, निजी भूमिधर होता है । ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्रफल में आने वाली एक तय रकबे की सार्वजनिक जल संरचना के प्रबंधन व उपयोग तय करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होता है । यह अधिकतम रकबा सीमा भिन्न राज्यों में भिन्न है । भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से यही अधिकार क्रमश: जिला पंचायतों, नगर निगम/नगर पालिकाआें और राज्य सरकारों को प्राप्त् हैं । 
इस तरह आज की संवैधानिक स्थिति में पानी, राज्य का विषय है । इसका एक मतलब यह है कि केन्द्र सरकार, पानी को लेकर राज्यों को मार्गदर्शी निर्देश जारी कर सकती है, पानी को लेकर केन्द्रीय जल नीति व केन्द्रीय जल कानून बना सकती है, लेकिन उसे जैसे का तैसा मानने के लिए राज्य सरकारों को बाध्य नहीं कर सकती । राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक बदलाव करने के लिए संवैधानिक रूप से स्वतंत्र  हैं । लेकिन राज्य का विषय होने का मतलब यह कतई नहीं है कि पानी के मामले में केन्द्र का इसमें कोई दखल नहीं है । 
केन्द्र को राज्यों के अधिकार में दखल देने का अधिकार है, किन्तु सिर्फ और सिर्फ तभी कि जब राज्यों के बीच बहने वाले कोई जल विवाद उत्पन्न हो जाये । इस अधिकार का उपयोग करते हुए ही तो एक समय केन्द्र सरकार द्वारा जल रोकथाम एवं नियंत्रण कानून १९७४ की धारा ५८ के तहत केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्रीय भूजल बोर्ड और केन्द्रीय जल आयोग का गठन किया गया था । धारा ६१ केन्द्र को केन्द्रीय भूजल बोर्ड आदि के पुनर्गठन का अधिकार देती है और धारा ६३ जल संबंधी ऐसे केन्द्रीय बोर्डो के लिए नियम-कायदे बनाने का अधिकार केन्द्र के पास सुरक्षित करती है । 
पानी के समवर्ती सूची में आने से बदलाव यह होगा कि केन्द्र, पानी संबंधी जो भी कानून बनायेगा, उन्हे मानना राज्य सरकारों की बाध्यता होगी । केन्द्रीय जल नीति हो या जल कानून, वे पूरे देश में एक समान लागू होंगे । पानी के समवर्ती सूची में आने के बाद केन्द्र द्वारा बनाये जल कानून के समक्ष, राज्यों के संबंधित कानून स्वत: निष्प्रभावी हो जायेगे । जल बंटवारा विवाद में केन्द्र का निर्णय अंतिम होगा । नदी जोड़ परियोजना के संबंध में अपनी आपत्ति को लेकर अड़ जाने को अधिकार समाप्त् हो जायेगा । केन्द्र सरकार, नदी जोड़ परियोजना को बेरोक-टोक पूरा कर सकेगी ।  समिति के पास पानी समवर्ती सूची में लाने के पक्ष में कुलजमा तर्क यही हैं । 
यह भी तर्क भी इसलिए हैं कि केन्द्र सरकार संभवत: नदी जोड़ परियोजना को भारत की बाढ़-सुखा की सभी समस्याआें को एकमेव हल मानती है औश्र समवर्ती सूची के रास्ते इस हल को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है । क्या यह सचमुच एकमेव व सर्वश्रेष्ठ हल है ? पानी को समवर्ती सूची में कितना जायजा है, कितना नाजायज ? जल प्राधिकार के साथ-साथ भारत के जल प्रबंधन की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है । इस पर व्यापक बहस जरूरी है । 
नदी जोड़ परियोजना का हमेशा विरोध तथा विकेन्द्रित व सामुदायिक जल प्रबंधन की हमेशा वकालत करने वाले जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने भी पानी को समवर्ती सूची में लाने का समर्थन किया है । देश के कई राज्यों में चल रहे जल सत्याग्रह में अग्रणी भूमिका निभा रही लोक संघर्ष मोर्चा (महाराष्ट्र) की प्रमुख प्रतिभा शिंदे ने तो स्वयं इसकी मांग की, तर्क दिया कि ऐसा करने से जंगल और जंगलवासियों का भला हुआ है, पानी और पानी के लाभार्थी समुदाय का भी होगा । 
राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के पूर्व सलाहकर कृष्णगोपाल व्यास ने सवाल किया कि पानी को समवर्ती सूची में लाने की जरूरत ही कहां है ? पानी की वर्तमान संवैधानिक स्थिति ही ठीक है । समस्याआें के समाधान के लिए केन्द्र सरकार अभी भी मागदर्शीनिर्देश देने के लिए स्वतंत्र है ही । श्री व्यास इससे इंकार नहीं करते कि पानी के समवर्ती सूची में आने से जलाधिकार के संघर्ष और पानी के व्यावसायीकरण की संभावनायें घटने की बजाय बढ़ेगी । केन्द्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण के पूर्व विशेषज्ञ सदस्य तथा लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून के प्रमुख रवि चौपड़ा की राय भी श्री व्यास की राय से भिन्न नहीं है । 
स्पष्ट है कि पानी के संकट से उबरने के लिए जरूरत समवर्ती सूची से ज्यादा, बेहतर आपसी समन्वय, संकल्प और नीयत का   है । इस सिफारिश को लेकर अकाली दल व भाजपा क ेसाझे गठबंधन वाली पंजाब की सरकार ने विरोध जताया है । उल्लेखनीय है कि पंजाब सरकार ने नदी जोड़ परियोजना का भी विरोध किया था । दूसरी तरफ पार्टी का पक्ष ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के साथ-साथ भाजपा शासित झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा की सरकारों ने सहमति जताई है । 
प्रश्न यह है कि समवर्ती सूची में आने के बाद यदि पार्टी का पक्ष करने वाली नीयत केन्द्र सरकार की हुई तो जिन राज्यों में केन्द्र सरकार के दल वाले सरकारें नहीं हुई, उन राज्यों के साथ न्याय हो पायेगा, इसकी संभावना इस सिफारिश में कहां हैं ? जब कभी भी केन्द्र में सत्तारूढ़ दल, विपक्षी दलों की सरकारों को गिराने की नीयत रखेगी, तो क्या समवर्ती सूची में आकर पानी पर हकदारी में समानता प्रभावित हुए बगैर बच पायेगी ?

कोई टिप्पणी नहीं: