शनिवार, 18 जून 2016

सम्पादकीय
मनुष्येत्तर प्राणियों में शोक संवेदना
 हाल ही में यह अवलोकन किया गया कि बंदर भी अपने मृतक का मातम मनाते हैं । चपटी नाक वाले बंदरों के एक समूह में एक मादा पेड़ से गिरी और नीचे चट्टान से टकराकर उसका सिर फट गया । उसी समूह का प्रमुख नर बंदर (अल्फा नर) उसके पास ही रहा और उसके सिर को सहलाता रहा । उसने ऐसा तब तक किया जब तक कि वह मर नहीं गई । मरने के बाद भी वह उसके पास ही बना रहा और उसे छूता रहा, उसके सिर को हल्के से खींचता रहा । लगता था कि वह उसे फिर से जिलाने का प्रयास कर रहा था ।
जापान के क्योतो विश्वविद्यालय के जेम्स एंडरसन का कहना है कि इस अवलोकन से पता चलता है कि वयस्क नर ने अत्यनत स्नेहपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन किया । इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कम से कम सशक्त बंधनों से बंधे जानवरों में मरणासन्न प्राणी के लिए करूणा का भाव होता है ।  
इससे पहले उत्तर-पश्चिमी जाम्बिया के एक अभयारण्य से रिपोर्ट आई थी कि चिम्पैंजी न सिर्फ अपने मृतक का मातम मनाते हैं बल्कि कुछ हद तक उसका अंतिम संस्कार भी करते हैं । इन दोनों रिपोर्ट से पता चलता है कि मृत्यु के बाद शोकाकुल व्यवहार के मामले मेंमनुष्य अकेले नहींहै । इनसे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ये जानवर भी समझते हैं कि मृत्यु एक पूर्ण विराम है, उसके बाद यह प्राणी वापिस नहीं लौटेगा । अर्थात् मृत्यु एक अनुत्क्रमणीय घटना है । 
वैसे एंडरसन का कहना है कि जन्तुआें के व्यवहार पर मानवीय मूल्य थोपना या उनका मानवीयकरण करना थोड़ खतरनाक है, मगर लगता है कि सामूहिक प्राणियों में बार-बार मृत्यु से संपर्क होने पर मृत्यु की अनुत्क्रमणीयता को लेकर कुछ समझ तो बन जाती होगी और इसका भावनात्मक असर भी होता होगा । इसलिए उपरोक्त अवलोकनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अनुचित न होगा कि मनुष्य के अलावा कुछ अन्य  प्राणियोंमें भी शोक संवेदना होती है । 




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